मद्रास हाई कोर्ट ने शनिवार को आरक्षण पर एक बड़े फैसला दिया है. जिसके तहत अगर कोई शख्स मजहब बदलने के बाद जाति के आधार पर आरक्षण का दावा करता है. तो उसे इस आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता.
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चेन्नई: मद्रास हाई कोर्ट ने शनिवार को आरक्षण पर एक बड़े फैसला दिया है. जिसके तहत अगर कोई शख्स मजहब बदलने के बाद जाति के आधार पर आरक्षण का दावा करता है. तो उसे इस आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता. जस्टिस जी.आर. की अध्यक्षता वाली मद्रास हाई कोर्ट की पीठ स्वामीनाथन ने इसी मामले में फैसला सुनाया. और उसकी याचिका खारिज करने का आदेश दिया.
2008 में अपना लिया था इस्लाम मज़हब
दरअसल सबसे पिछड़े समुदाय के एक हिंदू व्यक्ति ने इस्लाम धर्म अपना लिया था, उसने साल 2018 में तमिलनाडु संयुक्त सिविल सेवा परीक्षा दी थी, लेकिन पास नहीं हो पाया. जानकारी जुटाने पर उसे पता चला कि उसे सामान्य श्रेणी का उम्मीदवार माना गया था.
नौकरियों में आरक्षण की मांग
याचिकाकर्ता की ओर से राज्य सरकार की नौकरियों में जाति आधारित कोटा मांगा. जिस पर पीठ ने कहा कि धर्म बदलने का मतलब है कि वह जाति व्यवस्था को नहीं मानता. लिहाज़ा उसका उस जाति से कोई नाता नहीं रह जाता, जिसमें वह पैदा हुआ था.
पिछड़े वर्ग का मुस्लिम मानने की मांग
अपनी याचिका के दौरान उसने कहा कि उसे पिछड़े वर्ग का मुस्लिम माना जाना चाहिए था. आगे कहा कि धर्म बदलने में उसने अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग किया. क्योंकि तमिलनाडु सरकार कुछ मुस्लिम श्रेणियों को सबसे पिछड़ा वर्ग समुदाय मानती है.
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