नई दिल्ली: ब्रिटेन की हाई कोर्ट ने भगोड़े नीरव मोदी की प्रत्यार्पण के खिलाफ याचिका को खारिज कर दिया है. ब्रिटेन के उच्च न्यायालय ने हीरा कारोबारी नीरव मोदी की मानसिक सेहत के आधार पर प्रर्त्यपण के खिलाफ अपील बुधवार को खारिज कर दी.
क्या कहा कोर्ट ने
लंदन के उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी कि नीरव के आत्महत्या करने का जोखिम ऐसा नहीं है कि उसे धोखाधड़ी और धनशोधन के आरोपों का सामना करने के लिए भारत प्रत्यर्पित करना अनुचित और दमनकारी होगा. न्यायाधीश जेरेमी स्टुअर्ट-स्मिथ और न्यायाधीश रॉबर्ट जे ने अपने फैसले में कहा कि जिला न्यायाधीश सैम गूजी की वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट अदालत का पिछले साल प्रत्यर्पण के पक्ष में दिया गया आदेश सही था. न्यायाधीश जेरेमी स्टुअर्ट-स्मिथ और न्यायाधीश रॉबर्ट जे ने इस साल की शुरुआत में रॉयल कोर्ट्स ऑफ जस्टिस में नीरव की अपीलों पर सुनवाई की अध्यक्षता की थी.
ब्रिटेन की तत्कालीन गृह मंत्री ने दिया था आदेश
ब्रिटेन की तत्कालीन गृह मंत्री प्रीति पटेल ने पिछले साल अप्रैल में न्यायाधीश गूजी की व्यवस्था के आधार पर नीरव के प्रत्यर्पण का आदेश दिया था और तब से मामले में अपीलों की प्रक्रिया चल रही थी. कोर्ट ने कहा कि भारत सरकार ने जो आश्वासन दिये हैं, उनके आधार पर हम स्वीकार करते हैं कि नीरव मोदी की चिकित्सकीय देखभाल तथा प्रबंधन के लिए उचित चिकित्सा प्रावधान और उचित योजना होगी.
नीरव मोदी ने जताया था खुदखुशी का विचार
फैसले में विशेषज्ञ गवाह के बयान के आधार पर कहा गया है कि नीरव मोदी ने अभी तक मानसिक रोग का कोई लक्षण प्रदर्शित नहीं किया है. इसमें कहा गया कि उसने खुदकुशी के विचार को जताया है लेकिन कभी आत्महत्या या खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं की और ना ही ऐसा करने की कोई योजना का खुलासा किया.
फैसले में यह भी माना गया है कि मुंबई की जिस आर्थर रोड जेल की बैरक 12 में प्रत्यर्पण के बाद हीरा कारोबारी को रखा जाना है उसमें सुरक्षा उपाय किये गये हैं जिससे सुनिश्चित होगा कि आत्महत्या की कोशिश के जोखिम को कम करने के लिए प्रभावी तरीके से सतत निगरानी हो.
बड़ी अदालत में अपील कर सकता है नीरव मोदी
अपील हार जाने के बाद नीरव सार्वजनिक महत्व के कानून के बिंदु पर उच्चतम न्यायालय जा सकता है. वह उच्च न्यायालय के फैसले के 14 दिन के भीतर उसके खिलाफ उच्चतम न्यायालय में आवेदन कर सकता है. हालांकि उच्चतम न्यायालय में अपील तभी की जा सकती है जब उच्च न्यायालय ने प्रमाणित किया हो कि मामला आम जनता के महत्व से जुड़े कानून के बिंदु वाला है.
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