Poetry of the Day: आदिल मन्सूरी (Adil Mansuri) ने कपड़े के कारोबार में हाथ आजमाया. उन्होंने अंग्रेजी टॉपिक और गुजराती अंगना पत्रिकाओं के साथ पत्रकार के तौर पर काम किया.
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Poetry of the Day: आदिल मन्सूरी (Adil Mansuri) मशहूर शायर, नाटककार और लेखक थे. उन्होंने गुजराती, हिन्दी और उर्दू में शायरी लिखी हैं. आदिल मंसूरी की पैदाइश 18 मई 1936 को गुजरात के अहमदाबाद में हुई थी. उनका बचपन का नाम फरीद मोहम्मद गुलाम नबी मंसूरी था. उन्होंने प्रेमचंद रायचंद ट्रेनिंग कॉलेज, अहमदाबाद से अपनी इब्तदाई तालीम पूरी की. इसके बाद अहमदाबाद और कराची से भी पढ़ाई की. आदिल मन्सूरी ने कपड़े के कारोबार में हाथ आजमाया. उन्होंने अंग्रेजी टॉपिक और गुजराती अंगना पत्रिकाओं के साथ पत्रकार के तौर पर काम किया. कुछ दिनों बाद वह भारत छोड़ अमेरिका चले गए. वलांक (1963), पगार्व (1966) और सतात (1970) उनके गजल संग्रह हैं. उन्हें गजलों के लिए जाना जाता है. साल 2008 में उन्हें वली गुजराती पुरस्कार से नवाजा गया. 6 नवंबर 2008 को संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यू जर्सी में उनकी मौत हो गई.
फिर बालों में रात हुई
फिर हाथों में चाँद खिला
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ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में
तिरी याद आँखें दुखाने लगी
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कोई ख़ुद-कुशी की तरफ़ चल दिया
उदासी की मेहनत ठिकाने लगी
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चुप-चाप बैठे रहते हैं कुछ बोलते नहीं
बच्चे बिगड़ गए हैं बहुत देख-भाल से
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मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख कर
उस ने दीवारों को अपनी और ऊँचा कर दिया
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किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप को
काग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के
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क्यूँ चलते चलते रुक गए वीरान रास्तो
तन्हा हूँ आज मैं ज़रा घर तक तो साथ दो
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मुझे पसंद नहीं ऐसे कारोबार में हूँ
ये जब्र है कि मैं ख़ुद अपने इख़्तियार में हूँ
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तस्वीर में जो क़ैद था वो शख़्स रात को
ख़ुद ही फ़्रेम तोड़ के पहलू में आ गया
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दरिया की वुसअतों से उसे नापते नहीं
तन्हाई कितनी गहरी है इक जाम भर के देख
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