आगरा के जयपुर हाउस के रहने वाले मोहित को समझ नहीं आ रहा था कि वो पिता की लाश श्मशान कैसे ले जाए. इस दौरान उसने कई तरह की कोशिशें की, एंबुलेंस को बुलाना चाहा लेकिन कोई इंतेजाम नहीं हो सका.
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नई दिल्ली: कोरोना के तेज़ी से बढ़ रहे मामलों के बीच अस्पतालों में कई तरह की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है. कई लोगों को अपने मरीज को अस्पताल पहुंचाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिल रही तो कई को अपनों की लाशें घर या श्मशान ले जाने के लिए गाड़ियां नहीं मिल रहीं. एक ऐसा ही मामला उत्तर प्रदेश का आगरा में आया है.
आगरा के जयपुर हाउस के रहने वाले मोहित को समझ नहीं आ रहा था कि वो पिता की लाश श्मशान कैसे ले जाए. इस दौरान उसने कई तरह की कोशिशें की, एंबुलेंस को बुलाना चाहा लेकिन कोई इंतेजाम नहीं हो सका. जिसके बाद मोहित ने फैसला किया कि वो अपने पिता की लाश को अपनी कार की छत पर रख कर ले जाएगा, ताकि मोक्षधाम ले जाकर दाह संस्कार किया जा सके.
मोहित जब पिता की लाश को कार से बांधकर श्मशान ले जा रहा था देखनें वालों की आंखें फटी की फटी रह गईं. लेकिन श्मशान घाट पहुंचने के मोहित ने देखा कि यहां का नजारा भी हैरान कर देने वाला था. क्योंकि यहां उससे पहले कई लोग अपनों का दांह संस्कार करने के लिए आए हुए थे. जो कई घंटों से इंतेजार कर रहे थे.
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घंटो इंतेजार करने के बाद मोहित का नंबर आया और उसने पिता की लाश को कार की छत से उतार कर उनका अंतिम संस्कार किया. एक जानकारी के मुताबिक आगरा के ताजगंज श्मशान में 20 घंटे लगातार चिमनियां चलती जा रही हैं. रोजाना यहां कम से कम 50 शव अंतिम संस्कार के लिए आते हैं. हालत ये हो गई कि शाम तक दाह संस्कार के लिए 6 घंटे की वेटिंग हो हो जाती है.
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