Cultivated Farming: हिमाचल प्रदेश का लाहौल स्पीति राज्य का सबसे ठंड़ा क्षेत्र है. यहां हर सीजन बर्फ पड़ती है, जिसकी वजह से यहां जीवन यापन करना काफी मुश्किल होता है, लेकिन इस क्षेत्र को हींग की खेती के लिए चुना गया है.
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संदीप सिंह/शिमला: क्या आप जानते हैं कि आपकी थाली में परोसे जाने वाले खाने में इस्तेमाल होने वाले मसालों में हींग सबसे ज्यादा गुणकारी और मेडिसिन वैल्यू होती है. इसकी खेती के लिए जीरो तापमान की जरूरत होती है. ऐसे में हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति जिले को हींग की खेती के लिए सही माना गया है. यहां का तापमान हींग की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है.
हींग की खेती के लिए चुने गए लाहौल-स्पीती के तीन गांव
ट्रायल के तौर पर 15 अक्टूबर 2020 को लाहौल-स्पीती के तीन गांव के 7 किसानों को हींग की खेती के लिए चुना गया था. देश के हिमालयन सीजन में इसकी खेती की कवायद शुरू हो चुकी है और बीते तीन साल से लाहौल स्पीती ही नहीं बल्कि हिमाचल के कुल पांच जिलों में हींग की खेती की जा रही है.
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यहां की जा रही अफगानी और ईरानी हींग की खेती
जी पंजाब हिमाचल की टीम मनाली, अटल-टनल, केलंग से होते हुए समुद्रतल से लगभग ग्यारह हजार फीट की ऊंचाई पर बसे छोटे से गांव कवारिंग पहुंची, जहां के किसान सदियों से बीज आलू, मटर और गोभी की खेती कर रहे हैं, लेकिन ये पिछले तीन वर्षों से एक ऐसे मिशन का हिस्सा बने हुए हैं जो देश में पहली बार किया जा रहा है. यहां के खेतों में पहली बार आलू, मटर और गोभी के साथ हींग की दो वराइटी अफगानी और ईरानी हींग की खेती की जाती है.
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हींग के पौधों की 6 वेरायटी की गईं तैयार
अफगानिस्तान से लाए गए हींग के बीज से पालमपुर स्थित हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान के लैब में वैज्ञानिक तरीके से पौधा तैयार किया गया है. संस्थान ने ट्रायल के तौर पर हींग की पैदावार के लिए देश में सबसे पहले लाहौल स्पीति को चुना. आईएचबीटी की यह पहल कामयाब हुई तो हींग से जनजातीय किसानों की आर्थिक स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा. हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान ने पालमपुर स्थित रिसर्च सेंटर में हींग के पौधों की 6 वेरायटी तैयार की हैं. कई वर्षों के शौध के बाद आईएचबीटी ने लाहौल घाटी को हींग उत्पादन के लिए उपयुक्त पाया है.
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