Meer Taqi Meer Poetry: 'कोई तुम सा भी काश तुम को मिले', मीर तकी मीर के चुनिंदा शेर
Advertisement
trendingNow,recommendedStories0/zeesalaam/zeesalaam2041159

Meer Taqi Meer Poetry: 'कोई तुम सा भी काश तुम को मिले', मीर तकी मीर के चुनिंदा शेर

Meer Taqi Meer Poetry: मीर तक़ी मीर का असल नाम मोहम्मद तक़ी था. मीर उत्तर प्रदेश के जिला आगरा में पैदा हुए. मीर 11 साल के ही थे तो उनके वालिद का इंतेका हो गया था. मीर की शायरी में उनका दर्द नजर आता है.

Meer Taqi Meer Poetry: 'कोई तुम सा भी काश तुम को मिले', मीर तकी मीर के चुनिंदा शेर

Meer Taqi Meer Poetry: मीर तकी मीर उर्दू के मशहूर शायर हैं. उनकी शायरी के जो दीवाने हैं वह जिंदगीभर उनके दीवाने बने रहते हैं. हर दौर में अलग-अलग शायर मशहूर हुए लेकिन मीर तकी मीर हर जमाने में मशहूर हुए. जॉन एलिया जैसे बड़े शायर भी मीर तकी मीर को पसंद करते थे. मीर तकी मीर का इंतेकाल 20 सितंबर 1810 में लखनऊ में हुआ.

यूँ उठे आह उस गली से हम 
जैसे कोई जहाँ से उठता है 

क्या कहें कुछ कहा नहीं जाता 
अब तो चुप भी रहा नहीं जाता 

मेरे रोने की हक़ीक़त जिस में थी 
एक मुद्दत तक वो काग़ज़ नम रहा 

क्या कहूँ तुम से मैं कि क्या है इश्क़ 
जान का रोग है बला है इश्क़ 

ज़ख़्म झेले दाग़ भी खाए बहुत 
दिल लगा कर हम तो पछताए बहुत 

कोई तुम सा भी काश तुम को मिले 
मुद्दआ हम को इंतिक़ाम से है 

फूल गुल शम्स ओ क़मर सारे ही थे 
पर हमें उन में तुम्हीं भाए बहुत 

इश्क़ में जी को सब्र ओ ताब कहाँ 
उस से आँखें लड़ीं तो ख़्वाब कहाँ 

अब कर के फ़रामोश तो नाशाद करोगे 
पर हम जो न होंगे तो बहुत याद करोगे 

याद उस की इतनी ख़ूब नहीं 'मीर' बाज़ आ 
नादान फिर वो जी से भुलाया न जाएगा 

हम जानते तो इश्क़ न करते किसू के साथ 
ले जाते दिल को ख़ाक में इस आरज़ू के साथ 

दिल वो नगर नहीं कि फिर आबाद हो सके 
पछताओगे सुनो हो ये बस्ती उजाड़ कर 

Trending news