नई दिल्ली: गर्भावस्था के समय वह 9 महीने हर महिला के लिए एक अलग जीवन अनुभव करने का समय होता है. गर्भावस्था के बाद ही स्त्री में मातृत्व का संचार होता है, क्योंकि वह अपने साथ एक और जीवन को महसूस करती है. लेकिन 9 महीने तक इस क्षण का अनुभव करने के बाद कुछ मां बच्चे को जन्म देने के समय ही अपना जीवन खो देती है.
देश ने हासिल की बड़ी उपलब्धि
भारत में मातृ मृत्यु दर(MMR) में काफी कमी देखी जा रही है जो देश के लिए उपलब्धि से कम नहीं है. साल 2006, अक्टूबर महीने में भारत में पहली बार मातृ मृत्यू दर पर रिपोर्ट जारी की गई थी. यह रिपोर्ट 1997 से 2003 तक के आंकड़ो पर बनाई गई थी. जिसकी स्थिति काफी दयनीय थी. उसके बाद 2011-13 के बीच यह दर प्रति 100,000 में 167 व 2014-16 में यह दर घटकर 130 पर आ गया. इसके बाद जारी रिपोर्ट में यह दर 2015-17 में एक अच्छी गिरावट के साथ 122 पर आ गई. गुरूवार को सैम्पल रजिस्ट्रेशन सिस्टम इसका सर्वे कर रिपोर्ट पेश करती है. SSS पूर देश की मृत्यू दर, जन्म दर व अन्य प्रजनन दर की क्षमता का आंकलन करता है. SSS पूरे भारत के मृत्यू दर का आंकड़ा निकालने के लिए तीन भागों में विभाजित किया गया है. इन तीनों भागों का आंकड़ा मिलाकर पूरे देश की मातृ मृत्यु दर(MMR) निकाली जाती है.
पहले थी बड़ी बुरी स्थिति
भारत में प्रति वर्ष लगभग 33.5 लाख बच्चे 9 महीने से पहले ही जन्म लेते हैं लेकिन जन्म के दौरान होने वाली परेशानियों की वजह से करीब 3.5 लाख ऐसे बच्चों की मृत्यु 5 वर्ष या उससे पहले हो जाती है. बच्चे को जन्म देने के समय कई महिलाएं भी जान गवां बैठती है जो देश के लिए चिंताजनक मसला है. पर धीरे- धीरे इसकी दर में कमी आ रही है और SSS की नई रिपोर्ट से पता चला है कि मातृ मृत्यु दर में लगभग 28 प्रतिशत तक की कमी आई है. जो पिछले साल तक लगभग 27 प्रतिशत तक थी.
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WHO ने भी की तारीफ
SSS की रिपोर्ट को देखा जाए तो यह दर दक्षिण राज्यों में 77 से घटकर 72 और भारत के अन्य राज्यों में यह दर 93 से घटकर 90 हो गई है. वर्ल्ड हेल्थ ऑरगेनाइजेशन(WHO) की पिछले वर्ष के रिपोर्ट को देखते हुए भारत में घटते मातृ मृत्यु दर की प्रशंसा की थी. साथ ही यह भी कहा था कि भारत अपने सतत विकास के लक्ष्य को हासिल करने के रास्ते पर अग्रसर है. संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक MMR को प्रति एक लाख जन्म पर यह संख्या 70 से भी कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया है.
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किस वजह से होती है मातृ मृत्यु
कई अध्ययनों में पाया गया है कि भारत में लगभग 59 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया यानी खून की कमी की शिकार हैं. एनीमिया को मातृ मृत्यु के प्रमुख वजह मानी जाती है.
एनीमिया में महिलाओं को खून की कमी होती है जिस वजह से प्रसव के समय महिलाओं के ज्यादा खून बह जाना काफी खतरनाक होता है. क्योंकि शरीर में 60 प्रतिशत से कम हीमोग्लोबिन होने से इसे एक खतरे का संकेत भी माना जाता है. किंतु कई बार पहले से एनीमिया से जूझ रही महिलाओं का जब प्रसव के समय खून ज्यादा बह जाता है तो बच्चे को जन्म देते समय ज्यादातर मामलों में महिला की मृत्यु हो जाती है.