पूर्व कैबिनेट मंत्री वरिंद्र कवर की अगुवाई में प्रतिनिधिमंडल ने DFO ऊना को सौंपा ज्ञापन, जानें वजह
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पूर्व कैबिनेट मंत्री वरिंद्र कवर की अगुवाई में प्रतिनिधिमंडल ने DFO ऊना को सौंपा ज्ञापन, जानें वजह

Una News: पूर्व कैबिनेट मंत्री वरिंद्र कवर की अगुवाई में प्रतिनिधिमंडल ने डीएफओ ऊना को ज्ञापन सौंपा हैं. कवर बोले वर्किंग प्लान बनाये जाने तक खुदरो दरख्तान भूमि से पेड़ न काटे जाए. 

पूर्व कैबिनेट मंत्री वरिंद्र कवर की अगुवाई में प्रतिनिधिमंडल ने DFO ऊना को सौंपा ज्ञापन, जानें वजह

Una News: हिमाचल प्रदेश के ऊना जिला में आज पूर्व कैबिनेट मंत्री वरिंद्र कवर की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल ने डीएफओ ऊना को एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें उन्होंने हिमाचल प्रदेश में वर्किंग प्लान बनाये जानें तक खुदरो दरख्तान पर पेड़ काटने पर प्रतिबंध लगाया जाने की मांग की है. 

पूर्व मंत्री ने कहा की वर्ष 1913 से अब तक 110 वर्ष बीत चुके हैं और सरकार ने किसानों को उनके हक अभी तक नहीं दिए हैं. वर्ष 1999 में सरकार ने नोटिफिकेशन के द्वारा इस प्रकार की भूमि के पेड़ों के मालिकाना हक भू मालिकों को दिए थे. लेकिन अभी भी किसानों को उनके हक नहीं मिल रहे हैं. किसान रेवेन्यु रिकार्ड के मुताबिक, खुदरो भूमि पर उगे पेड़ों के मालिक हैं, लेकिन इनके कटान के लिये जब अनुमति मांगी जाती है, तो भारत सरकार का हवाला दिया जाता है क्योंकि इस प्रकार की भूमि में मालिक सरकार है.

जिन क्षेत्रों में वर्किंग प्लान लागू हुआ. वहां भी पेड़ वन विभाग द्वारा ही कटवाए जाते हैं और किसानों को उनका हक नहीं मिल रहा है. इस प्रकार की भूमि पर कटने वाले पेड़ों से किसानों का लाभ होने चाहिए यानी जिन क्षेत्रों में रकबा वर्किंग प्लान के तहत आता है. वहां पर विभागीय मार्किंग के बाद किसानों को अपने पेड़ों को काटने की अनुमति प्रदान की जानी चाहिए. 

वर्ष 2013 में भारत सरकार की एक कमेटी ने कहा कि इस प्रकार की भूमि चाहे वर्किंग प्लान में आती हो या नहीं वहां फारेस्ट कंसर्वेशन एक्ट 1980 लागू होंगे. इस प्रकार की भूमि में पेड़ों का कटान विभाग द्वारा बनाये गए मैनेजमेंट प्लान के तहत किया जा रहा है. हमारा कहना है कि जिन क्षेत्रों का वर्किंग प्लान नहीं बना है. वर्किंग प्लान बनने तक पेड़ों का कटान न हो व वर्किंग प्लान बनने के बाद वहां पेड़ों के कटान का हक किसानों को मिले. 

किसान अपने आप में जंगलों की रक्षा करने में असमर्थ हैं. यदि उन्हें इस खुदरो भूमि में पेड़ों के कटान का हक मिलेगा तो वे यहां नए पेड़ भी लगाएंगे और पेड़ों को बचाएंगे भी. 

रिपोर्ट- राकेश मालही, ऊना

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