कृषि कानूनों के खिलाफ लंबे समय से किसानों का विरोध झेल रही बीजेपी को इस चुनाव में रिकॉर्ड वोट मिले, इससे आने वाले चुनावों पर किसान आंदोलन का कितना असर पड़ेगा, इसकी एक तस्वीर ऐलनाबाद के चुनाव परिणामों ने दिखा दी है.
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विनोद लांबा/ दिल्ली : इंडियन नेशनल लोक दल का गढ़ कहे जाने वाली सिरसा जिले की ऐलनाबाद विधानसभा सीट से अभय सिंह चौटाला (Abhay Singh Chautala) जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं. किसान आंदोलन के चलते इस्तीफा देने के बाद जब वह फिर से उपचुनाव में उतरे थे तो जाहिर है काफी चर्चा भी हुई. आखिरकार जीत भी मिल ही गई, लेकिन 2019 के मुकाबले अपने प्रतिद्वंदी से जीत का उनका मार्जन घट गया तो इस परिस्थिति में कई सवाल उठाने लाजिमी है.
पहला सवाल तो यही बनता है कि अगर अभय सिंह चौटाला किसान हितैषी होने का दावा कर रहे थे तो उन्हें जीत 20- 30- 40 हजार की क्यों नहीं मिली ? वहीं राकेश टिकैत जैसे किसान नेता जब हरियाणा में जाकर अभय चौटाला के पक्ष में प्रचार कर उनकी झोली भरने का इशारा कर गए तो गोबिंद कांडा Gobind Kanda) बीजेपी की टिकट पर पहले के मुकाबले 50,000 हजार वोटों से आगे कैसे निकल गए.
निश्चित तौर पर यह सवाल राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय तो बनेगा ही साथ ही चुनाव पर किसान आंदोलन के असर के तौर पर बतौर एक सैंपल साइज ऐलनाबाद उपचुनाव का जिक्र गाहे-बगाहे जरूर होगा.
धनखड़ की रणनीति आई काम
हरियाणा लोकहित पार्टी (हलोपा) से भाजपा में शामिल कराए गए गोबिंद कांडा (Gobind Kanda) हरियाणा बीजेपी अध्यक्ष ओम प्रकाश धनखड़ (Om Prakash Dhankar) की उस रणनीति का हिस्सा थे, जिन्हें जीत के उम्मीदवार के तौर पर ही चुनाव मैदान में उतारा गया. कांडा को बीजेपी से टिकट देने को लेकर भाजपा को कई सवाल भी झेलने पड़े, लेकिन कहीं ना कहीं पार्टी स्तर पर बनी रणनीति काफी हद तक कारगर साबित हुई. आप-बीजेपी के तमाम प्रवक्ता अपनी वोट परसेंटेज बढ़ने का और अभय को कड़ी टक्कर देने का श्रेय भी इसी रणनीति को दे रहे हैं.
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जातिगत समीकरण साधने में लगाई टीम
बेहतरीन चुनाव प्रबंधन भी कहीं न कहीं काम आया, जहां हरियाणा बीजेपी की तरफ से सुभाष बराला को इस चुनाव का इंचार्ज बनाया गया. प्रदेश अध्यक्ष द्वारा डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा, पूर्व मंत्री कृष्ण पवार सहित कई नेताओं की ऐलनाबाद में चुनावी ड्यूटी जातिगत समीकरण साधने के लिए लगाई गई. पहले बहुत सवाल उठाए गए कि सिरसा से ही चुनाव प्रचार हो रहा है और ऐलनाबाद में बीजेपी-जेजेपी नहीं जा रही है. ऐसे में ऐलनाबाद उपचुनाव में शुरुआती विपरीत परिस्थितियों के बावजूद प्रदेश अध्यक्ष ओम प्रकाश पूरे दलबल के साथ पहले नामांकन और पहला चुनावी सभा ऐलनाबाद करने में सफल रहे.
चुनाव हारा पर बहुत कुछ पाया
रणनीति के तौर पर ही खुद मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री चुनाव के आखिरी सप्ताह में चुनाव प्रचार के लिए उतरे और करीब डेढ़ से 2 दिन में पूरी ताकत झोंक दी. ऐलनाबाद चुनाव परिणाम के बाद बरोदा उपचुनाव के मुकाबले बीजेपी ने जिस ऐलनाबाद सीट को अवसर बनाया था, वहां धनखड़ और उनके साथ जननायक जनता पार्टी की टीम चुनावी जीते बिना भी काफी कुछ हासिल कर गई.