बहुविवाह, निकाह और हलाला के ख़िलाफ़ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस,अक्टूबर में सुनवाई
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बहुविवाह, निकाह और हलाला के ख़िलाफ़ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस,अक्टूबर में सुनवाई

POLYGAMY,HALALA:बहुविवाह और निकाह हलाला के ख़िलाफ़ अर्ज़ियों पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी करके सेंट्रल, नेशनल कमीशन फॉर वुमन, एनएचआरसी से जवाब मांगा. इस मामले पर पांच जजों की बेंच दशहरे के बाद सुनवाई करेगी.तीन तलाक़, बहुविवाह और निकाह हलाला से औरतों का नुक़सान होने की बात कही गई है.5 जजों की बेंच केस की समाअत अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में कर सकती है.

अलामती तस्वीर

बहुविवाह और हलाला पर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट की आईनी बेंच ने मंगल को मुस्लिमों में बहुविवाह और निकाह हलाला की रिवायत को ख़त्म करने के लिए कई अर्ज़ियों पर नोटिस जारी किया. दशहरा की छुट्टियों के बाद अर्ज़ियों पर सुनवाई का वक़्त तय किया है. इन प्रथाओं को चैलेंज देने वाली नौ अर्ज़ियों को मंगल को पांच जजों की बेंच के सामने सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था, जिसमें जस्टिस इंदिरा बनर्जी, हेमंत गुप्ता, सूर्यकांत, एम.एम. सुंदरेश और सुधांशु धूलिया शामिल हैं.

अर्ज़ी मुस्लिम ख़्वातीन के ज़रिए दायर की गई है. वकील अश्विनी उपाध्याय ने बहुविवाह और निकाह हलाला की आईनी वैधता को चैलेंज दिया है। मार्च 2018 में तीन जजों की बेंच ने ये मामले 5 जजों की पीठ को भेजे थे. सुप्रीम कोर्ट ने मंगल को सेंट्रल गवर्नमेंट, नेशनल वूमन कमीशन के अलावा, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग, विधि आयोग वग़ैरह को नोटिस जारी करके मामले की समाअत के लिए दशहरा की छुट्टियों के बाद की तारीख़ तय की है.

उपाध्याय की अर्ज़ी में कहा गया है कि तीन तलाक़, बहुविवाह और निकाह हलाला से औरतों को नुक़सान होता है और यह आईन के आर्टिकल 14, 15 और 21 की ख़िलाफवर्ज़ी है. अर्ज़ी में मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 की दफ़ा 2 को ग़ैर आईन और आईन के आर्टिकल 14, 15 और 21 की ख़िलाफ़वर्ज़ी घोषित करने का निर्देश देने की मांग की गई है. उपाध्याय की अर्ज़ी में कहा गया है कि यह अच्छी तरह से तय है कि पर्सनल लॉ पर कॉमन लॉ की प्रधानता है। इसलिए कोर्ट यह ऐलान कर सकता है कि - तीन तलाक आईपीसी, 1860 की दफा 498ए के तहत क्रूरता है, निकाह हलाला आईपीसी, 1860 की दफ़ा 375 के तहत दुष्कर्म है और बहुविवाह आईपीसी, 1860 की दफा 494 के तहत क्राइम है.

अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि तीन तलाक की मुस्लिम प्रथा ग़ैर आईनी है और इसे 3:2 बहुमत से रद्द कर दिया था। बहुविवाह एक मुस्लिम मर्द को चार बीवियां रखने की इजाज़त देता है और किसी मुस्लिम ख़ातून का एक बार तलाक हो जाने के बाद उसके शौहर को उसे वापस लेने की इजाज़त नहीं है, भले ही उसने किसी नशे की हालत में तलाक दी हो.2017 के फैसले में एससी ने तीन तलाक की रिवायत को ख़ारिज करते हुए बहुविवाह और निकाह हलाला के ईशूज़ को खुला रखा था.अर्ज़ी में कहा गया है कि मज़हबी लीडरान और पुजारी जैसे इमाम, मौलवी, वग़ैरह जो तलाक-ए-बिदत, निकाह हलाला और बहुविवाह जैसी रिवायात की तश्हीर, हिमायत और अधिकृत करते हैं, मुस्लिम ख्वातीन को इस तरह अपने अधीन करने के लिए अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। ये रिवायात ख्वातीन को इमलाक मानती हैं, जो आईन के आर्टिकल 14, 15 और 21 में निहित उनके बुनियादी हुक़ू़क़ की ख़िलाफ़ वर्ज़ी है.

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