IIT-BOMBAY के लेक्चर में हमास का समर्थन करने पर फिल्मकार के खिलाफ मुकदमा
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IIT-BOMBAY के लेक्चर में हमास का समर्थन करने पर फिल्मकार के खिलाफ मुकदमा

आईआईटी बॉम्बे के छात्रों ने अपनी एक प्रोफेसर और गेस्ट स्पीकर के खिलाफ एक शिकायत दर्ज की है, जिसमे गेस्ट स्पीकर कथित तौर पर फिलिस्तीनी आतकंवाद को बढ़ावा दे रहे थे. छात्रों का कहना है कि इस तरह की बातें एक लेक्चर में छात्रों को हिंसा की सीख दे सकती है.

IIT-BOMBAY के लेक्चर में हमास का समर्थन करने पर फिल्मकार के खिलाफ मुकदमा

IIT Bombay: हाल ही में आईआईटी बॉम्बे के छात्रों ने प्रोफेसर शर्मिष्ठा साहा और गेस्ट स्पीकर सुधन्वा देशपांडे के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है. बुधवार को दर्ज की गई शिकायत में उन पर हाल ही में वर्चुअल लेक्चर में फिलिस्तीनी आतंकवादियों का समर्थन करने का इलज़ाम लगाया है. छात्रों के मुताबिक प्रोफेसर साहा ने सुधन्वा देशपांडे को छात्रों को संबोधित करने के लिए बुलाया था, जो अपनी कम्युनिस्ट सोच के लिए जाने जाते हैं.देशपांडे ने अपनी स्पीच में फिलिस्तीनी आतंकवादी ज़करिया ज़ुबैदी की हिमायत की थी.  2015 में ज़ुबैदी से मिलने की बात कबूलने और उसके बचाव, हिंसा और सशस्त्र विद्रोह का समर्थन किया था.  इसकी वजह से छात्रों के बीच काफी चिंता पैदा हो गयी है. पुलिस को लिखी शिकायत में कहा गया है कि ज़ुबैदी अल-अक्सा शहीद ब्रिगेड से जुड़ा है, जिसे विभिन्न सरकारों द्वारा आतंकवादी ऐलान किया गया है, जिनमे अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और इज़राइल शामिल है. 

आईआईटी के छात्रों ने युवा छात्रों के प्रभावशाली दिमाग पर ऐसी गतिविधियों के प्रभाव और संबंधित सुरक्षा जोखिमों के बारे में अपनी चिंता जताई है, जो की आतंकवाद से जुड़ी विचारधाराओं को बढ़ावा देता है. उन्होंने पुलिस से मामले की गहराई से जांच कर और कार्रवाई करने की मांग की है. शिकायत में देशपांडे के हवाले से कहा गया है, "फिलिस्तीनी संघर्ष एक स्वतंत्रता संग्राम है," इस बात पर ज़ोर दिया गया है, कि ऐतिहासिक संघर्ष, जिसमें भारत की लड़ाई भी शामिल है. आज़ादी पूरी तरह अहिंसक नहीं थी. हालाँकि, इस रुख ने ऐसे कंट्रोवर्शियल विषयों पर चर्चा करने की उपयुक्तता के बारे में एक बहस छेड़ दी है. यह घटना शैक्षणिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शिक्षकों की सुरक्षित और निष्पक्ष शिक्षा देने की ज़िम्मेदारी के बीच नाज़ुक संतुलन पर प्रकाश डालती है. अब यह देखना बाकी है कि यह कंट्रोवर्सी उच्च शिक्षा संस्थानों के अंदर अकादमिक स्वतंत्रता पर चर्चा को कैसे प्रभावित करेगा.

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