Hola Mohalla 2023: क्यों मनाया जाता है होला मोहल्ला और क्या है इसका इतिहास?
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Hola Mohalla 2023: क्यों मनाया जाता है होला मोहल्ला और क्या है इसका इतिहास?

होला मोहल्ला के इतिहास की बात करें तो इस मेले की शुरुआत गुरु गोबिंद सिंह जी ने सन 1700 में की थी।

Hola Mohalla 2023: क्यों मनाया जाता है होला मोहल्ला और क्या है इसका इतिहास?

Hola Mohalla 2023 date, history and significance: होला मोहल्ला खालसा के राष्ट्रीय पर्व का प्रतीक है और यह खालसा पंथ के जन्मस्थल तख्त श्री केसगढ़ साहिब में धार्मिक परंपराओं के साथ मनाया जाता है. होला एक अरबी शब्द है जो हूल से लिया गया है जिसका अर्थ है 'अच्छे कामों के लिए लड़ना' और महल्ला का अर्थ है विजय के बाद बसने का स्थान।

होला मोहल्ला उत्सव की शुरुआत गुरु गोबिंद सिंह जी ने सन 1700 में होलगढ़ किले से की थी। होला मोहल्ला मनाने का मुख्य कारण गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा शुरू की गई परंपरा है, जिसके दौरान गुरु जी अपनी सेना में उत्साह और भावना पैदा करने के लिए नकली युद्ध आयोजित करते थे और इसमें विजेताओं को पुरस्कार से नवाजा जाता था। पेश है ज़ी मीडिया की खास पेशकश, 'इतिहास होला मोहल्ला का' (Hola Mohalla 2023 date, history and significance)।

Hola Mohalla 2023 date: इस बार कब मनाया जा रहा है होला मोहल्ला?

खालसा जाहोजलाल का प्रतीक विश्व प्रसिद्ध होला मोहल्ला हर साल खालसा के जन्मस्थल श्री आनंदपुर साहिब में मनाया जाता है. इस बार होला महल्ला आज से यानी 3 मार्च से 8 मार्च तक मनाया जा रहा है. यह श्री कीरतपुर साहिब में 3 से 5 मार्च तक और श्री आनंदपुर साहिब में 6 से 8 मार्च तक मनाया जाएगा। इन 6 दिनों तक श्री आनंदपुर साहिब समेत पूरा इलाका खलसाई के रंग में रंगा होगा। खालसा पंथ होली नहीं खेलता, होला खेलता है और महल्ला खींचता है। होली के अगले दिन आनंदपुर साहिब में एक विशाल मेला लगता है, जिसे 'होला महल्ला' कहा जाता है। 

Hola Mohalla 2023 history and significance: ज़ी मीडिया की खास पेशकश, 'इतिहास होला मोहल्ला का'

अगर होला मोहल्ला के इतिहास की बात करें तो इस मेले की शुरुआत गुरु गोबिंद सिंह जी ने सन 1700 में की थी। उन्होंने खालसा को हथियार और युद्ध की कला में प्रशिक्षित करने के लिए दो दलों का गठन किया, उन्हें एक युद्ध में शामिल किया और बहादुर योद्धाओं को पुरस्कार दिया। तब से हर साल होली के अगले दिन आनंदपुर साहिब में होला मोहल्ला मनाया जाता है। उस समय वे अपनी सेना की दिखावटी लड़ाइयों का आयोजन करते थे और अभ्यास के रूप में विजेताओं को पुरस्कार देते थे और मुगलों से लड़ने के लिए अपनी सेना में उत्साह पैदा करते थे।

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इसमें बख़्तरबंद सिंह पैदल और घोड़े पर सवार होकर दो दल बनाते थे और एक विशेष आक्रमण स्थल पर आक्रमण करते थे और तरह-तरह के करतब दिखाते थे। इस दौरान गुरु गोबिंद सिंह जी स्वयं इस युद्ध को देखते और दोनों पक्षों को आवश्यक शिक्षा प्रदान करते थे। इस अवसर पर दीवान की पूजा होती, कथा कीर्तन होता, बार-बार बीर रासी गाई जाती और तरह-तरह के सैन्य अभ्यास किए जाते और हर ओर हर्षोल्लास का माहौल होता था। गुरु साहिब स्वयं इन सभी गतिविधियों में भाग लेते थे और सिखों का उत्साह बढ़ाते थे।

तभी से यह होला महल्ला शुरू हुआ और आज तक यह परंपरा कायम है। 

- श्री आनंदपुर साहिब से बिमल शर्मा की रिपोर्ट 

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