Purnia Flag Controversy: सभी हरा झंडा नहीं होता है पाकिस्तानी; फिर भारत में कौन फहरा रहा है इसे ?
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Purnia Flag Controversy: सभी हरा झंडा नहीं होता है पाकिस्तानी; फिर भारत में कौन फहरा रहा है इसे ?

Purnia Flag Controversy Not every green flag is Pakistani: ऐसा अक्सर होता है कि हर हरे झंडे को पाकिस्तान का झंडा बताकर लोग मुसलमानों को पाकिस्तान परस्त और भारत विरोधी बताकर उन्हें टारगेट करने की कोशिश करते हैं, जबकि हरे रंग के अन्य धार्मिक झंडे और पाकिस्तानी झंडे में मौलिक अंतर होता है, जिसे विरोधी नजरअंदाज कर देते हैं. 

 

Purnia Flag Controversy: सभी हरा झंडा नहीं होता है पाकिस्तानी; फिर भारत में कौन फहरा रहा है इसे ?

नई दिल्लीः 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर बिहार के पूर्णिया में मुस्लिम बहुल इलाके में एक घर की छत पर पाकिस्तानी झंडा फहराता देखकर इलाके में बवाल मच गया. कुछ लोगों ने इस झंडे का विरोध किया और तत्काल इसकी सूचना स्थानीय पुलिस स्टेशन को दी. पुलिस ने मौके पर पहुंचकर झंडा जब्त कर लिया और इस तरह इलाके का माहौल तनावपूर्ण बनने के पहले ही मामले को सुलझा लिया गया. सदर डीएसपी सुरेंद्र कुमार सरोज ने कहा कि छत पर फहरा रहा झंडा एक धार्मिक झंडा था न कि पाकिस्तान का राष्ट्रीय ध्वज. पूर्णिया के मामले में पुलिस और प्रशासन की तत्परता ने एक बड़े विवाद को पैदा होने के पहले ही रोक दिया. 

हालांकि, पूर्णिया में धार्मिक झंडे को पाकिस्तानी झंडा बताकर बवाल खड़ा करने का प्रयास कोई देश या बिहार का पहला मामला नहीं है. ऐसी घटनाएं अक्सर देशभर में होती रहती हैं, जब हरे रंग के धार्मिक झंडे का पाकिस्तानी झंडा बताकर उसे प्रचारित किया जाता है और इलाके का सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने की कोशिश की जाती है. इससे पहले भी इस तरह के मामले बिहार के दरभंगा, मुजफ्फरपुर, वैशाली, गया और यूपी के कई जिलों में सामने आ चुके हैं. इसे लेकर कई जगहों पर दो समुदायों के बीच आपस में पथराव, मारपीट और आगजनी तक की घटनाएं हो चुकी हैं.

आला हजरत का मज़ार और अब्दुल कादिर जिलानी का मज़ार 

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झंडा अगर पाकिस्तानी नहीं है, तो भारत में क्यों होता है इसका इस्तेमाल 
हर देश का एक अपना राष्ट्रीय ध्वज होता है, लेकिन देश के अदंर राजनीतिक दल, सैन्य संगठन, धार्मिक और सांस्कृतिक संगठन भी अपनी कोई पहचान, लोगो या इस तरह का झंडा धारण कर सकता है. कानूनन इसपर कोई रोक नहीं है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भी अपना गेरूआ रंग का एक झंडा है. इसी तरह मुसलमानों के बरेलवी मसलक का भी अपना एक हरे रंग का झंडा है. इस हरे रंग के झंडे में ब्लैक एंड व्हाइट जिग जैग लाइन बनी होती है, जिसे बरेली स्थित बरेलवी थॉट ऑफ इस्लाम के संस्थापक अहमद रजा, जिन्हें आला हजरत के नाम से भी जाना जाता है, उनके मजार से लिया गया है. आला हजरत के दरगाह का गुंबद का डिजाइन बिल्कुल ऐसे ही सफेद और काली पट्टी से बना हुआ है. वहीं, इस झंडे में ब्लू वाला डिजाइन इराक की राजधानी बगदाद स्थित पीर अब्दुल कादिर जिलानी के दरगाह के गुंबद के डिजाइन से लिया गया है. विदित हो कि भारत में देवबंदी मसलक के मुसलमानों का कोई झंडा या धार्मिक चिन्ह नहीं है. सिर्फ बेरेलवी मुसलमान इसे अपनी अलग पहचान के तौर पर इस झंडे को धार्मिक आयोजनों के मौकों पर इस्तेमाल करते हैं. 

पाकिस्तानी झंडा  
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पाकिस्तान और भारत के धार्मिक झंडे में क्या है फर्क 
पाकिस्तान और भारत के बरेलवी विचार के मुसलमानों के धार्मिक झंडे में एक बड़ी समानता ये है कि दोनों का आधार रंग हरा है. पाकिस्तान के राष्ट्रीय झंडे में डंडे से लगने वाला हिस्सा सफेद होता है और उसके बाद हरे रंग की बड़ी पट्टी होती है, जिसके बीचो-बीच सफेद रंग का चांद और उसमें एक तारा बना होता है, जबकि बरेलवी मुसलमानों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले झंडे में डंडे से लगनी वाली पट्टी सफेद और काले चेकदार कपड़े का होता है. उसके बाद एक ब्लू डिजाइन वाली पट्टी लगी होती है, इसके बाद का शेष हिस्सा हरा होता है. इसमें हरे रंग वाले हिस्से में चांद और तारा बना होता है. 

दावत-ए-इस्लामी का झंडा 

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दावत-ए-इस्लामी और जमात-ए- इस्लामी का भी है हरा झंडा 
हालांकि,  कुछ और संस्थानों के हरे रंग के झंडे हैं, जिसे पाकिस्तानी झंडा समझ लिया जाता है. इसमें पाकिस्तान स्थित दावत-ए-इस्लामी का झंडा भी शामिल है. यह पूरी तरह भारत के बरेलवी झंडे जैसे होता है, लेकिन इसमें हरे रंग वाले हिस्से में चांद तारा नहीं होता है. दावत-ए-इस्लामी भी सुन्नी मुसलमानों का समूह है, जो बरेलवी मसलक के मुसलमान हैं. यह एक परोपकारी संगठन है और इस्लाम के प्रचार-प्रसार का काम करता है. इसी तरह पाकिस्तान के जमात-ए-इस्लामी संगठन का झंडा भी हरे रंग का होता है. उसमें डंडे से लगने वाला हिस्सा नीला होता है. इसके बाद एक सफेद पट्टी होती है और फिर शेष हिस्सा हरा होता है, जिसपर चांद और तारा बना होता है. इसके उपर के हिस्से में कलमा भी लिखा होता है. 

जमात-ए-इस्लामी का झंडा 

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मुहर्रम का भी हरा झंडा
भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में मुहर्रम के मौके पर भी कुछ लोग ताजिया और इमामबाड़े के पास हरा झंडा लगा देते हैं. ये झंडा आयाताकार और कई बार त्रिकोणिय आकार का भी होता है. यह पूरा हरा होता है, इसमें कोई और रंग या डिजायन नहीं होता है. 

मुहर्रम का झंडा 

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कब दिखते हैं ऐसे झंडे
भारत में आम तौर पर दो मौकों पर ऐसे झंडे सार्वजनिक तौर पर देखे जाते हैं. मुहर्रम के मौके पर कुछ लोग इस तरह का हरा झंडा अपने घरों पर लगा लेते हैं. दूसरा पैगम्बर मोहम्मद साहब के जन्म दिन के मौके पर मुसलमानों का एक वर्ग उनकी याद में सार्वजनिक जुलूस का आयोजन करता है और इस मौके पर ऐसे झंडों का प्रयोग करता है. यही वह दो मौके होते हैं, जब मुस्लिम बहुल इलाकों में ऐसे झंडे देखे जाने के बाद विवाद और बवाल खड़े किए जाते हैं. 

क्या कोई इस्लामिक झंडा भी होता है 
इस मामले में इस्लामिक स्कॉलर अबरार अहमद इस्लाही कहते हैं, "इस्लाम में इस तरह के किसी झंडे का कोई कॉन्सेप्ट नहीं है, जिसे इस्लामी झंडा बताया जाए. संगठनों के अपने-अपने झंडे हैं. इसमें पूरी दुनिया के मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने जैसा कुछ नहीं है."  वहीं, पूर्णिया की घटना के बाद जुमे की सामूहिक नमाज में मस्जिद के इमाम मुख्तार अहमद ने लोगों से ऐसे किसी भी विवाद और संशय पैदा करने वाले झंडे को अपने घरों पर लगाने से परहेज करने की सलाह दी है. 

... तो फिर हर झंडे में हरे रंग का क्यों होता है इस्तेमाल 
इस मुद्दे पर मुफ्ती इरफान अहमद कहते हैं, "इसके पीछे कोई खास वजह नहीं है. इस्लाम के अखिरी पैगंबद मोहम्मद साहब अक्सर सिर पर हरे रंग की पगड़ी बांधा करते थे. उन्होंने कहा था कि इस रंग से आंखों को ठंडक पहुंचती है और यह एक प्राकृतिक रंग है. इसलिए उनके अनुयायी मुसलमान हरे रंग को पसंद करते हैं."  

हरे रंग के झंडे पर कौन करता है विवाद 
हरे रंग के सभी झंडे को पाकिस्तानी झंडा बताकर विवाद करने की घटनाएं आए दिन होती रहती हैं. इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम मामलों की पैरवी करने वाले वकील नियाजुद्दीन अहमद कहते हैं, "विवाद पैदा करने वालों में दो लोग हैं. एक वह लोग हैं, जो सचमुच में झंडे को लेकर भ्रम के शिकार हैं. उन्हें हर हरा झंडा पाकिस्तानी झंडा दिखाई देता है. लेकिन इतने मासूम लोगों की संख्या मुट्टीभर है. इसमें ज्यादातर वह लोग हैं, जो जानबूझ कर झंडे की आड़ में सांप्रदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ने का बहाना ढूंढते हैं और अल्पसंख्यक वर्ग को टारगेट करते हैं."  

मुसलमानों की गलतियां ढूंढते हैं लोग 
पूर्णिया में जो घटना हुई उसपर वहां के जदयू के एक स्थानीय कार्यकर्ता कैफी अहमद कहते हैं,  "जिन के घर लगे बरेलवी झंडे को पाकिस्तान झंडा बताया गया, वह मुबारकउद्दीन का घर है, जो संस्कृत के शिक्षक हैं और लोग उन्हें इस वजह से पंडित जी कहकर बुलाते हैं. चूंकि वह एक बरेलवी विचारधारा के मुसलमान हैं, इसलिए उनके लड़के ने ऐसा झंडा लगा दिया था. उसने किसी पाकिस्तान प्रेम में ऐसा झंडा नहीं लगाया था. 
इस मामले में एक स्थानीय स्वतंत्र पत्रकार तेजस्वी कुमार कहते हैं, "हरे झंडे को लेकर लोगों में बहुत कंफ्यूजन है. अक्सर बहुसंख्यक तबका अल्पसंख्यक बहुल इलाके और मोहल्ले को मिनी पाकिस्तान कहकर संबोधित करता है, और उनकी देशभक्ति को शक की निगाह से देखते हैं. इसलिए ऐसे किसी भी गतिविधियों को लोग तूल देकर समुदाय की छवि खराब करने की कोशिश करते हैं.
वहीं, इलाके के सोशल एक्टिविस्ट विकास आदित्य कहते हैं, "ये बड़ी विडंबना है कि झंडा लगाने वाले और इसका विरोध करने वाले दोनों में से किसी को भी पाकिस्तानी झंडे की पहचान नहीं है, फिर भी लड़ने और भिड़ने के लिए लोग तैयार हो जाते हैं." विकास आदित्य कहते हैं, "सोशल मीडिया यूजर्स और स्थानीय पत्रकारों ने भी इस विवाद को हवा देने का काम किया था." 

Zee Salaam

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