आतंकवादी का शव देने से इंकार; कोर्ट ने कहा, धार्मिक अधिकार लोक व्यवस्था के अधीन
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आतंकवादी का शव देने से इंकार; कोर्ट ने कहा, धार्मिक अधिकार लोक व्यवस्था के अधीन

Hyderpora encounter exhumation of body: एक शख्स ने पुलिस मुठभेड़ में मारे गए अपने बेटे का शव कब्र से निकालने का अनुरोध किया था ताकि परिवार उसी कब्रिस्तान में उसका अंतिम संस्कार कर सके, लेकिन अदालत ने उसकी अर्जी खारिज कर दी. 

अलामती तस्वीर

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि हर एक शख्स का धार्मिक अधिकार ‘‘लोक व्यवस्था“ के अधीन हैं, और इसके साथ कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें एक शख्स ने अपने बेटे के शव को कब्र से निकालने की अर्जी की थी. याचिका के मुताबिक, उस शख्स के बेटे को आतंकवादी बताया गया था, और उसकी नवंबर 2021 में कश्मीर में एक मुठभेड़ में मौत हो गई थी. शख्स ने अपने बेटे की लाश को कब्र से निकालने का अनुरोध किया था ताकि परिवार उसी कब्रिस्तान में उसका अंतिम संस्कार कर सके.  

लोक व्यवस्था बनाए रखना ज्यादा जरूरी 
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौलिक अधिकारों का इस्तेमाल निरपेक्ष नहीं है, लेकिन नैतिकता, स्वास्थ्य और लोक व्यवस्था को कायम रखा जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमामय जीवन का अधिकार न सिर्फ किसी जीवित शख्स को बल्कि “मृत“ को भी हासिल है. कोर्ट ने आगे कहा, “हर शख्स और हर धर्म के धार्मिक अधिकार, हालांकि, लोक व्यवस्था के अधीन हैं, जिसे बनाए रखना समाज के व्यापक हित में ज्यादा जरूरी है. इन दोनों मौलिक अधिकारों को स्पष्ट रूप से ’लोक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन’ बनाया गया है.’’

आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ में मारा गया
अदालत ने मृतक मोहम्मद आमिर माग्रे के पिता द्वारा दायर एक अपील पर अपना फैसला सुनाया, जो पुलिस और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ में मारा गया था.  
15 नवंबर 2021 को कश्मीर के बडगाम के हैदरपोरा इलाके में आतंकियों और पुलिस के बीच मुठभेड़ हुई थी. रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री से आगे पता चलता है कि मुठभेड़ में मारे गए चार व्यक्तियों में से दो के शव बाद में निकाले गए और उनकी पसंद के स्थान पर उनका अंतिम संस्कार करने के लिए उनके रिश्तेदारों को सौंप दिए गए. अपीलकर्ता के पुत्र सहित मुठभेड़ में मारे गए अन्य दो व्यक्तियों के शवों को औकाफ समिति के माध्यम से दफनाया गया था. 

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