'तीन तलाक’ को अवैध घोषित करने वाले Justice UU Lalit बनें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया
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'तीन तलाक’ को अवैध घोषित करने वाले Justice UU Lalit बनें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया

Chief Justice of India UU Lalit: न्यायमूर्ति यूयू ललित बार से सीधे शीर्ष अदालत की पीठ में पदोन्नत होने वाले देश के दूसरे सीजेआई बन गए हैं. इससे पहले न्यायमूर्ति एस. एम. सीकरी मार्च 1964 में सुप्रीम कोर्ट की पीठ में सीधे प्रोमोट होने वाले पहले वकील थे. 

न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित

नई दिल्लीः न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित को बुधवार को भारत के 49वें प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में नियुक्त किया गया है. वह मुल्क के दूसरे ऐसे प्रधान न्यायाधीश होंगे जो बार से सीधे सुप्रीम कोर्ट की पीठ में पदोन्नत हुए थे. उनसे पहले न्यायमूर्ति एस. एम. सीकरी मार्च 1964 में सुप्रीम कोर्ट की पीठ में सीधे प्रोमोट होने वाले पहले वकील थे. वह जनवरी 1971 में देश के 13वें सीजेआई बने थे. न्यायमूर्ति ललित मौजूदा प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन. वी. रमण के रिटायरमेंट के एक दिन बाद 27 अगस्त को अपना कार्यभार संभालेंगे. जस्टिस यूयू ललित का सीजेआई के तौर पर तीन महीने से भी कम का कार्यकाल होगा और वह इस साल आठ नवंबर को रिटायर हो जाएंगे. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की उम्र 65 साल होती है. 

‘तीन तलाक’ के फैसले में रहे शामिल 
गौरतलब है कि न्यायमूर्ति यूयू ललित को 13 अगस्त 2014 को सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था. उस वक्त वह सीनियर वकील थे. वह मुसलमानों में ‘तीन तलाक’ की प्रथा को गैर कानूनी ठहराने समेत कई ऐतिहासिक फैसल देने वाली बेंच का हिस्सा रहे हैं. पांच न्यायाधीशों की संविधानिक बेंच ने अगस्त 2017 में 3 : 2 के बहुमत से ‘तीन तलाक’ को गैर कानूनी घोषित कर दिया था. उन तीन न्यायाधीशों में न्यायमूर्ति ललित भी थे.

बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई से खुद को किया था अलग 
जनवरी 2019 में, यूयू ललित ने अयोध्या में राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था. मामले में एक मुस्लिम पक्षकार की तरफ से सीनियर वकील राजीव धवन ने संविधान पीठ को बताया था कि न्यायमूर्ति ललित उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के वकील के तौर पर एक संबंधित मामले में साल 1997 में पेश हुए थे. 

कोर्ट का टाइम नौ बजे से करने की दी थी सलाह 
हाल ही में, जस्टिस ललित की सदारत वाली एक पीठ मामलों की सुनवाई के लिए शीर्ष अदालत के सामान्य समय से एक घंटे पहले सुबह 9.30 बजे बैठी थी. जस्टिस यूयू ललित ने कहा था, “मेरे विचार से आदर्श रूप से हमें सुबह नौ बजे बैठना चाहिए. मैंने हमेशा कहा है कि अगर हमारे बच्चे सुबह सात बजे स्कूल जा सकते हैं, तो हम नौ बजे क्यों नहीं आ सकते?“ 

यौन अपराधों पर दिया था यादगार फैसला 
जस्टिस ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) कानून के तहत एक मामले में बंबई हाईकोर्ट के ‘‘त्वचा से त्वचा के संपर्क’’ संबंधी विवादित फैसले को खारिज कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यौन हमले का सबसे महत्वपूर्ण घटक यौन मंशा है, बच्चों की त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं.

2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में कर चुके हैं सरकार की पैरवी 
जस्टिस यूयू ललित का नौ नवंबर, 1957 को जन्म हुआ था. उन्होंने जून 1983 में वकील बने और दिसंबर 1985 तक बंबई हाईकोर्ट में वकालत की थी. वह जनवरी 1986 में दिल्ली आकर वकालत करने लगे और अप्रैल 2004 में, उन्हें सुप्रीम कोर्ट द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया. 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में सुनवाई के लिए उन्हें केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) का विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया गया था.

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