नई दिल्ली. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ईरान का साथ देने के लिए मजबूर हैं. अब जबकि ईरान और अमरीका तनातनी पर विश्व दो-ध्रुवीय हो रहा है, पाकिस्तान को भी ज़ाहिर करना होगा कि वो किस पाले में है. लेकिन पाकिस्तान की मजबूरी अमरीका समझे न समझे, भारत खूब समझता है और उस मजबूरी का नाम है भारत विरोध. लेकिन हैरानी इस बात की भी है कि पाकिस्तान ईरान के साथ खुल कर खड़ा होने में नाकाम है जिसकी एक बड़ी वजह है.
कश्मीर पर ईरान ने पाकिस्तान का साथ दिया था
भारत मूल रूप से गुटनिरपेक्ष देश है. किन्तु वह उसी ईरान के साथ मैत्री निभाता आया है जिसने कश्मीर पर पाकिस्तान का साथ दिया था. कश्मीर में धारा 370 खत्म करने को लेकर पाकिस्तान के अरण्यरोदन में इस्लामवादी ईरान ने भी अपना सुर मिला दिया था. पाकिस्तान को आज वही हिसाब चुकाना है इसलिए वह ईरान के पाले में खड़ा होने को मजबूर है लेकिन खुल कर फिर भी नहीं.
खुल कर ईरान का साथ नहीं निभा सकता पाकिस्तान
ईरान के साथ ऐलानिया तौर पर पाकिस्तान की दोस्ती अमरीका का विरोध नहीं कर सकती. इस्लामिक तौर पर भी ईरान ने कटटरपंथ का झंडा बुलंद किया हुआ है किन्तु हैरानी की बात है कि आज जब उसे अमेरिका से चुनौती मिली है तो पाकिस्तान उसके साथ नहीं है. इसकी वजह बहुत ख़ास है और वो है एक ऐसा त्रिकोण जिसके एक सिरे पर ईरान, एक पर पाकिस्तान और तीसरे कोण पर है एक अहम खाड़ी देश.
सऊदी अरब के त्रिकोण ने किया पाकिस्तान को लाचार
खाड़ी देशों में सभी इस्लाम के झंडे तले खड़े हो कर एक दूसरे का साथ दे रहे हों -ऐसा नहीं है. आज जब ईरान के सामने उसका दुश्मन अमेरिका है, ईरान का दोस्त पाकिस्तान उसके साथ इसलिए नहीं खड़ा है क्योंकि ईरान का दुश्मन सऊदी अरब पाकिस्तान का ख़ास दोस्त हो चुका है. अब ईरान का साथ दे कर पाकिस्तान सऊदी अरब को नाराज़ नहीं कर सकता.
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