अक्षय पुण्यों का फल देती है वैशाख अमावस्या, इसी दिन हुई थी श्रीराम के युग की शुरुआत

सनातन परंपरा व पंचांग के अनुसार बुधवार को बैशाख अमावस्या की तिथि है. इस दिन पितरों का स्मरण कर उन्हें पिंडदान व तर्पण किया जाता है. जो लोग श्राद्ध पक्ष में किसी कारण वश पितृ पूजा नहीं कर पाते हैं, वैशाख मास की अमावस्या को वह भी उनका पूजन कर सकते हैं. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Apr 21, 2020, 06:09 PM IST
    • वैशाख हिंदू वर्ष का दूसरा माह होता है, मान्यता है कि इसी माह से त्रेता युग का आरंभ हुआ था
    • दक्षिण भारत में शनि पूजा की इस दिन विशेष परंपरा रही है.
अक्षय पुण्यों का फल देती है वैशाख अमावस्या, इसी दिन हुई थी श्रीराम के युग की शुरुआत

नई दिल्लीः ग्रीष्म काल की शुरुआत का समय होने के कारण वैशाख मास पुण्य व धर्म के क्षेत्र में बहुत ही अधिक महत्व रखता है. ऋतु परिवर्तन के कारण जब जप-तप अनुष्ठान बेहद कठिन होने लगते हैं तो इस मास के किसी भी दिन केवल जल दान कर देने भर से महाराज चित्रगुप्त इसे पुण्य लिखने वाली पत्रिका में हजार पुण्य का फल लिख लेते हैं. इसलिए वैशाख और ज्येष्ठ मास हरिनाम स्मरण के ही उत्तम समय काल हैं. इन दोनों ही महीनों की अमावस्या व पूर्णिमा अपना अलग ही महत्व रखती है. 

कल है वैशाख अमावस्या
सनातन परंपरा व पंचांग के अनुसार बुधवार को वैशाख अमावस्या की तिथि है. इस दिन पितरों का स्मरण कर उन्हें पिंडदान व तर्पण किया जाता है. जो लोग श्राद्ध पक्ष में किसी कारण वश पितृ पूजा नहीं कर पाते हैं, वैशाख मास की अमावस्या को वह भी उनका पूजन कर सकते हैं. लॉकडाउन के कारण तीर्थ स्नान नहीं किया जा सकता है, लेकिन घर में ही गंगाजल डालकर स्नान किया जा सकता है. शनिदेव का जन्म अमावस्या के दिन हुआ था, इसलिए प्रत्येक अमावस्या को उनकी पूजा का विधान बना हुआ है. 

त्रेतायुग का आरंभ दिवस
वैशाख अमावस्या का दिन धर्म-कर्म, स्नान-दान, तर्पण आदि के लिये शुभ माना जाता है. ग्रह दोष विशेषकर काल सर्प दोष से मुक्ति पाने के लिये भी अमावस्या तिथि पर ही ज्योतिषीय उपाय भी अपनाये जाते हैं. वैशाख हिंदू वर्ष का दूसरा माह होता है. मान्यता है कि इसी माह से त्रेता युग का आरंभ हुआ था इस कारण वैशाख अमावस्या का धार्मिक महत्व बहुत अधिक बढ़ जाता है. दक्षिण भारत में शनि पूजा की इस दिन विशेष परंपरा रही है. 

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यह है कथा
धर्मवर्ण नाम के एक धार्मिक ब्राह्मण हुआ करते थे. व्रत-उपवास करते रहते, ऋषि-मुनियों का आदर करते व उनसे ज्ञान ग्रहण करते. एक बार उन्होंने किसी महात्मा के मुख से सुना कि कलियुग में भगवान विष्णु के नाम स्मरण से ज्यादा पुण्य किसी भी कार्य में नहीं है. अन्य युगों में जो पुण्य यज्ञ करने से प्राप्त होता था उससे कहीं अधिक पुण्य फल इस घोर कलियुग में भगवान का नाम सुमिरन करने से मिल जाता है. धर्मवर्ण ने इसे आत्मसात कर लिया और सांसारिकता से विरक्त होकर सन्यास लेकर भ्रमण करने लगे. 

सांसारिक जीवन में की वापसी
एक दिन भ्रमण करते-करते वह पितृलोक जा पंहुचा. वहां धर्मवर्ण के पितर बहुत कष्ट में थे. पितरों ने उसे बताया कि उनकी ऐसी हालत धर्मवर्ण के सन्यास के कारण हुई है क्योंकि अब उनके लिये पिंडदान करने वाला कोई शेष नहीं है. यदि तुम वापस जाकर गृहस्थ जीवन की शुरुआत करो, संतान उत्पन्न करो तो हमें राहत मिल सकती है. साथ ही वैशाख अमावस्या के दिन विधि-विधान से पिंडदान करे.  धर्मवर्ण ने उन्हें वचन दिया कि वह उनकी अपेक्षाओं को अवश्य पूर्ण करेगा. इसके बाद धर्मवर्ण अपने सांसारिक जीवन में वापस लौट आया और वैशाख अमावस्या पर विधि विधान से पिंडदान कर अपने पितरों को मुक्ति दिलाई.

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