पिरान कलियर दरगाह में किया था सवा करोड़ रुपये का गबन, 17 साल बाद हुआ गिरफ्तार
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पिरान कलियर दरगाह में किया था सवा करोड़ रुपये का गबन, 17 साल बाद हुआ गिरफ्तार

Piran Kaliyar: जमाल खान नाम के शख्स ने पिरान कलियर दरगाह में सवा करोड़ रुपये का गबन किया था, अब पुलिस ने 17 साल बाद उन्हें गिरफ्तार किया है. वह पुलिस से बचने के लिए अपनी पहचान छुपा कर रह रहा था.

पिरान कलियर दरगाह में किया था सवा करोड़ रुपये का गबन, 17 साल बाद हुआ गिरफ्तार

Piran Kaliyar: उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में मौजूद पिरान कलियर शरीफ दरगाह में 17 साल पहले कथित तौर पर सवा करोड़ रुपये का घपला कर फरार हुए उसके लेखाकार को विशेष कार्य बल (STF) ने सोमवार को गिरफ्तार कर लिया. एसटीएफ के सीनियर पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) आयुष अग्रवाल ने यहां बताया कि उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले के गंज क्षेत्र के रहने वाले जमाल खान की गिरफ्तारी पर 25 हजार रुपये का इनाम घोषित किया गया था. उन्होंने बताया कि गोपनीय सूचना मिलने के बाद पुलिस गंज क्षेत्र पहुंची और उसे गिरफ्तार कर हरिद्वार जिले के रूड़की कोतवाली लायी. 

दरगाह के पैसों में हेराफेरी
अग्रवाल ने बताया कि खान ने 2007 व उससे पहले पिरान कलियर दरगाह के दस्तावेजों में हेराफेरी कर सवा करोड़ रुपये का गबन किया था जिस संबंध में अक्टूबर 2007 में रूड़की में भारतीय दंड विधान के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था. मुकदमा दर्ज होने के बाद आरोपी फरार हो गया था. इस बीच हरिद्वार के सीनियर पुलिस अधीक्षक ने खान की गिरफ्तारी के लिए 25 हजार रुपये का इनाम घोषित किया था, लेकिन पिछले 17 सालों से वह अपनी पहचान छुपा कर पुलिस को चकमा दे रहा था.

कौन हैं मखदूम अलाउद्दीन 
आपको बता दें कि पिरान कलियर दरगाह हरिद्वार में मौजूद है. यह 13वीं शताब्दी के चिश्ती सिलसिले के सूफी संत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर कलियरी की दरगाह है. सूफी संत मखदूम अलाउद्दीन की दरगाह पूरी दुनिया में मशहूर है. अलाउद्दीन साबिर कलियारी 19 रबीउल उव्वल 592 हिजरी (1196) में हुआ था. 1204 में उनकी मां ने उन्हें बाबा फरीद के हवाले किया. यहां वह लंगर की देखभाल कर रहे थे.

खाना नहीं खाया
कुछ दिनों बाद जब मखदूम अलाउद्दीन को उनकी मां ने उन्हें देखा तो वह कमजोर हो चुके थे. ऐसे में उनकी मां ने बाबा फरीद से सवाल किया. तब उन्होंने ने कहा कि उन्हें लंगर के देखभाल का काम सौंपा गया है, ऐसे में उनके पास खाने की कमी नहीं होनी चाहिए. तब उन्होंने कहा कि उन्हें लंगर की देखभाल का जिम्मा सौंपा गया था, लेकिन उनसे खाने को नहीं कहा गया था. ऐसे में उन्होंने खाना जंगल से खाया. इस पर बाबा फरीद ने उन्हें साबिर (धैर्यवान) का नाम दिया.

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