नई दिल्ली. कई ऐसी वजहें हैं जो बताती हैं कि ईरान अगर अमेरिका को युद्ध में परास्त न भी कर पाया तो भी वह अमेरिका के हौसले पस्त करने की ताकत तो रखता है. इतनी ही अहम दूसरी बात ये भी है कि अगर युद्ध की स्थिति बनती है तो इस बार युद्ध परम्परागत तरीकों से नहीं होगा, बल्कि कई स्तरों पर लड़ा जाएगा और वह अमेरिका के लिए फायदेमंद साबित नहीं होगा.
इससे पहले 2003 में किया था अमेरिका ने युद्ध
आज से सत्रह साल पहले अमेरिका ने इसी तरह का एक और युद्ध लड़ा था और वह भी एक खाड़ी देश के खिलाफ ही था. वर्ष 2003 में अमेरिका ने इराक पर हमला किया था और उसे नेस्तोनाबूद करने में कोई कोर कसर नहीं रखी थी. लेकिन आज लगभ दो दशक के अंतराल ने परिस्थितियां बहुत बदल दी हैं और अब अमेरिका के सामने इराक नहीं, ईरान है.
इराक से चौगुना बड़ा है ईरान
अमेरिका जानता है कि ईरान इराक के मुकाबले बहुत बड़ा देश है. जब अमेरिका ने इराक पर हमला किया था तो उस समय इराक की आबादी ढाई करोड़ थी जबकि आज ईरान की आबादी सवा आठ करोड़ है. क्षेत्रफल की दृष्टि से भी इराक की तुलना में ईरान चौगुना बड़ा है. और यदि सेना की बात करें तो अमरीकी हमले के वक्त इराक की सेना में साढ़े चार लाख सैनिक थे जबकि आज ईरान के पास लगभग पौने छह लाख सैनिक हैं.
समुद्री महाशक्ति है ईरान
भौगोलिक दृष्टि से भी ईरान ताकतवर देश है. उसके चारों तरफ की भौगोलिक स्थिति उसके लिए बेहद फायदेमंद है जो उसे एक समुद्री महाशक्ति वाला देश बनाती है. ईरान की उत्तरी दिशा में जहां कैस्पियन सागर है तो दक्षिणी दिशा में फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी है. सीमाओं की बात करें तो इस देश की सीमाएं इराक, पाकिस्तान, तुर्की और अफगानिस्तान से जुडी हुई हैं. यह भौगोलिक स्थिति युद्ध के दौरान इस्लामिक ईरान के लिए फायदेमंद साबित होगी.
तेल महाशक्ति भी है ईरान
ईरान तेल उत्पादन के मामले में एक अहम देश तो है ही, साथ ही यूरेशिया के केंद्र में स्थित होने के कारण यह देश व्यापार के नज़रिये से भी बहुत महत्वपूर्ण है. ईरान और ओमान की परिधि वाले होर्मूज स्ट्रेट से विश्व भर के तेल टैंकर होकर गुजरते हैं. यहां इस मार्ग में एक सबसे संकरा बिंदु देखा जा सकता है जो केवल दो मील चौड़ा है. अगर युद्ध की स्थिति में ईरान यहां से आवागमन रोक दे तो दुनिया के तेल निर्यात में करीब 30 फीसदी की सीधी कमी हो सकती है.
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