महाभारत की वह कथा जो जीवन में बुजुर्गों के आशीर्वाद का महत्व बताती है

लॉकडाउन के कारण लोग घरों में हैं और इन दिनों रामायाण-महाभारत का प्रसारण हो रहा है. यह दोनों ही कथाएं हमारी संस्कृति-संस्कार और सामाजिक ताने-बाने के सबसे पुराने दस्तावेज हैं. महाभारत का एक ऐसा ही प्रसंग है, जो बड़े-बुजुर्गों के आशीर्वाद का महत्व सामने रखता है. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Apr 19, 2020, 04:35 PM IST
    • युद्ध में पितामह भीष्म नें पांडवों के वध की प्रतिज्ञा की थी
    • द्रौपदी ने पितामह से आशीर्वाद में अपने सौभाग्य की रक्षा का वरदान मांगा था
महाभारत की वह कथा जो जीवन में बुजुर्गों के आशीर्वाद का महत्व बताती है

नई दिल्लीः पांडव शिविर में आज बहुत हलचल थी. युधिष्ठिर एक स्तम्भ पर सिर टिकाए खड़े थे, अर्जुन जमीन से नज़रें नहीं हटा रहे थे, भीम की क्रोधित चहल कदमी से भूमि रह रह कर कांप जाती थी तो नकुल-सहदेव कभी बड़े भैया की तरफ देखते तो कभी एक-दूसरे को देख स्थिति को समझने की कोशिश करते. एक लंबी चुप्पी को तोड़ते हुए पांचाली सीधे केशव की ओर मुड़ कर बोली, तो क्या मधु सूदन कोई उपाय नहीं है. 

कृष्ण के चेहरे पर उनकी चिर परचित मुस्कान बिखर गई. वह बोले, मैंने कब कहा कृष्णे, कोई उपाय नहीं है? 
यह सुनकर अर्जुन उद्विग्न हुए और इतने में चारों भाई कृष्ण के चारों ओर घेर कर खड़े गए. अर्जुन बोले, उपाय है तो बताइए न केशव, यूँ ही मौन क्यों साध रखा है?  जल्दी बताइए. 

कृष्ण बोले, तुमने पूछा ही कहां है पार्थ, तुमने तो गुप्तचर से सूचना सुनी की पितामह ने तुम्हारे वध का प्रण लिया है, उसके बाद से तुम पांचों भाई इधर-उधर मौन खड़े हो. 

अब द्रौपदी ने कहा-केशव, आप सारथि हैं, लेकिन केवल युद्ध भूमि में, शिविर में नहीं. यहां आप राजभवन वाली औपचारिकताएँ न निभाया कीजिये. आप उपाय बताइए केशव, बताइए न. 

कृष्ण इस बार ठठाकर हंस पड़े. उनकी इस हंसी में युद्ध भूमि की शोकाकुल धरती भी एकबारगी हंस पड़ी. माधव के पास उपाय है, इतना जानकर ही पांडव अब चिंता भूल चुके थे. स्थिति सामान्य होते ही कृष्ण ने बोलना शुरू किया. 

कृष्णे, मैं तुम्हारे ही मौन भंग की प्रतीक्षा कर रहा था. क्योंकि जो उपाय है वह तुम हो, स्वयं तुम. यह सुनते ही भीमसेन गरज पड़े, यह क्या कह रहे हैं माधव? पांचाली युद्ध भूमि में नहीं जाएगी. कृष्ण भीम की तरफ मुड़े ही थे कि इससे पहले ही युधिष्ठिर ने भीमसेन को शांत कर दिया. 

माधव बोले, नहीं भीम भैया, मैं युद्ध भूमि में जाने की बात नहीं कर रहा हूँ. वैसे भी यह इस युद्ध के बनाये गए नियमों के विपरीत है. लेकिन एक वधु अपने पितामह के आशीर्वाद के लिए तो जा ही सकती है. 

क्यों कृष्णे, पितामह का आशीष कब से नहीं लिया. यह सुनकर पांचाली को अतीत याद आ गया. सजल नेत्रों से बोली, द्यूत सभा के बाद इस पुण्य का अवसर ही नहीं आया. अभिमन्यु के विवाह में ऐसा सुखद क्षण आया भी था तो पितामह मुझे देखकर अपमानित न महसूस करें तो उनकी ओर गयी ही नहीं. 

हूं..., कृष्ण ने एक लंबी हुंकार भरते हुए कहा, तो चलो द्रौपदी, पितामह से आशीर्वाद लेने चलो. बुजुर्गों के आशीष से ही तो नवजीवन के पल्लव सुरभित होते हैं. शुभस्य शीघ्रम, जल्दी चलो. नकुल रथ लाने बढ़े तो केशव ने रोक दिया, बोले बुजुर्गों का निवास तीर्थ से कम नहीं होता, वहां रथ पर चढ़कर नहीं श्रद्धा भाव से पैदल ही चलो. 

पांडव कुछ समझ नहीं सके थे, लेकिन कृष्ण की बात मानने के सिवा अभी कोई उपाय नहीं था. द्रौपदी, पैदल ही कौरव शिविर की ओर बढ़ चली. मार्ग में कृष्ण ने कहा कि तुम नव विवाहिता की तरह घूंघट कर के पितामह के पास जाना और अपने पति के लिए अभय मांग लेना. परिचय मत देना. 

जब कृष्ण यह बता रहे थे द्रौपदी की खड़ाऊं उस नीरव मार्ग पर शोर कर रही थीं. गुप्तचरों को आहट का खतरा था, इसलिए कृष्ण ने द्रौपदी के खड़ाऊ उतरवा लिए और हाथ में पकड़कर चलने लगे.

ब्रह्म मुहूर्त की बेला आ गयी थी. कौरव सेना अभी अर्धसुप्त अवस्था में ही थी. केवल पितामह के शिविर के आगे प्रकाश दीप जल रहे थे. द्रौपदी लम्बा घूघट निकाल कर वहीं बैठ गईं और सुबकने लगीं. प्रहरी ने पूछा तो कुछ नहीं बताया, थोड़ी देर में पितामह आचमन के लिए बाहर आ गए. 

कर्ण की तरह उनका भी नियम था कि आचमन पूजा के समय द्वार पर कोई याची आए तो उसे लौटाते नहीं थे और फिर यह तो सुबकती हुई स्त्री थी. उन्होंने पूछा क्यों रो रही हो पुत्री, कहो, क्या कष्ट है. द्रौपदी ने कहा क्या आप सच मे कष्ट दूर कर सकेंगे. द्रौपदी के बार-बार ऐसा कहने पर पितामह ने आचमन करते हुए अवश्य कह दिया. 

द्रौपदी ने कहना शुरू किया, मेरे पति इस युद्ध में आपकी विरोधी सेना में हैं. 6 दिन से मैं उस सेना के सैनिकों की स्त्रियों का विलाप सुन रही हूं. नगर में चर्चा है कि आज आप और भयंकर युद्ध करेंगे और युद्ध में रुद्र बन जाएंगे. ऐसे में आज मुझे अपने पति के प्राणों के बचने का संदेह है. आप उन्हें अभय दें. इतना कहकर द्रौपदी ने उनके चरण छू लिए. 

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पितामह ने कहा, यह तुम कैसी बात कर रही हो पुत्री. तुम्हारा पति वीर है, योद्धा है. यह तो उसकी नियति होगी. उसे जीतने या हारने दो. लेकिन मैं तुम्हें वचन दे चुका हूं इसलिए सौभाग्य का आशीष देता हूं.

द्रौपदी ने सौभाग्यवती बने रहने का आशीष मांग लिया. पितामह ने वचन दिया था, इसलिए आशीष तो दे दिया, लेकिन अब उन्होंने परिचय पूछा. द्रौपदी ने घूंघट उठाते हुए परिचय दिया तो पितामह सकपका गए. फिर हंसते हुए बोलो, पुत्री, अकेले आयी हो? या मेरे प्रिय पुत्र भी आये हैं? 

द्रौपदी ने कहा नहीं पितामह, केशव आये हैं. क्या, केशव आये हैं, कहां हैं? पांचाली बोली, बाहर द्वार पर खड़े हैं. यह सुनते ही पितामह द्वार की ओर भागे और कृष्ण की ओर जा लपके. 

अरे देवकीपुत्र, यहां खड़े हो. अचानक पितामह को देख कृष्ण भी सकपका गए. उनके दोनों हाथ अचानक जुड़ने के लिए उठे तो द्रौपदी के दोनों खड़ाऊं उनके हाथ में बज गए. पितामह ने उनका हाथ पकड़ लिया और द्रौपदी को नंगे पांव देख सारा माजरा समझ गए. 

वापस केशव की ओर मुड़ कर बोले, जिसकी रक्षा के लिए त्रिलोकी खुद उसकी खड़ाऊं हाथ में उठा लें , फिर तो वह पूरा ही ईश्वर शरण मे आ गया. कौन उसके सौभाग्य को मिटा सकता है. जाओ पुत्री जाओ, युद्ध के सातवें दिन भी पांडव बच निकले हैं. 

द्रौपदी अपने सौभाग्य का वरदान लेकर लौट आयी.

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