नेपाल शाही हत्याकांड के 20 साल: उस रात की कहानी जिसका सच थ्योरी में बंटा हुआ है

उस रात नारायणहिती महल (राजशाही का पैलेस) अपने सभी पारिवारिक सदस्यों के लिए खास तौर पर सजा हुआ था. आज यहां पारिवारिक भोज का आयोजन किया जाना था, इसलिए अलग-अलग जगहों पर व्यस्त परिवारी सदस्य भी महल पहुंच गए थे. लेकिन चहल-पहल के बजाय महल में सन्नाटा था.

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : Jun 1, 2021, 03:04 PM IST
  • कहा जाता है कि प्रेम संबंधों के चलते हुई थी शाही हत्या
  • शाही परिवार के नौ लोग उतार दिए गए थे मौत के घाट
नेपाल शाही हत्याकांड के 20 साल: उस रात की कहानी जिसका सच थ्योरी में बंटा हुआ है

नई दिल्लीः 1 जून 2001. भारत में यह प्रचंड गर्मियों वाले दिन थे, साथ ही उन तैयारियों के भी जो मानसून आने से पहले प्रशासन करने लगता है. गोरखपुर, बिहार के जिए और महाराजगंज जिनकी सीमाएं नेपाल से लगती हैं, वह हर साल इन परेशानियों में घिरे रहते हैं कि कब नेपाल (Nepal) पानी छोड़ दे और तराई के ये इलाके तर-बतर हो जाएं.

लेकिन इससे उलट नेपाल के शाही परिवार (Nepal Royal Family) में तो और ही नजारा था. बाढ़ वहां भी थी, लेकिन खून की. खून... वह भी किसका? अपनों का.. और इस खूनी नदी में डूबते-उतारते पड़े थे एक-दो या तीन नहीं पूरे नौ शव (Nepal Royal Family Massacre).

ये वो लाशें थीं जो जिंदा थीं तो राजा-रानी, प्रिंस, प्रिंसेस जैसे अदब के संबोधनों से पुकारी जाती थीं, लेकिन अब ये मुर्दा हो चुकीं थीं (Nepal Royal Family Massacre). मुर्दा कैसे हुईं, ये बस कहानी बन कर रह गया. सच क्या है कोई नहीं जानता. नेपाल का सदियों से चला आ रहा राजशाही खानदान मिट गया. इसका मिटना हुआ कि कुछ दिनों में मिट गई राजशाही भी. 

क्या हुआ था उस रात? कहते हैं कि-
उस रात नारायणहिती महल (राजशाही का पैलेस) अपने सभी पारिवारिक सदस्यों के लिए खास तौर पर सजा हुआ था. आज यहां पारिवारिक भोज का आयोजन किया जाना था, इसलिए अलग-अलग जगहों पर व्यस्त परिवारी सदस्य भी महल पहुंच गए थे. लेकिन चहल-पहल के बजाय महल में शांति थी.

इस सन्नाटे को चीर देती थी दो आवाजें जो युवराज दीपेंद्र और महारानी ऐश्वर्या की थीं. बेटा अपनी पसंद की लड़की से शादी करना चाहता था, मां मान नहीं रही थीं. यह झगड़ा पिछले एक या दो सालों में शुरू हुआ था. बीते छह महीनों में काफी तल्ख हो चला था. 

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फिर नौ लोग हमेशा के लिए सो गए
फैमिली डिनर इसी तल्खी के बीच किया जा रहा था. शायद उम्मीद रही होगी कि इसके जरिए माहौल कुछ बदल जाए. लेकिन, शाम को एक बार फिर हुई बहस ने पानी फेर दिया. दीपेंद्र ने शाम से ही नशा करना शुरू कर दिया था और बेकाबू हो गया था. सबकी मौजूदगी में मां-पिता पर चीखा तो उसे उसके कमरे में पहुंचा दिया गया.

दीपेंद्र ने प्रेमिका से फोन पर बात की और सोने जाने की बात कही. लेकिन इसी के बाद धड़ाधड़ गोलियां चलीं और नौ लोग हमेशा के लिए सो गए. 

मां-बेटे के बीच झगड़ा क्यों?
इस घटना से कुछ महीनों पहले राजमाता ऐश्वर्य़ा ने प्रिंस दीपेंद्र को बुलाया और कहा- हम तुम्हारे लिए लड़की देख रहे हैं. प्रिंस ने कहा- मैं अपनी मर्जी से शादी करना चाहता हूं. मां ने पूछा कौन है वह लड़की. प्रिंस ने सिंधिया खानदान की देवयानी का नाम लिया.

ऐश्वर्या ने साफ कह दिया कि देवयानी जिस सिंधिया खानदान से है, वो पुणे के पेशवाओं की नौकरी करते थे इसलिए वो शाही खानदान के मुकाबले कुछ नहीं हैं. ने उन्होंने जो लड़की प्रिंस के लिए चुनी, वह राजमाता रत्ना की बहन के खानदान की थी यानी राजघराने की. राजघराने में अगर दुल्हन आएगी तो प्रतिष्ठित राजघराने से ही. 

राजघराने की यही प्रतिष्ठा लड़ाई में तब्दील हो गई, और लड़ाई खूनी अंजाम तक पहुंच गई. दबी जुबान में ऐसा कहते हैं. इस घटना के तमाम कारण सामने आते रहे. जितने मुंह उतनी कहानियां इस हत्याकांड के बारे में सामने आती रही. आलम यह है कि आज घटना के 20 साल पूरे हो गए, लेकिन सच, सच नहीं है, बल्कि अलग-अलग थ्योरी में बंटा हुआ है. 

एक वजह यह भी, जैसा लोग कहते हैं
प्रेम प्रसंग सबसे ज्यादा प्रचलित कहानी है. लेकिन कहते हैं कि यही पूरी बात नहीं है. दरअसल दीपेंद्र अपनी मां से ही नहीं अपने पिता से भी नाराज थे. युवराज दीपेंद्र, नेपाली की रॉयल सेना के लिए जर्मनी से पचास हज़ार रायफल खरीदना चाहते थे, लेकिन राजा ने उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. यह तर्क देने वाले कहते हैं कि इस सौदे से दीपेन्द्र को डेढ़ करोड़ डॉलर का फ़ायदा मिलता, लेकिन पिता के इनकार से वे काफी नाराज थे. 

कहानियां इतनी बढ़ चुकी हैं कि इस कांड पर केंद्रित उपन्यास भी लिखे गए हैं. पेश से पत्रकार कृष्णा अबिरल ने ऐसा ही एक नॉवेल लिखा है रक्तकुंड. उन्होंने राजमहल की महिला कर्मी से बात के आधार पर अपना कथानक गढ़ा. उन्होंने लिखा कि दीपेंद्र ने नहीं बल्कि उनके वेश में दो नकाबपोशों ने गोलियां बरसाईं. यह तथ्य भी रहस्य है. सच नहीं. 

लेकिन बात रहस्य की होती है तो नेपाल नरेश के भाई ज्ञानेंद्र इससे बच नहीं पाते हैं. सवाल उठता है कि उस रात महल से नरेश के दूसरे भाई और तब राजकुमार रहे ज्ञानेंद्र कहां थे. जिस दिन पैलेस में फेमिली गेट टूगेदर था और जिस रात यह हादसा हुआ उस वक्त न सिर्फ राजकुमार ज्ञानेंद्र बल्कि उनकी पत्नी और बेटे में से कोई भी वहां मौजूद नहीं था. ज्ञानेंद्र की अनुपस्थिति आज भी नेपाल में सवाल बनकर तैरती है.

वहीं नेपाल की प्रजा भी दीपेंद्र पर लगे आरोप को सही नहीं मान पाती हैं.

शाही परिवार की हत्या के वक्त नेपाल राजपरिवार के प्रिंस पारस की भूमिका पर उंगली उठी थी. जब हादसा हुआ राजकुमार पारस शाही महल में मौजूद था लेकिन उसे खरोंच तक नहीं आई. पहले भी कई मामलों में बदनाम पारस के मिज़ाज, करतूतों और अतीत को देखकर पारस पर शक किया गया.

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और देवयानी, वह कहां हैं?
प्रिंस दीपेन्द्र मनपसंद लड़की थीं राजकुमारी देवयानी राणा. युवराज दीपेंद्र-राजकुमारी देवयानी कुछ समय तक इंग्लैण्ड के एटन कॉलेज में साथ थे. देवयानी इस समय मध्यप्रदेश के एक पूर्व राजघराने की बहू हैं. देवयानी राणा की शादी 2007 में तब भारत के मानव संसाधन मंत्री रहे अर्जुन सिंह के नाती से हुई थी.

नेपाल के प्रतिष्ठित घराने के पशुपति शमशेर जंग बहादुर राणा और उषाराजे सिंधिया की बेटी देवयानी को यह खबर मिली तो उसके पैरों तले से ज़मीन खिसक गई थी. नरसंहार के अगले ही दिन देवयानी ने नेपाल छोड़ दिया और भारत चली आई थीं. 

2008 में नेपाल में राजशाही खत्म हो गई
इस हत्याकांड के बाद नरेंश वीरेंद्र के छोटे भाई ज्ञानेंद्र की ताजपोशी हुई. लेकिन राजशाही अधिक दिनों तक नहीं चली. 2008 में नेपाल में राजशाही समाप्त होने के बाद उनसे नरेश के सारे अधिकार छीन लिए गए थे.

2008 में माओवादी सरकार बनने के साथ ही इस बात की घोषणा हुई थी कि शाही हत्याकांड की फिर से और पूरी जांच होगी. लेकिन नेपाल की सरकारें ही अभी तक ठीक से जम नहीं पाई हैं, जांच ही क्या होगा. राजशाही हत्य़ाकांड को आज 20 साल हो रहे हैं,

नेपाल राजनीतिक संकट के दौर से गुजर रहा है. हत्याकांड कभी खुलेगा, या रहस्य बन जाएगा, कुछ पता नहीं.. थ्योरियों का आना जारी है. 

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