Momin Khan Momin Poetry: मोमिन ख़ां मोमिन कश्मीरी घराने से थे. उनके दादा हकीम मदार ख़ां शाह आलम के ज़माने में दिल्ली आए और शाही हकीमों में शामिल हो गए.
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Momin Khan Momin Poetry: मोमिन खां मोमिन उर्दू के बेहतरीन शायर हैं. वह मुगल के जमाने के उर्दू शायर थे. मोमिन की पैदाइश दिल्ली के कूचा चेलान में 1801 में हुई. उनका असली नाम 'हकीम मोमिन खां' था. मोमिन उन चंद शायरों में शुमार होते हैं जिन्होंने उर्दू को फैलाने में बहुत मदद की. मोमिन खां मोमिन को चिकित्सा, ज्योतिष, गणित, शतरंज और म्यूजिक का शौक था.
तुम हमारे किसी तरह न हुए
वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता
आप की कौन सी बढ़ी इज़्ज़त
मैं अगर बज़्म में ज़लील हुआ
न करो अब निबाह की बातें
तुम को ऐ मेहरबान देख लिया
वो आए हैं पशेमाँ लाश पर अब
तुझे ऐ ज़िंदगी लाऊँ कहाँ से
मैं भी कुछ ख़ुश नहीं वफ़ा कर के
तुम ने अच्छा किया निबाह न की
माशूक़ से भी हम ने निभाई बराबरी
वाँ लुत्फ़ कम हुआ तो यहाँ प्यार कम हुआ
किसी का हुआ आज कल था किसी का
न है तू किसी का न होगा किसी का
हँस हँस के वो मुझ से ही मिरे क़त्ल की बातें
इस तरह से करते हैं कि गोया न करेंगे
ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम
पर क्या करें कि हो गए नाचार जी से हम
रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह
अटका कहीं जो आप का दिल भी मिरी तरह
उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन'
आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे
न मानूँगा नसीहत पर न सुनता मैं तो क्या करता
कि हर हर बात में नासेह तुम्हारा नाम लेता था