नई दिल्लीः चंड-मुंड के भी लौटकर न आने के बाद अब शुंभ-निशुंभ के क्रोध की कोई सीमा न रही. उन्होंने जोर की हुंकार भरी और अपने प्रधान सेनापति रक्तबीज को प्रकट होने का आदेश दिया. रक्तबीज ने प्रकट होते ही चंड की सेना से लौटकर आए राक्षस सैनिकों का वध कर दिया और उनके रक्त से सने हाथ जोड़कर शुंभ-निशुंभ का अभिवादन किया.
बोला-क्या आदेश है, किसका काल आया है, कहां चढ़ाई करनी है?
शुंभ-निशुंभ ने तैयार की सेना
निशुंभ ने क्रोध को संभालते हुए कहा- इस बार एक स्त्री का काल आया है. एक कुमारी कन्या का काल, भाई शुंभ उससे विवाह करना चाहते थे, लेकिन उस हठीली-घमंडिनी ने हमारे अनुचरों की हत्या कर दी. इसलिए अब उससे विवाह नहीं युद्ध होगा और उसे यमलोक भेज दिया जाएगा.
रक्तबीज हंसा-एक स्त्री, कुमारी कन्या! उसके लिए इतनी बड़ी सेना तैयार कराई है. आप भूल रहे हैं, मैं स्वयं में सेना हूं. चलिए, चढ़ाई करते हैं.
तीनों दानव अपने काल के पास पहुंच गए
देवी अंबिका और चंडिका इन दैत्यों की ही प्रतीक्षा कर रही थीं. अंबिका मां शांत बनी हुई थीं, जबकि देवी चंडिका क्रोध से कांप रही थीं. दोनों ने दूर से ही सेनाओं सहित शुंभ-निशुंभ को आते देख लिया. यह युद्ध का अंतिम चरण है, ऐसा जानकर देवी पर पुष्पवर्षा के लिए देवता भी आकाश से यह दृष्य देखने प्रकट हो गए.
त्रिदेवों ने भी साक्षात अंबिका का दर्शन किया और देवताओं के ही समूह में मिल गए. रक्त बीज ने आते ही सेना को आक्रमण का आदेश दे दिया और साथ चलने के लिए चुनौती भी दे दी. देवी चंडिका ने उसके शब्द निकलने ही नहीं दिए सेना पर टूट पड़ीं.
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रक्तबीज का भेद, प्रहार होते रहे प्रभावहीन
सारी राक्षस सेना को एक बार में समाप्त कर देवी चंडिका रक्तबीज की ओर पलटीं और चंद्रहास से जोर का प्रहार कर दिया. रक्तबीज ने वार बचाने की कोशिश की, लेकिन दायीं भुजा पर गहरा आघात हुआ.
धार से खून बह निकला और बूंद-बूंद कर धरती पर गिरने लगा. देवी अगले प्रहार के लिए आगे बढ़ीं, लेकिन यह क्या उनका सामने अनेक रक्त बीज रास्ता रोके खड़े थे. उन्होंने फिर से प्रहार किया तो और रक्तबीज खड़े हो गए. भेद यह था कि जहां-जहां उसका खून गिरता नए रक्तबीज बन जाते.
तब देवी ने लिया भयंकर कालरात्रि स्वरूप
देवी चंडिका को युद्ध में इस तरह असहाय होता देख देवी अंबिका क्रुद्ध हो गईं. उनके नेत्र बंद हो गए और सारी सृष्टि में अंधकार छा गया. इसी अंधकार ने धीरे-धीरे आकार लेना शुरू किया तो देवी का भयाक्रांत स्वरूप सामने आया. एक हाथ में खड्ग, एक में खप्पर.
गले में नरमुंड माला और आंखों में नेत्र कोटरों के स्थान पर भयंकर अग्नि. प्रकट होती ही देवी ने तांडव करना शुरू कर दिया, जिसने भी दृष्य देखा, दहल गया. देवी आगे बढ़कर चंडिका की सहायता करने आईं.
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दोनों देवियों ने किया रक्तबीज का अंत
चंडिका ने मन ही मन अपनी शक्ति कालरात्रि को प्रणाम किया और संकेत में युद्धनीति समझा दी. योजना यह थी कि वह प्रहार करेंगी और देवी खप्पर में रक्त भर-भर कर पिएंगीं. ऐसा ही हुआ. देवी चंडिका प्रहार करतीं तो देवी कालरात्रि रक्त को धरती पर नहीं गिरने देतीं.
इस तरह देवी काली ने भी खड्ग प्रहार कर कई रक्तबीजों का रक्तपान किया. इस तरह दोनों देवियां सारे असुरों का नाश कर असली रक्तबीज तक पहुंची. चंडिका की क्रूर हंसी देखकर रक्तबीज ने भागने की कोशिश की, लेकिन काली ने एक ही वार से उसका सारा रक्त पी लिया और उसे यमलोक पहुंचा दिया.
शुंभ-निशुंभ का वध, देवताओं को अभयदान
शुंभ-निशुंभ यह भयाक्रांत समर देख भयभीत तो हो गए, लेकिन फिर भी अंतिम प्रहार के लिए देवी अंबिका की ओर दौड़ लगा दी. चंडिका ने जब यह देखा तो अपना स्वरूप विस्तार किया और शुंभ के आगे आकर खड़ी हो गईं. उन्होंने एक ऊंचा पग उठाकर शुंभ को उसके नीचे दबा दिया और इसी समय निशुंभ का सिर धड़ से अलग कर दिया.
देवता यह देखकर हर्षित हो उठे और पुष्प वर्षा की. श्रीहरि ने प्रकट हो कर देवी के इन स्वरूपों और नवदुर्गा की व्याख्या की और देवी अंबिका ने देवताओं को अभयदान दिया. देवता फिर से सुखपुर्वक स्वर्ग में राज्य करने लगे.