नई दिल्ली. एक तरफ तो ईरान बदला लेने के लिए कसमसा रहा है, दुनिया ईरान-अमरीका युद्ध की बात पर चर्चा करने लगी है. रूस के कान में अमरीकी हमले के विरोध में चीन के शिकायती स्वर गूंजने लगे हैं, तो वहींं दूसरी ओर अमरीका भी समझदारी के साथ अपनी व्यूह रचना तैयार करने लगा है.
अमेरिका ने लिया देशों को विश्वास में
हालांकि सभी मित्र-राष्ट्रों को विश्वास में लेने का समय अभी अमरीका को नहीं मिल पाया है लेकिन उसने यूरोप और साउथ एशिया के कुछ देशों से बात करके अपना पक्ष रखा है. इन देशों में पाकिस्तान, फ़्रांस, जर्मनी और अफगानिस्तान शामिल हैं.
अमरीकी विदेश मंत्री ने रखा अपना पक्ष
अमरीकी विदेश मंत्री ने इस बहाने अपनी मैत्री के तार दुबारा से छेड़े और अपना पक्ष तथा आत्मविश्वास भी साफ़-साफ़ इन देशों के सामने रखा. माइक पोम्पियो ने इन देशों से बात करने के दौरान कहा कि अमरीका मध्य-पूर्व में शान्ति स्थापना के लिए कृत-संकल्प है और इसके साथ ही वह अमेरिका और अमरीकी सेना के हितों की सुरक्षा भी करने के लिए दृढ़-संकल्पित है.
''सुलेमानी को मारना ज़रूरी था''
अमेरिका ने इन देशों से बात करते हुए उन्हें स्पष्ट तौर पर बताया कि अमरीका को मध्य-पूर्व क्षेत्र में अमेरिकी हितों की सुरक्षा के लिए सुलेमानी को खत्म करना पड़ा है. अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने पाकिस्तान के सेना-प्रमुख जनरल कमर बाजवा, जर्मनी के विदेश मंत्री हाइको मास, फ्रांस के विदेश मंत्री जिएन युवेस ले ड्रियान और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी से फोन पर बात की.
सोशल मीडिया ने जताई हैरानी
ट्विटर पर माइक पोम्पियो के जनरल बाजवा को किये गए इस फोन कॉल से विवाद छिड़ गया है. ज्यादातर लोगों ने कहा कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को फोन करने के बजाय जनरल बाजवा को फोन किया गया - इसका अर्थ साफ़ है कि पाकिस्तान की असली कमान सेना के हाथ में है और इसका मतलब ये भी है कि दुनिया को पता है कि इमरान खान सिर्फ सरकार के मुखिया का मुखौटा हैं.