General Qasem Soleimani: पांच साल पहले एक अमेरिकी हमले में शहीद हुए ईरान के साबिक जनरल कासिम सुलेमानी और अबू मेहंदी अल-मोहंदेस की 5वीं यौमे- शहादत के मौके पर मुंबई में शिया समाज के लोगों ने उन्हें याद कर खिराजे- अकीदत पेश किया. इस प्रोग्राम में शहीदों की ज़िन्दगी, जुल्म, इन्साफ और सत्य के लिए उनके संघर्ष और कुर्बानी को यादकर लोगों ने उनके रास्ते पर चलने का अज्म लिया.
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5th Martyrdom Anniversary of General Qasem Soleimani:ईरान के साबिक जनरल कासिम सुलेमानी और अबू मेहंदी अल-मोहंदेस की 5वीं यौमे- शहादत के मौके पर मुंबई में शिया समाज के लोगों ने उन्हें याद कर खिराजे- अकीदत पेश किया. इस्लाम के वक़ार बुलंद रखने और मजलूमों की आवाज बनने और उनकी हिफाज़त करने के लिए अपनी जान की कुर्बानी देने वाली इन शहीदों को यादकर लोग रो पड़े. मुंबई की मस्जिद-ए-ईरानी, डोंगरी, महफ़िल-ए-सानी-ए-ज़हरा, अंधेरी और बेहिश्ते ज़हरा कब्रिस्तान, मीरा रोड में एक खुसूसी प्रोग्राम का आयोजन कर इन शहीदों को याद किया गया.
खास लोगों के बारे में चर्चा:
इस मौके पर शहीदों की ज़िन्दगी, मजलूमों की हिफाजत के लिए उनके अहद और मध्य पूर्व में इस्लामी तहरीक को आकार देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में विस्तार से बताया गया. इसके अलावा अबू मेहंदी अल-मोहंदेस की योगदान के बारे में भी चर्चा की गई. इराक में चरमपंथ के खिलाफ़ लड़ाई में उनके दृढ़ नेतृत्व और कुर्बानी पर भी चर्चा की गई, जिसमें दानिश्वरों ने मुसलमानों के मुक़द्दस मकामों की हिफाज़त के लिए उनके खिदमत पर रौशनी डाली. इन भाषणों में इस्लामी आन्दोलन पर चर्चा की गई, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि किस तरह इन शहीदों की कुर्बानी ने इन्साफ और मुस्लिम यकजहती के लिए दुनिया भर के मुसलमानों को बेदार कर इसे एक वैश्विक आंदोलन का रूप दिया है.
समारोह में शामिल विद्वानों ने मगरीबी ज़ुल्म की मुखालफत करने और मुक़द्दस मकामात की पाकीजगी की हिफाज़त करने में सुलेमानी और मोहनदेस जैसे शहीदों की भूमिका पर रौशनी डाली. उन्होंने इस बात पर औशनी डाली कि कैसे उनकी कुर्बानी ने ज़ुल्म के शिकार मुल्कों के बीच एकता को मजबूत किया और उनके अत्याचार के खिलाफ मुल्कों को साथ खड़े होने की हिम्मत दी है. समारोह में शामिल लोगों को कुरान और पैगंबर की परंपराओं की याद दिलाई गई, जो शहादत के लिए लोगों को तैयार करता है.
सामुदायिक भागीदारी
इस सभा में सभी उम्र के लोगों की भागीदारी देखी गई, जो शहीदों के प्रति गहरे रंज ओ गम का इज़हार किया . इस महफिल में महिलाओं और बच्चों ने भी ख़ास मौजूदगी दर्ज की. कविता पाठ कर, शहीदों की कुर्बानी के साथ भावनात्मक और आध्यात्मिक संबंधों का जिक्र किया. विद्वानों ने जनरल सुलेमानी और अबू महदी अल-मोहंदेस की कुर्बानी को जुल्म के खिलाफ वैश्विक संघर्षों से भी जोड़ा. उन्होंने लोगों से इन शहीदों द्वारा अपनाए गए इस्लाम के मूल सिद्धांतों का पालन करते हुए उत्पीड़न के सामने कभी घुटने न टेकने, उनसे सतर्क रहने और एकजुट होने की गुजारिश की. लोगों से हर हालात में न्याय और सत्य के लिए खड़े रहने की निरंतर जिम्मेदारी की याद भी दिलाई गयी. लोगों ने भी शहीदों के साहस, समर्पण और इस्लाम में अटूट यकीन के मूल्यों का अनुकरण करने के लिए प्रेरित होकर यह सुनिश्चित किया कि उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए रास्ता बनाएंगी और उन्हें जुल्म के खिलाफ लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार करेगी.