Armenia Azerbaijan war में दिख रही इस्लामी बर्बरता, भारत के लिए भी सचेत रहना जरूरी

अज़रबैजान (Ajarbaizan) की तरफ से आर्मेनिया (Armenia ) के सिविलियन इलाकों पर आकाश से मिसाइलें दागी का रही हैं. तुर्की (Turkey) ने आईएसआईएस (ISIS) के इस्लामिक आतंकी भी उतार दिए हैं. पाकिस्तान (Pakistan) ने अपने घर में ट्रेंड इस्लामी आतंकियों को आर्मेनिया के ख़िलाफ़ उतार दिया है. ये भारत सहित पूरी दुनिया के लिए बड़े खतरे के संकेत हैं.    

Written by - Rakesh Pathak | Last Updated : Oct 6, 2020, 08:33 AM IST
    • आर्मेनिया अजरबैजान के बहाने इस्लामी कट्टरपंथ की राजनीति की वापसी
    • दुनिया के सभी सभ्य देशों पर खतरा
Armenia Azerbaijan war में दिख रही इस्लामी बर्बरता, भारत के लिए भी सचेत रहना जरूरी

नई दिल्ली: अजरबैजान और आर्मेनिया (Armenia Ajarbaizan) के बहाने दुनिया एक बार फिर इस्लामिक कट्टरपंथ (Islamic fanatism) और विस्तारवादी नजरिए से रूबरु हो रही है. ये स्थिति दुनिया के सभी गैर इस्लामी मुल्कों के लिए खतरे की घंटी है. 

इस्लामिक बर्बरता के इतिहास दोहराया जा रहा
अजरबैजान और आर्मेनिया में ये कोई नया घटनाक्रम नहीं है.  एक  समय में आर्मेनिया की बहुत छोटी ईसाई आबादी तब ऑटोमन एम्पायर का हिस्सा थी.   चूंकि आर्मेनिया ईसाई बहुल इलाका था.  लिहाज़ा वो इस्लाम की मानने वाले तुर्की की अखरता था.  इस इलाके में तुर्की ने बर्बरता की हदों तक ईसाइयों पर ज़ुल्म किए.  पर वो उनका कन्वर्जन कर पाने में असफल रहे.  बर्बरता और नरसंहार  से भरे ये करीब 700 साल थे.  13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक ये क्रूरता जारी रही. 


1915 में पहले विश्वयुद्ध के दौरान आर्मेनिया के ईसाइयों ने अपनी आज़ादी की लड़ाई छेड़ दी. तब आर्मेनिया के करीब 30 लाख की ईसाई आबादी ने सेंट्रल फोर्सेज के बजाय एलायड फोर्सेज का साथ दिया. लेकिन इस फैसले की उन्हें बड़ी भारी और बर्बर कीमत चुकानी पड़ी.  तब के इस्लामिक स्टेट तुर्की ने आर्मेनिया पर हमला किया और भीषण नरसंहार को अंजाम दिया गया था. इसकी शुरुआत आज़ादी के लिए अलख जगा रहे आर्मेनिया के करीब 400 विचारकों की हत्या से हुई. तुर्की उसी क्रूरता को फिर से दोहराने की फिराक में है. 

रेगिस्तान में महिलाओं बच्चों से बर्बरता
ये नरसंहार इतना भीषण था कि 30 लाख की आबादी वाले आर्मेनिया में ईसाइयों की संख्या महज 3 लाख रह गई. इस जंग में तुर्की ने ईसाई महिलाओं बच्चों के साथ जो किया गया वो इंसानियत के मुंह पर शर्म की कालिख पोतने वाला था. मासूम नागरिकों को तीन तरह से यातना देकर इस्लामी देश तुर्की ने आर्मेनिया के ईसाइयों का नरसंहार किया.
1. मेसोपोटामिया के रेगिस्तान में बूढ़े, बच्चों और महिलाओं को बिना भोजन और पानी के नग्न करके छोड़ दिया गया. 
2. घरों को बाहर से सील कर आग लगा दी गई.
3. गर्दनें उतारी गई और गैस चैंबर में ईसाई बच्चों को डाल दिया गया. 

 इतना ही नहीं ईसाई औरतों को सेक्स स्लेव के तौर पर बेचा गया.  जैसा कि पिछले कुछ सालों में इस्लामिक स्टेट के पवित्र आतंकियों ने सीरिया और इराक़ में किया था. 
(इस नरसंहार के बारे में आप गूगल कर सकते हैं, इतिहास की किताबें भी आपको बताएंगी बस इंडियन हिस्टोरियन को न पढ़ें).

पूरी दुनिया का ध्यान आर्मेनिया-अजरबैजान की जंग पर
इजरायल मौजूदा जंग में तुर्की और अज़रबैजान के लिए मुख्य हथियार सप्लाई करने वाले देश के तौर पर उभरा है.  पाकिस्तान और तुर्की अब धार्मिक एजेंडे पर इंटरनेशनल लॉबिंग में जुट चुके हैं. 

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस्लामिक कम्युनिटी का एक्टिव होना अनायास नहीं है. इसके पीछे खिलाफत-ए-उस्मानिया के बर्बर शासन को फिर से पुनर्जीवित करने की मनहूस इच्छा काम कर रही है. जो कि पूरी दुनिया की शांति और सभ्यता के लिए खतरा है.  

भारत के खिलाफ भी इस्लामी साजिश
इसी कड़ी का हिस्सा है भारत में अराजकता फैलाना. पिछले कुछ दिनों से भारत में अचानक अराजकता रचने की साजिशें सामने आ रही हैं. पीएफआई (PFI) और एसडीपीआई (SDPI) जैसे संगठन तुर्की की उसी कट्टरपंथी सोच की नुमाइंदगी करते हैं, जो इंसानियत और गैर मुस्लिम लोगों के लिए घातक हैं.  ख़ास बात ये है कि भारत जैसे शक्तिशाली और लोकतांत्रिक देश में कट्टरपंथियों की स्ट्रैटेजी अलग है.  यहां पीएफआई जातिवादी ज़हर के जरिए पर्दे के पीछे से काम कर रहा है. 


जिसका उद्देश्य है-
1. राष्ट्रवादी छवि वाली सरकार की हिंदू समर्थक छवि को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना. 
2. हार्डकोर मुस्लिमों चेहरों को वामपंथी जमातों की आड़ में खड़ा करना ताकि ये अराजकता धार्मिक ना लगे. 
3. दंगों को भड़काना और इसे हिंदूवादी सरकार की कथित दमन नीति के ख़िलाफ़ लोगों का मुस्लिमों-दलितों का गुस्सा बताना

भारत में फूट डालकर इस्लामी आतंकवाद को समर्थन देने वाले संगठन अपने एजेंडे को बड़ी आसानी से ज़मीन पर उतार सकते हैं. भारत की मुख्य विपक्षी पार्टियां ऐसे संगठनों का हथियार बनने को तैयार हैं. क्योंकि उन्हें अल्टीमेटली सत्ता की प्यास है. राष्ट्र और बहुसंख्यक आबादी की सुरक्षा की नहीं. ये स्थिति खतरनाक है. 
इस साजिश पर रोक तभी लग पाएगी जब भारत की पूरी जनता सचेत होकर इन इस्लामी कट्टरपंथियों और दोगली राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों को पहचान लेगी. 

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