अब दुनिया देखेगी श्रीलंका में दो भाइयों की तानाशाह सत्ता

अब श्रीलंका में भाइयों की सरकार चलेगी और ऐसा उदाहरण दुनिया के राजनैतिक इतिहास में पहले कभी देखने को नहीं मिला है कि किसी देश में एक भाई प्रधानमंत्री तो एक भाई राष्ट्रपति..

Written by - Parijat Tripathi | Last Updated : Aug 11, 2020, 10:00 PM IST
    • दोनों भाई सर्वोच्च पदों पर
    • एक भाई प्रधानमन्त्री और दूसरा राष्ट्रपति
    • एसएफपी और यूएनपी को किया बाहर
    • श्रीलंका की गठबन्धन सरकार गिरी
    • संविधान में किये जायेंगे संशोधन
    • चीन-प्रेम और भारत-विरोध आ सकता है सामने
अब दुनिया देखेगी श्रीलंका में दो भाइयों की तानाशाह सत्ता

नई दिल्ली.  हाल ही में अफवाह उड़ाई गई थी कि श्रीलंका के चुनावों के परिणाम सामने आने पर भारत की चिन्ता बढ़ गई है. जहां चीन भारत की चिन्ता नहीं बढ़ा पाया, तो श्रीलंका के चुनाव परिणाम भारत की चिन्ता कैसे बढ़ा सकते हैं. न भारत किसी देश पर आश्रित है न किसी से उसे भय है, इसलिए ऐसे जुमले भारत के भीतर पत्रकारिता कर रहे देशद्रोही सोच वाले लोग पेश करते हैं.  

 

दोनों भाई सर्वोच्च पदों पर 

श्रीलंका के संसदीय चुनावों ने देश में भाई राज स्वीकार किया है. बड़े भाई महिंद राजपक्ष जो कि बड़े भैया हैं, श्रीलंका के प्रधानमंत्री होंगे और गोटाबया जो कि छोटे भाई हैं श्रीलंका के राष्ट्रपति पद पर काबिज होंगे. ‘श्रीलंका पोदुजन पेरामून’ इन दोनों राजनीतिक रूप से सफल भाइयों की पार्टी का नाम है. बरसों से श्रीलंका की राजनीती की सर्वोच्च दो पार्टियों को भाई-पार्टी ने लगभग अस्तित्वहीन कर दिया है. 

एसएफपी और यूएनपी को किया बाहर 

श्रीलंका की पारम्परिक राजनीतिक पार्टियां श्रीलंका फ्रीडम पार्टी और युनाइटेड नेशनल पार्टी इन चुनावों के बाद राष्ट्रीय राजनीति से बारह पत्थर बाहर होती दिखाई दे रही हैं. इनके नेताओं के बड़े नाम हैं जो हमेशा श्रीलंका सरकारों पर काबिज रहे हैं जैसे सिरीमावो भंडारनायके, चंद्रिका कुमारतुंगे, जयवर्द्धने, प्रेमदासा. इन लोगों के नेतृ्त्व वाली ऐतिहासिक पार्टियां अब अपने दिन गिन रही हैं. 

श्रीलंका की गठबन्धन सरकार गिरी

पिछली श्रीलंका सरकार एक गठबन्धन सरकार थी जो एक दूसरे की टांग-घसीटी और भारत की कांग्रेस की तरह बेशर्म भ्रष्टाचार का शिकार बन गई. इसके राष्ट्रपति मैत्रीपाल श्रीसेन और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के द्वारा किया गया गठबंधन शहीद हो गया. वैसे भी ये सरकार राष्ट्र की सुरक्षा और कल्याण के प्रति समर्पित नहीं थी. 2018 में हुए गिरिजाघर आतंकी हमले के बाद लोगों को पता चल गया था कि इस सरकार की गुप्तचर व्यवस्था और लापरवाही आला दरजे की है. और यह भी चुनाव हारने की बड़ी वजह बनी.

चीन और भारत की मिसाल दी

दोनो नेता भाइयों का एक तीसरा भाई भी है और वह भी नेता ही है. इस तीसरे भाई बसील राजपक्षे ने वक्तव्य दिया है कि अब उनकी पार्टी चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी और भारत की भारतीय जनता पार्टी की तरह टिक कर श्रीलंका में एक छत्र राज्य करेगी. इसमें कोई संदेह भी नहीं क्योंकि इन संसदीय चुनावों में  साठ फीसदी से अधिक वोटों की मात्रा राजपक्षे की पार्टी के पक्ष में गये हैं और इनको कुल 225 सदस्यों वाली संसद की 145 सीटें हासिल हुई हैं. 

संविधान में किये जायेंगे संशोधन

 राजपक्षे भाइयों के पक्ष में सामने आये इस ऐतिहासिक बहुमत के उपयोग की तैयारी कर ली गई है. अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि जैसा राजपक्षे भाइयों ने अपने चुनावी भाषणों में कहा भी था - अब उनकी सरकार श्रीलंका के संविधान में हुए संशोधनों को पलटने के लिए इस प्रचंड बहुमत का उपयोग करेगी.

चीन-प्रेम, भारत-विरोध आ सकता है सामने

दोनो राजपक्षे भाई चीन के प्रति जो गहन मैत्री भाव रखते हैं, वह दुनिया में जाहिर है. अब ये लोग भारत-श्रीलंका समझौते के बाद सामने आये 13 वें संशोधन को रद्द करके श्रीलंका के तमिलों की संघवादी छूटें छीन सकते हैं जो भारत के साथ तनाव बढ़ायेगा. किन्तु ये राजपक्षे बन्धु भारत के लिये नहीं बल्कि अब श्रीलंका के प्रजातंत्र के लिये अवश्य खतरा बन सकते हैं. 

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