नई दिल्ली: कोरोना वायरस की दहशत से अमेरिका कांप रहा है. सुपरपावर की पावर धरी की धरी रह गई. वायरस ने दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क पर सबसे ताकतवर हमला किया. कोरोना के वर्ल्ड चार्ट में अभी भी अमेरिका ही टॉप पर है और अब ये कोरोना डोनाल्ड ट्रम्प की कुर्सी भी लील जाएगा.
कोरोना खा जाएगा ट्रम्प की कुर्सी!
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के अजीबो-गरीब काम का हर्जाना उन्हें सत्ता गंवा कर चुकाना पड़ सकता है. सबसे पहले आप उनके इस बयान को पढ़िए, उसके बाद एक-एक करके 4 मुख्य वजह से रूबरू करवाते हैं.
हाल ही के दिनों में ट्रम्प ने कहा था कि "हमारे यहां ज़्यादा मामले हैं, मैं इसे बुरा नहीं मानता, मैं इसे कुछ लिहाज़ से अच्छा मानता हूं क्योंकि हमारी टेस्टिंग बेहतर है. अगर हम 10 लाख लोगों का टेस्ट करते बजाय 1 करोड़ 40 लाख लोगों के तो हमारे पास बहुत कम मामले होते, तो ये मेरे लिए शान की बात है, वाकई में शान की बात है. ये टेस्टिंग और उन कामों के लिए सम्मान की बात है जो कई सारे प्रोफेशनल्स कर रहे हैं."
वजह नंबर 1). सबसे ज़्यादा मामले होना शान की बात
कोरोना के सबसे ज़्यादा मामले अमेरिका में होने को शान बताने वाले डोनाल्ड ट्रम्प की शान अब कोरोना वायरस ही निकालने वाला है. अमेरिका में चुनाव चल रहा है और राष्ट्रपति की रेस में अभी ट्रम्प की और जो बिडेन की रेस है. इस रेस में कोरोना वायरस जहां अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प के पैरों को पीछे की ओर खींच रहा है, वहीं जो बिडेन को मौका दे रहा है कि वो ये रेस जीत जाएं.
वजह नंबर 2). कोरोना से आई मंदी बनेगी ट्रम्प की दुश्मन
वैसे तो कोरोना वायरस से वैश्विक मंदी आ चुकी है, हर देश की अर्थव्यवस्था धराशायी हो रही है लेकिन अमेरिका में चुनावी साल में आई इस त्रासदी ने ट्रम्प के जाने का रास्ता बना दिया है. अमेरिका में जबरदस्त बेरोजागारी है, लोगों की खर्च करने की क्षमता जा चुकी है, अमेरिका की जीडीपी लगातार गिर रही है. इन सब की ज़िम्मेदारी डोनाल्ड ट्रम्प के कंधे पर आती है जो व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस में अगले 4 साल का सपना देख रहे हैं.
वजह नंबर 3). नवंबर में ट्रम्प को मिलेगी ऐतिहासिक हार
ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के नेशनल इलेक्शन मॉडल ने जो संभावनाएं बताई हैं, उसके मुताबिक ट्रम्प की कुर्सी खिसकनेवाली है और कोरोना वायरस से आई मंदी ट्रम्प के ऐतिहासिक हार की इबारत लिखने जा रही है.
नए नेशनल मॉडल के मुताबिक ट्रम्प को सिर्फ 35 फीसदी वोट ही हासिल हो रहे हैं, जबकि जनवरी में उन्हें 55 फीसदी वोट से जीत मिल रही थी, ये इस सदी में सबसे खराब प्रदर्शन रहने वाला है.
विशेषज्ञ भी मानते हैं कि हाल के हफ्तों ने तस्वीर बदल दी है और जो बिडेन अब रेस में आगे निकल चुके हैं और कोई कुछ भी कहे लेकिन ट्रम्प के लिए माहौल ये है कि बेरोजगारी और कोरोना संकट में उनकी लापरवाहियां उन्हें हार की ओर लेकर जा रही है. आपको बताते हैं कि रिपोर्टर के सवाल पर विशेषज्ञ का क्या कहना है.
3 हफ्तों में गिरी ट्रम्प की 'टीआरपी'
रिपोर्टर- "मैंने जो ताज़ा बदलाओं के दौरान देखा है कि ग्रेग आप बिडेन को 55 से 45 फीसदी तक अंक देते हैं कि वो ट्रम्प को हरा देंगे, क्या ये सही है?"
रिपोर्टर के इस सवाल के जवाब में एजीएफ इनवेस्टमेंट्स के चीफ यूएस पॉलिसी स्ट्रेटजिस्ट ग्रेग वैलेरी ने कहा कि "मैं 50/50 देखता हूं लेकिन मुझे कहना होगा कि बिडेन के लिए मैं ज़्यादा आशावान हूं, चाहे बाज़ार जो कहे, लास वेगास जो कहे या लंदन के सट्टेबाज़ जो कहें. अधिकतर सोचते हैं कि ट्रम्प की जीत पक्की है लेकिन मैं उनके आंकड़े देखता हूं जो पिछले 2-3 हफ्तों में आए हैं, उनके आंकड़ें भयानक है. उन्होंने जिस तरह से इस त्रासदी में काम किया, या नौकरी को लेकर मूल्यांकन हो, बिडेन ट्रम्प को हराते हुए दिख रहे हैं. कई राज्यों में उलटफेर हुआ है, खास तौर पर अपर मिडिलवेस्ट में. लिहाज़ा मैं कहूंगा कि बिडेन के पास मौका है और ट्रम्प इस वक़्त ढेर हो रहे हैं."
वजह नंबर 4). कोरोना पर ट्रम्प की लापरवाही पड़ेगी भारी
दरअसल, शुरुआत से ही डोनल्ड ट्रम्प ने कोरोना वायरस की महामारी को गंभीरता से नहीं लिया, शुरुआत में ट्रम्प को लग रहा था कि अमेरिका में इसका कोई असर नहीं होने वाला और जब अमेरिका दुनिया में नंबर वन बन गया, तो डॉनल्ड ट्रम्प हर प्रेस कांफ्रेंस में चीन पर हमला करने लगे और उन्हें ही दोषी करार देते रहे.
ट्रम्प के लिए काफी कुछ भारी पड़ा जैसे क्या-क्या? ये आपको एक एक करके समझाते हैं.
ट्रम्प को क्या पड़ा भारी
- देर से लॉकडाउन करना
- मलेरिया की दवा पर ज़िद
- वैज्ञानिकों की बात ना सुनना
- अपने चीफ डॉक्टर की ना सुनना
- कोरोना वायरस को शुरुआत में गंभीरता से ना लेना
- अपनी नाकामी को ना मानना
- जिम्मेदारी लेने से बचते रहना
- चीन को कठघरे में खड़ा करना
- जबरन लॉकडाउन को खोलना
कोरोना मोर्चे पर डॉनल्ड ट्रम्प की हर एक बात को जरिया बनाया जा रहा है कि जिससे जो बिडेन लगातार ट्रम्प के मुकाबले मजबूत होते जा रहे हैं. ग्रेग वैलेरी ने कहा कि "उनका वैज्ञानिकों की ना सुनना, उनकी सलाह ना लेना. डाक्टर फाऊची हो सकता है इसे जारी रखें, मैं उन्हें प्रेस कांफ्रेंस में खामोश नहीं देखता. मैं समझता हूं कि ये बहुत बड़ी गलती है. मतलब जनवरी में चीन से आनेवाली फ्लाइट्स को रोकना था लेकिन उसके बाद भी लोग आते रहे लेकिन फरवरी में क्या हुआ?"
उन्होंने ये भी बोला कि "मैं समझता हूं जब इतिहास लिखा जाएगा तो फरवरी महीने में उनके निर्णय ना लेने की क्षमता उनकी नीतिगत विकलांगता को गिना जाएगा. गिना जाएगा कि उन्होंने उतनी तेज़ी से एक्शन नहीं लिया जितनी तेजी से लेना चाहिए था. और उनकी तमाम बातें रिकॉर्ड में हैं, जिसे बिडेन इस्तेमाल करेंगे, जब ट्रम्प ने ये कहा कि मैं जिम्मेदारी नहीं लेता, या जब उन्होंने कहा कि हमारे यहां महज 15 मामले हैं और वो जल्दी ही शून्य हो जाएंगे. बहुत सारी ऐसी बातें हैं जो ट्रम्प ने फरवरी महीने में कही हैं, जिन्हें चुनाव प्रचार के दौरान लगातार चलाया जाएगा"
वैसे तो बिडेन के पास पहले आंकड़े नहीं थे, लेकिन कोरोना संकट में जिस तरह से मंदी आई है और जिस तरह से बेरोजगारी बढ़ने के साथ ट्रम्प के बयान आए हैं वो सब ट्रम्प की एक अलग तस्वीर बनाते हैं. उनके निर्णय लेने की क्षमता पर सवाल उठने लगे हैं, उनका मनमाना रवैया, उनका बड़बोलापन, सवाल पूछने पर मीडिया को कोसना ये सब विपक्ष का हथियार बन गए हैं.
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अमेरिका में डॉनल्ड ट्रम्प की लोकप्रियता काफी रही है लेकिन इन चुनावों में ये लोकप्रियता ख़त्म होती जा रही है, कोरोना संकट के आने के साथ ट्रम्प ने जिस तरह से इस त्रासदी को लेकर मनमाने तरीके से काम किया है और फिर भी मामले कम नहीं हुए बल्कि बढ़ते चले गए, ये बताते हैं कि ट्रम्प नाकाम रहे और ग्रट डिप्रेशन से भी खतरनाक मंदी के मुहाने पर अमेरिका को लेकर चले आए. जाहिर है चुनाव में डॉनल्ड ट्रम्प को इसकी कीमत चुकानी होगी.
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