लंदन: भारत में दुनिया के कुछ सबसे विशाल डायनासोर रहा करते थे. यह खुलासा एक नई रिसर्च में हुआ है.मध्य भारत के जीवाश्म विज्ञानियों ने विशाल पौधे खाने वाले टाइटनोसॉरस की कॉलोनियों की खोज की है. यहां डायनासोर के 92 घोंसलों और 256 अंडों के साथ एक जीवाश्म डायनासोर प्रजाति का पता लगाया है. मध्य प्रदेश के नर्मदा क्षेत्र में चल रही रिसर्च में यह खुलासा हुआ है.
क्यों अहम है यह खोज
हमारे ग्रह के अतीत के रहस्यों को जानने के लिए, वैज्ञानिक आमतौर पर चट्टानों और जीवाश्म हड्डियों का अध्ययन करते हैं.अंडे अक्सर अनदेखा किए जाते हैं लेकिन सूचना के अत्यंत समृद्ध स्रोत हैं. पक्षियों, सरीसृपों, डायनासोरों और कुछ अलग तरह के स्तनधारियों के अंडे तो 200 मिलियन से अधिक वर्षों बाद भी मिल रहे हैं,
खोज के लिए अंडे बेहद महत्वपूर्ण
दुर्लभ जीवाश्मित अंडे के छिलके प्राचीन प्राणियों के व्यवहार और आहार को रोशन कर सकते हैं, जलवायु में परिवर्तन को उजागर कर सकते हैं और इस बात पर प्रकाश डाल सकते हैं कि हमारे प्रागैतिहासिक रिश्तेदार यानी डायनासोर कैसे रहते थे और संचार करते थे.
अपने बच्चों को प्यार नहीं करते थे ये डायनासोर
घोंसलों की एक दूसरे से निकटता को देखते हुए, शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि .हालांकि, अधिकांश पक्षी प्रजातियों के विपरीत, टाइटनोसॉरस माता-पिता डायनासोर कॉलोनियों में एक साथ अंडे देते हैं, जैसा कि आज कई पक्षी करते हैं. पर वे अपने बच्चों को प्यार नहीं कर रहे थे. शोधकर्ताओं को लगता है कि इन प्राणियों ने संभवतः अपने अंडे दिए और फिर अपनी संतानों को छोड़ दिया.
संतानों को छोड़ने का कारण
अध्ययन के प्रमुख लेखक और दिल्ली विश्वविद्यालय में एक जीवाश्म विज्ञानी जी प्रसाद ने कहा, "चूंकि टाइटनोसॉर आकार में बड़े थे, इसलिए पास-पास स्थित घोंसले उन्हें पैंतरेबाज़ी करने और अंडों को सेने या बच्चों को खिलाने के लिए घोंसले में जाने की अनुमति नहीं देते थे.क्योंकि माता-पिता के अंडों पर पड़ जाते और उन्हें रौंद देते.
कैसे हैं ये अंडे
ये अंडे 15 सेंटीमीटर और 17 सेंटीमीटर परिधि वाले हैं जो कई टाइटनोसॉर प्रजातियों के हो सकते हैं. प्रत्येक घोंसले में अंडों की संख्या 1 से 20 तक है.
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