Begum Hazrat Mahal: कौन थी वो मुस्लिम वीरांगना, जिसने अंग्रेज़ों को नाको चने चबाने कर दिया था मजबूर
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Begum Hazrat Mahal: कौन थी वो मुस्लिम वीरांगना, जिसने अंग्रेज़ों को नाको चने चबाने कर दिया था मजबूर

Begum Hazrat Mahal: भारत 15 अगस्त को अपना 78वां यौम-ए-आजादी का जश्न मनाएगा. इस मौके पर एक वीरांगना के बारे में बताने वाले हैं, जिन्होंने अंग्रेजों को धूल चटाने पर मजबूर कर दिया था. आइए जानते हैं वो कौन वीरांगना थी. 

Begum Hazrat Mahal: कौन थी वो मुस्लिम वीरांगना, जिसने अंग्रेज़ों को नाको चने चबाने कर दिया था मजबूर

Begum Hazrat Mahal: भारत को अंग्रेजों से आजादी दिलाने में जितना मर्दों का योगदान है, उतना ही महिलाओं की भी योगदान है. ऐसी ही एक वीरांगना थीं जिनकी 1857 की क्रांति में बहादुरी ने अंग्रेजों को धूल चटाने पर मजबूर कर दिया था. वो कोई और नहीं अवध के नवाब वाजिद अली शाह की बीवी बेगम हजरत महल थी, जिनकी बहादुरी की चर्चा दुनिया भर में होती है. 

बेगम हजरत महल का जन्म 1820 ई. में फैजाबाद में हुआ था. बचपन में उन्हें मुहम्मदी खानम कहा जाता था. बेगम राजघरानों में नाचती थीं. वहां उन्हें शाही हरम की परियों की टोली में रखा गया था. इसी वजह उन्हें महक परी के नाम से भी जाना जाता था. एक बार अवध के नवाब वाजिद अली शाह ने उन्हें देखा तो उनकी खूबसूरती पर मोहित हो गए. बाद में वाजिद अली शाह ने उनसे शादी कर ली और उन्हें हजरत महल की उपाधि दी.

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 ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी पर कर ली थी कब्जा
बेगम की ज़िंदगी खुशहाल चल रही थी, लेकिन तभी 1856 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अवध राज्य पर कब्ज़ा कर लिया था. नवाब वाजिद अली शाह को भी पकड़कर कलकत्ता में कैद कर लिया गया. वहीं, साल 1857 का विद्रोह की आग दिल्ली कानपुर, मरेठ, झांसी से लेकर लखनऊ तक पहुंच गई थी. विद्रोह की पहली चिंगारी 30 मई 1857 को भड़की जब शहर की मरियान छावनी के सैनिकों ने अफसरों के घरों में आग लगा दी और तीन अंग्रेज सैनिकों को मार डाला.

अंग्रेजों की हुई बुरी हार
इसके बाद लखनऊ के चीफ कमिश्नर सर हेनरी मोंटगोमरी लॉरेंस ने सभी अधिकारियों की महिलाओं और बच्चों को रेजीडेंसी छोड़ जाने का आदेश दिया. इस बीच 30 जून 1857 को लॉरेंस खबर मिली कि 5000 से ज्यादा सैनिक शहर की तरफ बढ़ रहे हैं. लखनऊ के चीफ कमिश्नर सर हेनरी मोंटगोमरी लॉरेंस ने आनन-फानन में सैनिकों का सामना करने के लिए 600 अपने सैनिकों को इकट्टा किया और विद्रोही सैनिकों से मुकाबला करने के लिए निकल गया. दोनों सेनाओं के बीच लड़ाई शुरू हुई, जिसमें ब्रिटिश सैनिकों की बुरी तरह से हार हुई. इसके बाद विद्रोही गुट के सैनिकों ने लखनऊ को पूरी तरह से घेर लिया और फिर से अवध ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से आजाद हो गया. 

अवध के प्रशासन की बागडोर संभाली
इस जंग के तीन दिन बाद हजरत महल के 14 साल के बेटे बिरजिस कद्र को राजा बानने के लिए ऐलान किया गया, लेकिन उस वक्त बिरजिस कद्र नाबालिग थे. इसलिए अवध प्रशासन ने हजरत महल से अवध की जिम्मेदारी लेने की गुजारिश की. जिसके बाद हजरत महल ने प्रशासन की पूरी जिम्मेदारी ले ली. वहीं, साल 1857 के जुलाई महीने में फ्रीडम फाइटर मंगल पांडे को अंग्रेजों ने बैरकपुर में फांसी दे दी. दिल्ली, कानपुर और मेरठ 1857 के विद्रोह की आग में जल रहे थे और रानी लक्ष्मीबाई झांसी पर फिर से कब्जा करने की कोशिश कर रही थीं. 

हजरत महल की अगुआई वाली सेना में  लखनऊ के चीफ कमिश्नर सर हेनरी मोंटगोमरी लॉरेंस को मार डाला
लखनऊ में मौजूदा चिनहट प्रखंड में अंग्रेज सैनिकों की बुरी तरह हार हुई थी. यह खबर फैलते ही विद्रोही सैनिक लखनऊ पहुंचने लगे. साल 1857 के  विद्रोह के 8 महीने तक 1858 तक हजरत महल ने लखनऊ में विद्रोही सैनिकों की अगुआई की थी. इस दौरान 37 एकड़ में फैली रेजीडेंसी की घेराबंदी की गई, जिसके भीतर तीन हज़ार ब्रिटिश बच्चे, सैनिक, नागरिक, भारतीय सैनिक, उनके समर्थक और नौकर मौजूद थे. इसमें मौजूद लखनऊ के चीफ कमिश्नर सर हेनरी मोंटगोमरी लॉरेंस की मौत हो गई, लेकिन किसी को भी कानों-कान हेनरी की मौत की खबर नहीं मिली.

अंग्रेजों ने फिर से अवध पर किया कब्जा
हजरत महल ने अंग्रेजों से लड़कर अवध पर तो कब्जा कर लिया, लेकिन ज्यादा दिनों तक अवध उनके कब्जे में नहीं रहा. 1858 के आखिर तक अंग्रेजों ने अवध के कई हिस्सों पर दोबारा कब्जा कर लिया. इसके बाद अंग्रेज धीरे-धीरे अवध पर कब्जा करने लगे. जिसके बाद हजरत महल को अवध छोड़ना पड़ा. 

नेपाल चली गई हजरत महल
बेगम हज़रत महल अपने बेटे और बचे हुए समर्थकों के साथ नेपाल की सीमा की ओर चली गईं. उन्होंने घाघरा नदी पार की और बहराइच जिले में बूंदी के किले को अपना ठिकाना बनाया. इस दौरान हजरत महल को अंग्रेजों के जरिए बंधन बनाए जाने का डर सताने लगा, तो उन्होंने नेपाल के राजा जंग बहादुर राणा से शरण की मांग की, लेकिन जंग बहादुर राणा ने ऐलान किया कि बेगम हज़रत महल को नेपाल में रहने की इजाजत दी जाएगी, बशर्ते वह शांति से रहने का वादा करें और नेपाल की धरती पर उनके खिलाफ़ हिंसा की इजाजत न दें. हज़रत महल ने अपना बाकी जीवन नेपाल में बिताया. हजरत महल की साल 1879 में मौत हो गई. नेपाल में उनको सुपुर्द-ए-खाक किया गया था. जहां, अब उनकी मजार है. 

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