ग्रीष्म ऋतु का स्वागत उत्सव है सतुआन और जूड़ शीतल पर्व

 उत्तर भारत के मैदानी भागों में 14-15 अप्रैल को सतुआन पर्व मनाया जाता है. यह ग्रीष्म ऋतु के स्वागत का पर्व है. इसे मेष संक्रांति भी कहते हैं.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Apr 14, 2020, 08:13 PM IST
    • उत्तर भारत के मैदानी भागों में 14-15 अप्रैल को सतुआन पर्व मनाया जाता है. यह ग्रीष्म ऋतु के स्वागत का पर्व है.
    • तमिलनाडु और कर्नाटक में 14-15 अप्रैल या सूर्य के राशि परिवर्तन दिवस को विषु कानी पर्व के तौर पर मनाते हैं.
ग्रीष्म ऋतु का स्वागत उत्सव है सतुआन और जूड़ शीतल पर्व

नई  दिल्लीः भारतीय जनमानस में प्रत्येक कुछ दिनों को पर्व और उत्सव की तरह मनाने की परंपरा जन साधारण में चेतना को जागृत करती है. मौसम में परिवर्तन, ऋतु परिवर्तन, समय परिवर्तन या आदि सभी प्रकार के बदलाव सृष्टि का नियम है. भारतीय मनीषा यह कहती है कि हर प्रकार के परिवर्तन के लिए हमें खुद को तैयार रखना चाहिए और उसमें सहभागिता दिखानी चाहिए. दरअसल परिवर्तन ही प्रगति का मार्ग है. इसी परिवर्तन की एक कड़ी है ग्रीष्म ऋतु का आगमान

वसंत बीता अब दिन-दिन बढ़ेगा सूर्य ताप
परिवर्तन का नियम है कि वह कभी अचानक नहीं हो जाता है. बल्कि साम्य की अवस्था अपनाते हुए क्रमिक रूप से आगे बढ़ता है. शीत ऋतु और ग्रीष्म काल के बीच इसी साम्य अवस्था का नाम है वसंत ऋतु. अब धीरे-धीरे सूर्य का ताप बढ़ता जाएगा और ग्रीष्म ऋतु का आगमन होगा.

प्रकृति में ताप की वृद्धि होगी और इस ताप से साम्य रखने के लिए हमें आंतरिक शीतलता की जरूरत होगी. इसी ग्रीष्म ऋतु के स्वागत का उत्सव  है सतुआन.

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इसलिए मनाते हैं सतुआन पर्व
उत्तर भारत के मैदानी भागों में 14-15 अप्रैल को सतुआन पर्व मनाया जाता है. यह ग्रीष्म ऋतु के स्वागत का पर्व है. इस दिन एक बार फिर सूर्य का राशि परिवर्तन होता है. इसलिए इसे मेष संक्रांति भी कहते हैं. खरमास का इसी दिन अंत होकर अब से मंगल कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं. सतुआन के दिन सत्तू खाने की परंपरा है. सूर्य मीन राशि छोड़कर मेष राशि में प्रवेश करेंगे. इसी के उपलक्ष्य में यह त्योहार मनाया जाता है.

व्रत-पूजन का भी है विधान
यह पर्व कई मायने में महत्वपूर्ण है. इस दिन लोग अपने पूजा घर में मिट्टी या पित्तल के घड़े में आम का पल्लो स्थापित करते हैं. सत्तू, गुड़ और चीनी से पूजा की होती है. इस दौरान सोना और चाँदी दान देने की भी परंपरा.

पूजा के उपरांत लोग सत्तू, आम प्रसाद के रूप में ग्रहण करते है.

बिहार-झारखंड में मनाते हैं जूड़ शीतल
इसके एक दिन बाद 15 अप्रैल को जूड़ शीतल का त्योहार मनाया जाएगा. 14 अप्रैल को इस दिन पेड़ में बासी जल डालने की भी परंपरा है. जुड़ शीतल का त्योहार बिहार में हर्षोलास के साथ मनाया जाता है. पर्व के एक दिन पहले मिट्टी के घड़े या शंख में जल को ढंककर रखा जाता है, फिर जूड़ शीतल के दिन सुबह उठकर पूरे घर में जल का छींटा देते हैं.  मान्यता है की बासी जल के छींटे से पूरा घर और आंगन शुद्ध हो जाता है.

बासी भोजन की भी परंपरा
ये भी मान्यता है की जब सूर्य मीन राशि को त्याग कर मेष राशि में प्रवेश करता है तो उसके पुण्यकाल में सूर्य और चंद्र की रश्मियों से अमृतधारा की वर्षा होती है, जो आरोग्यवर्धक होती है. इसलिए इस दिन लोग बासी खाना भी खाते हैं. बासी भोजन का विधान शीतला पूजन में भी है. कुछ स्थानों पर इस दिन भी बासी भोजन करते हैं.

दक्षिण भारत में मनाते हैं विषु पर्व
तमिलनाडु और कर्नाटक में 14-15 अप्रैल या सूर्य के राशि परिवर्तन दिवस को विषु कानी पर्व के तौर पर मनाते हैं. यह पर्व भगवान विष्णु को समर्पित है और दक्षिण भारत में नव वर्ष का प्रतीक है. दरअसल विषु कानी पर्व कृषि आधारित पर्व है, जिसमें खेतों में बुआई का उत्सव मनाते हैं.

श्रद्धालु सुबह उठकर स्नान-ध्यान के बाद सबसे पहले आस-पास के मंदिर में विष्णु देव प्रतिमा का दर्शन करते हैं और झांकी भी निकालते हैं. घरों में इस दिन नए अनाज से भोजन बनाया जाता है और देव को 14 प्रकार को व्यंजन का भोग लगाते हैं.  

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