7 बेटियों ने अदा किया बेटों का फर्ज़: बाप की अर्थी की कंधों पर उठाकर निभाई सभी रस्में
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7 बेटियों ने अदा किया बेटों का फर्ज़: बाप की अर्थी की कंधों पर उठाकर निभाई सभी रस्में

शायद ही इससे पहले कभी आपने इस तरह की तस्वीर देखी हो. शायद ही इससे पहले बेटियां अपने कंधों पर अपने बाप की अर्थी श्मशान तक लेकर गई हों

7 बेटियों ने अदा किया बेटों का फर्ज़: बाप की अर्थी की कंधों पर उठाकर निभाई सभी रस्में

बाड़मेर: एक ज़माना था जब बेटियों को बेटों से कमतर समझा जाता था. हर काम में बेटों को तरजीह दी जाती थी लेकिन आज की बेटियां किसी से कम नहीं हैं, वो घर और बाहर दोनों की ज़िम्मेदारी खूब अच्छी तरह निभा रही हैं. ऐसी ही एक तस्वीर राजस्थान के बाड़मेर में नज़र आई. ये तस्वीर पुरानी रिवायात को अपनी पीठ पर ढोने वालों के लिए सबक है. दरअसल यहां पर सातों बेटियों ने अपने पिता के आखिरी सफर की तमाम रस्में पूरी की हैं.

शायद ही इससे पहले कभी आपने इस तरह की तस्वीर देखी हो. शायद ही इससे पहले बेटियां अपने कंधों पर अपने बाप की अर्थी श्मशान तक लेकर गई हों. शायद ही इससे पहले आपने बिटियों को अपने वालिद को मुख अग्नि देते देखा हो. इस मंज़र को देखते जो भी देख रहा है उसकी आंखे पुरनम हो जाती है. आंखों से आंसू रिसने लगते हैं. पुरानी रिवायात को तोड़कर ये तस्वीर इस दौर की है. आसमान की चौहद्दी नापने वाली, चांद पर जमीन तलाशने वाली, जंग के मैदान में झांसी की रानी बनने वाली बेटियों की ये तस्वीरें कुछ अलग ही कहानी बयान कर रही हैं.

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बाड़मेर के महाबार गांव के साबिक सरपंच और आलमी शोहरत याफ़्ता ब्रह्मधाम आसोतरा के ट्रस्टी हेमसिंह राजपुरोहित का जोधपुर में निधन हो गया. उनका आखिरी सफर उनके आबाई गांव महाबार में निकाला गया. हेमसिंह महाबार की सातों बेटियों ने अपने पिता की आखिरी रसूमात पूरी करने के लिए अपने पल्लू से रिवायात की गिरहें खोल दी और अपने कंधों पर वालिद की अर्थी लेकर शम्शान की तरफ निकल पड़ीं. सातों बेटियों ने वालिद को मुखअग्नि दी और रीति रिवाज के साथ आखिरी रसूमात को अंजाम दिया.

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