नई दिल्ली. अमेरिका को तो किसी भी तरह से अपने गले से इस मुसीबत का सांप उतारना ही था जो बिना वजह उसने अपने गले मढ़ लिया था. देश के सैनिकों को देश वापस बुलाने का इस चुनाव से बेहतर अवसर क्या हो सकता था राष्ट्रपति ट्रम्प के लिए. सो हो गया वो जिसकी उम्मीद की जा रही थी.
दो दशकों से डटे हैं अमेरिकी सैनिक
पिछले कई सालों से अफगानिस्तान में तालिबान आतंकियों के बीच तैनात थे अमेरिकी जवान. उसकी वजह अमेरिका पर हुआ आतंकी हमला था जिसमें तालिबान का भी नाम आया था. तब से ही अमेरिका तालिबान का दुश्मन बन गया था. इस वजह से पिछले बीस सालों से अमेरिकी सैनिक तालिबान में डेरा डाले हुए हैं और आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने में लगे हैं.
ओसामा ने करवाया था नाइन इलेवन
नाइन इलेवन का अर्थ है 9 सितंबर. वर्ष 2001 में इसी दिन अफगानिस्तान के कुख्यात आतंकी ओसामा बिन लादेन ने अपने अलकायदा आतंकी भेज कर न्यूयॉर्क के ट्विन टावर पर हमला किया था. आतंकियों द्वारा हवाई जहाज के माध्यम से वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर को इस तरह जमींदोज करने के ऐतिहासिक आतंकी कार्रवाई के बाद अमेरिका ने आतंकियों को लेकर अपनी नीतियों को बदल दिया.
WTC की बर्बादी से क्रुद्ध हुआ अमेरिका
आतंकियों द्वारा आसमानी इमारत वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर अर्थात ट्विन टावर पर हमला करके उसे जमीन्दोज कर डालने के दुस्साहस का अमेरिका ने जवाब देने का संकल्प किया. अमेरिका के नागरिकों में इस आतंकी घटना को लेकर काफी आक्रोश था जिसको ध्यान में रख कर अमेरिका की सरकार ने आतंक को पनाह देने वाले सभी दुश्मनों की सूचि तैयार की और उनको नष्ट करने की योजना पर काम शुरू कर दिया था.
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