International Mother Language Day: मातृभाषा बोलने पर अध्यापक ने उड़ाया था मजाक, आज बन गए शायर
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International Mother Language Day: मातृभाषा बोलने पर अध्यापक ने उड़ाया था मजाक, आज बन गए शायर

International Mother Language Day:आसिफ़ ने कश्मीरी भाषा में लगभग 15 किताबें लिखी हैं, जिनमें कविता और गद्य दोनों शामिल हैं. लेकिन उनका मानना ​​है कि अपने काम को खुद प्रकाशित करवाना उन्हें तरीका नहीं लगता. 

आसिफ़ तारिक भट

वकार मंज़ूर/गांदरबल: इंसान की जिंदगी में भाषा बहुत अहमियत रखती है. इसके जरिए ही दूसरे से सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है. आज कल बड़े पैमाने पर अंग्रेजी भाषा बोली जाती है. यह दूर दराज के लोगों के साथ संवाद करने के लिए अच्छा माध्यम है. लेकिन क्षेत्रीय भाषाओं का अपना मकाम है. क्षेत्रीय भाषाओं में इंसान अपने आपको बहुत सहज महसूस करता है. इसी बात को जहन में रखते हुए यूनेक्को ने 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस (International Mother Language Day) को मनाने का ऐलान किया.

मातृभाषा को नई पीढ़ी तक पहुंचा रहे हैं
क्षेत्रीय भाषाओं की बात करें तो कश्मीरी भाषा का अपना अलग मकाम है. यह भाषा विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही है. बताया जाता है कि कश्मीरी साहित्य बहुत कम बचा है. लोग इसे सिर्फ आम बोल चाल में इस्तेमाल करते हैं. लेकिन कश्मीर के कुछ लोग हैं जो इस भाषा को बचाने और आने वाली पीढ़ी तक इसे पहुंचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. उनमें से एक हैं आसिफ़ तारिक भट.

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पहली कविता कश्मीरी में लिखी
आसिफ़ तारिक भट कश्मीरी भाषा के कवि और लघु कथाकार हैं. वह कश्मीरी भाषा को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. आसिफ़ तारिक भट जिला गांदरबल के दुडरहामा के रहने वाले हैं. उन्होंने प्राथमिक विद्यालय में अपनी पढ़ाई शुरू की. आसिफ़ ने अपनी पहली कविता 'वक़्त' कश्मीरी में लिखी थी. 

कश्मीरी बोलने पर अध्यापक ने उड़ाया मजाक
आसिफ़ तारिक भट के मुताबिक उन्हें अपनी मातृभाषा से बहुत लगाव है. वह बताते हैं कि बचपन में एक बार उन्होंने अपने अध्यापक के सामने कश्मीरी बोली थी. इस पर उनके अध्यापक ने उनका उपहास उड़ाया था. इसके बाद आसिफ ने वह स्कूल छोड़ दिया था और दूसरे स्कूल में दाखिला लिया था. वक्त के साथ-साथ सब ठीक हो जाता है, आसिफ़ के साथ भी वही हुआ. 

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उस्ताद हुए खुश
आसिफ़ तारिक भट ने कश्मीरी भाषा में कई ग़ज़लें, नज़में और लघु कथाएं लिखी. वह कश्मीर के मशहूर कवि ज़रीफ़ अहमद ज़रीफ़ साहब के पास गए. उन्होंने ज़रीफ़ साहब को अपनी कुछ रचनाएं दिखाईं. आसिफ़ को अपना छात्र बनाकर जरीफ़ साहब मोहित हो गए. इसके करीब नौ साल बाद आसिफ़ शायर बने. जरीफ़ बताते हैं कि आसिफ की कहानियों से ज्यादा उन्हें उस भाषा की तारतम्यता पसंद आई जो उन्हें सुनाई गई थी. 

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खेलने की उम्र में सीखी भाषा
आसिफ़ बताते हैं कि कम उम्र से ही उन्हें मीठी जुबान (कश्मीरी) को सीखने का एक उत्साह था. उसके बाद यह जुनून बन गया. जब आसिफ़ के दोस्त घास के मैदानों में खेलते थे, उन दिनों वह कश्मीरी भाषा और साहित्य सीखने में लगे रहते थे. यह मेहनत अपनी भाषा को जानने की थी. इसके साथ अपने आपको जानने की थी. 

कश्मीरी में 15 किताबें लिखीं
आसिफ़ ने कश्मीरी भाषा में लगभग 15 किताबें लिखी हैं, जिनमें कविता और गद्य दोनों शामिल हैं. लेकिन उनका मानना ​​है कि अपने काम को खुद प्रकाशित करवाना उन्हें तरीका नहीं लगता. आसिफ़ ने कई लघु कथाएँ लिखी हैं. आसिफ़ ने जो किताबें लिखी हैं उनके नाम "शिकेयर गो शिकार कारित" और "तेमी दो ऊस रूड पेवान" हैं. आसिफ़ का मानना ​​है कि मातृभाषा ही इंसान की पहचान होती है और हमें अपनी मातृभाषा में बोलने में शर्माना नहीं चाहिए.

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