नई दिल्लीः सनातन परंपरा में गृहस्थ आश्रम के लिए चार कर्तव्य जरूरी बताए गए हैं. यह हैं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष. इन सभी में अर्थ का अर्थ धन से है और धन ही बाकी तीनों कर्तव्यों का आधार भी है. श्रेष्ठ कर्म के द्वारा और मेहनत के जरिए कमाया गया धन ही पवित्र है और धर्म के भी काम आता है. देवी लक्ष्मी इस धन का साक्षात स्वरूप हैं.
सप्ताह के सात दिनों में से शुक्रवार देवी लक्ष्मी की ही आराधना का दिन है. अपने अष्टलक्ष्मी स्वरूप में महालक्ष्मी शुक्रवार के दिन स्मरण करने वाले जातकों पर प्रसन्न रहती हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी करती हैं.
मां लक्ष्मी को समर्पित हैं मंत्र
देवी लक्ष्मी की आराधना के कई तरीके हैं. हालांकि किसी भी ईश्वर की पूजा केवल सच्चे मन से की गई प्रार्थना होती है. लेकिन अगर इसके साथ ही उनके अभीष्ट मंत्रों का साथ मिल जाए तो पूजा और भी कल्याणकारी हो जाती है. देवी लक्ष्मी की आराधना के लिए भी मंत्रों का एक व्यवस्थित क्रम है, जिसे श्रीसूक्त या श्रीसूक्ति कहते हैं.
श्रीसूक्ति माता की आराधना के लिए विशेष तौर पर उन्हें समर्पित किए गए मंत्र हैं. इस मंत्र से आराधना करने वालों पर माता जरूर प्रसन्न रहती हैं.
लक्ष्मी सूक्तम भी है प्रचलित नाम
इन सूक्ति रूप में श्लोकों का एक नाम लक्ष्मी सूक्तम भी है. यह सूक्ति मंत्र, ऋग्वेद के अन्तर्गत आने वाले पाठ में शामिल है. वहीं बताया गया है कि इस सूक्त का पाठ धन-धान्य की अधिष्ठात्री, देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए किया जाता है. इसकी महत्ता इतनी है कि आंध्र प्रदेश के तिरुमल वेंकटेश्वर मंदिर में 'वेंकटेश्वर के तिरुमंजनम्' के समय जो पञ्चसूक्तम का पाठ किया जाता है, उसमें श्रीसूक्तम भी सम्मिलित है.
37 मंत्रों की शृ्ंखला है श्रीसूक्त
श्रीसूक्त ऋग्वेद का खिल सूक्त है जो ऋग्वेद के पांचवें मण्डल के अन्त में सामने आता है. इस सूक्ति में प्रारंभिक मन्त्रों की संख्या पन्द्रह है. इसके बाद सोलहवें मन्त्र में फलश्रुति है. इसके बाद में ग्यारह मन्त्र परिशिष्ट के हैं. इनको 'लक्ष्मीसूक्त' के नाम से स्मरण किया जाता है. श्रीसूक्त का विनियोग लक्ष्मी के आराधन, जप, होम आदि में किया जाता है.
महर्षि बोधायन, वशिष्ठ आदि ने इसके विशेष प्रयोग बताए हैं. श्रीसूक्त की फलश्रुति में भी इस सूक्त के मन्त्रों का जप तथा इन मन्त्रों के द्वारा होम करने का निर्देश किया गया है. श्रीशब्दवाच्या लक्ष्मी इस सूक्त की अधिष्ठाता हैं.
आराधना के क्रम में श्रीसूक्त के पन्द्रह मन्त्रों के जरिए देवी की आराधना इस क्रम में की जाती है.
आवाहन
आसन
पाद्य
अर्घ्य
आचमन
स्नान
वस्त्र
भूषण
गन्ध
पुष्प
धूप
दीप
नैवेद्य
प्रदक्षिणा
उद्वासन
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