Qutub Minar Mosque: अब अगर 9 जून को कोर्ट एएसआई की बात को मानते हुए ये फैसला दे देता है और किसी को भी पूजा करने की इजाज़त नहीं मिलती तो यकीनन इस फैसले के बाद मस्जिद में भी नमाज़ नहीं पढ़ी जा सकेगी.
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नई दिल्ली: कुतुब मीनार परिसर में पूजा की इजाज़त दी जाए, इस मांग को लेकर हिन्दू सगठन कोर्ट गए हुए हैं, इस मामले में कोर्ट 9 जून को फैसला सुनाने वाला है, लेकिन इसी कुतुब मीनार परिसर में एक मुगलकालीन मस्जिद में नमाज़ पढ़ने को लेकर दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड हाई कोर्ट का रुख करने वाला है. बोर्ड का दावा है कि इस मस्जिद में आज़ादी से पहले से नमाज़ होती रही है और पिछले दिनों 13 मई को पुरातत्व विभाग ने नमाज़ को रुकवा दिया.
इस मामले में मस्जिद के इमाम शेर मोहम्मद का बयान भी सामने आया था, जिसमे शेर मोहम्मद ने बताया कि वो 1976 से यहां नमाज़ पढ़ा रहे थे और ये सबकुछ दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड के कागजात में दर्ज है.
दिल्ली वक़्फ़ के कागजात में ये मस्जिद दर्ज तो है लेकिन उसके सामने बड़ा संकट एएसआई के उस हलफनामे से खड़ा हो गया है जो एएसआई ने कोर्ट में दिया और कहा कि कुतुब मीनार एक संरक्षित धरोहर है इसमें किसी को भी पूजा करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती है.
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अब अगर 9 जून को कोर्ट एएसआई की बात को मानते हुए ये फैसला दे देता है और किसी को भी पूजा करने की इजाज़त नहीं मिलती तो यकीनन इस फैसले के बाद मस्जिद में भी नमाज़ नहीं पढ़ी जा सकेगी.
हालांकि दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड के मेम्बर और सीनियर वकील हिमाल अख़्तर कहते हैं कि उनकी मस्जिद में तो नमाज़ मई 2022 तक होती रही, उसके फोटो भी मौजूद है तमाम दस्तावेज रखे हुए हैं. यहां तक कि मस्जिद के इमाम को बोर्ड से सैलरी भी मिलती रही है ऐसे में एएसआई को कोर्ट में जवाब देना पड़ेगा कि अचानक नमाज़ क्यों रोकी गई. अगर ये संरक्षित धरोहर है तो यहां पहले कैसे नमाज़ होती रही.
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इस तमाम मामलों के साथ दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड ने कोर्ट जाने की पूरी रणनीति तैयार कर ली है और वो अपनी पिटीशन के साथ कोर्ट जा रहा है. दिल्ली में ऐसी मस्जिदों की तादाद 50 से ज्यादा है जो मुगलकाल या उससे भी बहुत पहले की हैं और एएसआई ने उन्हें संरक्षित धरोहरों में डाल रखा है वहां नमाज़ नहीं होती है.
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