'बहुत से ग़म दिसम्बर में दिसम्बर के नहीं होते', दिसंबर पर बेहतरीन शेर
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'बहुत से ग़म दिसम्बर में दिसम्बर के नहीं होते', दिसंबर पर बेहतरीन शेर

Poetry on December: उर्दू के मशहूर शायर जौन एलिया ने दिसंबर के बारे में लिखा है कि 'बहुत से ग़म दिसम्बर में दिसम्बर के नहीं होते, उसे भी जून का ग़म था मगर रोया दिसम्बर में'.

 

'बहुत से ग़म दिसम्बर में दिसम्बर के नहीं होते', दिसंबर पर बेहतरीन शेर

Poetry on December: उर्दू और हिंदी के कई बड़े शायरों ने दिसंबर को अपनी शायरी का मौजूं बनाया है. दिसंबर के महीने में हम आपके सामने लेकर आए हैं दिसंबर की शायरी.

तू मयस्सर नहीं है, सर्दी है
और दिसम्बर की ग़ुंडा-गर्दी है
-जे ई नज्म 

रोते हैं जब भी हम दिसम्बर में
जम से जाते हैं ग़म दिसम्बर में
-इंद्र सराज़ी 

'सैफ़ी' मेरे उजले उजले कोट पर
मल गया कालक दिसम्बर देख ले
-मुनीर सैफ़ी 

इरादा था जी लूँगा तुझ से बिछड़ कर
गुज़रता नहीं इक दिसम्बर अकेले
-ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

मैं एक बोरी में लाया हूँ भर के मूँग-फली
किसी के साथ दिसम्बर की रात काटनी है
-अज़ीज़ फ़ैसल 

सर्द ठिठुरी हुई लिपटी हुई सरसर की तरह
ज़िंदगी मुझ से मिली पिछले दिसम्बर की तरह
-मंसूर आफ़ाक़

'अल्वी' ये मोजिज़ा है दिसम्बर की धूप का
सारे मकान शहर के धोए हुए से हैं
-मोहम्मद अल्वी

हर दिसम्बर इसी वहशत में गुज़ारा कि कहीं
फिर से आँखों में तिरे ख़्वाब न आने लग जाएँ
-रेहाना रूही

मुझ से पूछो कभी तकमील न होने की चुभन
मुझ पे बीते हैं कई साल दिसम्बर के बग़ैर
-मोहम्मद अली ज़ाहिर

सताती हैं रुलाती हैं मुझे यादें दिसम्बर की
जगाती हैं जलाती हैं मुझे रातें दिसम्बर की
-मुनज़्ज़ह नूर

सामने आँखों के फिर यख़-बस्ता मंज़र आएगा
धूप जम जाएगी आँगन में दिसम्बर आएगा
-सुल्तान अख़्तर

बहुत से ग़म दिसम्बर में दिसम्बर के नहीं होते
उसे भी जून का ग़म था मगर रोया दिसम्बर में
-जौन एलिया

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