Urdu Sad Poetry in hindi: अब नौजवान नस्ल में उर्दू को हिंदी में पढ़ने का शौक चढ़ा है. क्योंकि उन्हें की डिक्शनरी में मौजूद अल्फाज़ बहुत पसंद आते हैं. इसके लिए वो उर्दू शायरी का सहारा लेते हैं. कुछ लोग एक दूसरे से प्यार मोहब्बत का इज़हार करने या रूठों के मनाने के लिए शायरी का इस्तेमाल करते हैं.
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Urdu Sher in Hindi: हालांकि उर्दू के पढ़ने और लिखने वालों की तादाद में दिन-ब-दिन कमी होती जा रही लेकिन इस भाषा के चाहने वालों की तादादा में मुसलसल इज़ाफा होता जा रहा है. जिससे भी उर्दू के बारे में पूछो तो वो इस भाषा को सीखना चाहता है. क्योंकि तहज़ीब की ABCD सिखाने वाली इस जबान की बात अलग ही है. इसीलिए शायर अहमद वसी ने लिखा,"वो करे बात तो हर लफ़्ज़ से ख़ुश्बू आए, ऐसी बोली वही बोले जिसे उर्दू आए."
अब नौजवान नस्ल में उर्दू को हिंदी में पढ़ने का शौक चढ़ा है. क्योंकि उन्हें की डिक्शनरी में मौजूद अल्फाज़ बहुत पसंद आते हैं. इसके लिए वो उर्दू शायरी का सहारा लेते हैं. कुछ लोग एक दूसरे से प्यार मोहब्बत का इज़हार करने या रूठों के मनाने के लिए शायरी का इस्तेमाल करते हैं. ऐसे हालात में माना जाता है कि उर्दू के अल्फाज़ ज्यादा असरदार होते हैं. इस मौके पर हम भी आज आपको उर्दू शायरी के कुछ बेहतरीन शेयर पेश कर रहे हैं.
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
मिर्ज़ा गालिब
पूछा जो उन से चाँद निकलता है किस तरह
ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे डाल के झटका दिया कि यूँ
आरज़ू लखनवी
जिससे पूछें तेरे बारे में यही कहता है
खूबसूरत है वफादार नहीं हो सकता
इक मोहब्बत तो कई बार भी हो सकती है
एक ही शख्स कई बार नहीं हो सकता
वैसे तो इश्क का होना ही बहुत मुश्किल
हो भी जाए तो लगातार नहीं हो सकता
अब्बास ताबिश
क़ातिल ने किस सफ़ाई से धोई है आस्तीं
उस को ख़बर नहीं कि लहू बोलता भी है
इक़बाल अज़ीम
करे है अदावत भी वो इस अदा से
लगे है कि जैसे मोहब्बत करे है
कलीम आजिज़
तुम तो हर बात पे तलवार उठा लेते हो
शोख़ नजरों से भी कुछ काम लिए जाते हैं
शमशीर ग़ाज़ी
दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रब
मेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर नहीं
हफ़ीज़ जालंधरी
बिछड़ गए तो ये दिल उम्र भर लगेगा नहीं
लगेगा, लगने लगा है, मगर लगेगा नहीं
उमैर नज्मी
ये एक बात समझने में रात हो गई है
मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है
तहज़ीब हाफी
मैं जिस के साथ कई दिन गुज़ार आया हूँ
वो मेरे साथ बसर रात क्यूँ नहीं करता
तहज़ीब हाफी
मैं ने चाहा था ज़ख़्म भर जाएँ
ज़ख़्म ही ज़ख़्म भर गए मुझ में
अम्मार इकबाल
एक ही बात मुझ में अच्छी है
और मैं बस वही नहीं करता
अम्मार इकबाल
मुझे याद है अभी तक वो तपिश तेरे लबों की
उन्हें जब छुआ था मैंने, मेरे होठ जल गए थे
अज्ञात
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