14 अगस्त 1947 को कहने को तो एक देश का बंटवारा था, लेकिन दरअसल यह दिलों का, परिवारों का, रिश्तों का और भावनाओं का बंटवारा था. भारत के सीने पर बंटवारे का यह जख्म सदियों तक रिसता रहेगा और आने वाली नस्ले तारीख के इस सबसे दर्दनाक और रक्तरंजित दिन की टीस महसूस करती रहेंगी.
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नई दिल्लीः मुल्क के इतिहास में 14 अगस्त की तारीख आंसुओं से लिखी गई एक ऐसी ईबारत है, जिसमें बेइंतहा दर्द, गम, गुस्सा और एक पछतावे का भाव है. यही वह दिन था जब देश का बंटवारा हुआ और 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान और 15 अगस्त, 1947 को भारत को एक अलग राष्ट्र घोषित कर दिया गया. इस विभाजन में न केवल भारतीय उप-महाद्वीप के दो टुकड़े किये गये बल्कि बंगाल का भी विभाजन किया गया और बंगाल के पूर्वी हिस्से को भारत से अलग कर पूर्वी पाकिस्तान बना दिया गया, जो 1971 के युद्ध के बाद बांग्लादेश बना. कहने को तो यह एक देश का बंटवारा था, लेकिन दरअसल यह दिलों का, परिवारों का, रिश्तों का और भावनाओं का बंटवारा था. भारत के सीने पर बंटवारे का यह जख्म सदियों तक रिसता रहेगा और आने वाली नस्ले तारीख के इस सबसे दर्दनाक और रक्तरंजित दिन की टीस महसूस करती रहेंगी. दोनों मुल्कों के बंटवारे के 75 साल बाद भी कभी एक रहने वाले मुल्क आज एक दूसरे से इतने दूर हो गए हैं कि उनके करीब आने की दूर-दूर तक कोई उम्मीदें नहीं नजर आ रही है.
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दोनों देश कसी वैश्विक सम्मेलन में साथ नहीं बैठते
भारत में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत अब्दुल बासित ने शुक्रवार को कहा कि वह वर्तमान में भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में सुधार को लेकर आशान्वित नहीं हैं और दोनों देश तभी आगे बढ़ सकते हैं जब वे कठिन निर्णय लेने का साहस पैदा कर सके. विचार मंच ‘ग्लोबल काउंटर टेररिज्म काउंसिल (जीसीटीसी) के जरिए आयोजित ’’भारत-पाकिस्तानः क्या आगे बढ़ने का कोई रास्ता है?’’ शीर्षक वाले एक वेबिनार के दौरान बासित ने कहा, ‘‘हमने अपनी शत्रुता का प्रभाव अफगानिस्तान में भी देखा है.’’यह कैसी विडंबना है कि दोहा, कतर में दो अलग-अलग बैठकों की व्यवस्था करने के लिए मजबूर होना पड़ा जिसमें भारत और पाकिस्तान मौजूद हों. ऐसी स्थिति बन गई है कि हमारे दोनों देश अफगानिस्तान से संबंधित ऐसी किसी बैठक में नहीं बैठ सकते हैं, जहां दोनों देश मौजूद हों.
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मौजूदा स्थिति ‘‘मनोबल गिराने वाला’’
भारत गुरुवार को दोहा में कतर द्वारा आयोजित एक क्षेत्रीय सम्मेलन में शामिल हुआ था, जिसमें अफगानिस्तान में तालिबान के लगातार हमले की पृष्ठभूमि में अफगानिस्तान में बढ़ती स्थिति को नियंत्रित करने के तरीकों पर चर्चा की गई. बासित ने कहा कि भारत और अमेरिका अपनी रणनीतिक साझेदारी को बढ़ावा दे रहे हैं, जाहिर तौर पर पाकिस्तान की चीन के साथ रणनीतिक साझेदारी है. उन्होंने कहा कि यह पाकिस्तान-भारत की गतिशीलता को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है.’’ उन्होंने मौजूदा स्थिति को ‘‘मनोबल गिराने वाला’’ बताया. उन्होंने कहा, ‘‘हम वैश्वीकरण से उत्पन्न अवसरों का लाभ नहीं उठा पाएंगे. यह इतना दुर्भाग्यपूर्ण है कि अंतर-क्षेत्रीय व्यापार 5 प्रतिशत से कम है.’’
पाकिस्तान-भारत पारस्परिक शत्रुता से प्रभावित रहेंगे
बासित ने कहा कि वह इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि अंत में चाहे जो भी नजरिया अपनाया जाए, पाकिस्तान-भारत संबंध तब तक पारस्परिक शत्रुता से प्रभावित रहेंगे जब तक कि ‘‘हमें अपनी मूल समस्याओं का समाधान नहीं मिल जाता. उन्होंने कहा कि कुछ लोग उनके साथ सहमत नहीं हैं और वे अभी भी मानते हैं कि शायद आगे बढ़ने का सबसे अच्छा तरीका है छोटे कदम उठाना और विश्वास-निर्माण उपायों, लोगों के बीच संपर्क, सांस्कृतिक संबंधों, आर्थिक संबंधों के माध्यम से अनुकूल वातावरण बनाने का प्रयास करना है, लेकिन हमारा अनुभव हमें बताता है कि हम अतीत में इन सभी चीजों का आजमा चुके हैं और वास्तव में कुछ भी काम नहीं आया है.
धारा-370 समाप्त करने के बाद और बौखलाया पाकिस्तान
बासित ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के संबंध में 5 अगस्त, 2019 को भारत द्वारा उठाए गए कदमों के बाद, पाकिस्तान में वास्तव में ‘‘भारत के साथ बातचीत करने’’ को लेकर कोई इच्छा नहीं बची है. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द कर दिया था और तत्कालीन राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था. बासित ने कहा, ‘‘हालांकि कुछ अनौपचारिक बातचीत हुई है और हमने देखा कि उसके परिणामस्वरूप, नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर संघर्षविराम के प्रति प्रतिबद्धता जतायी गई लेकिन, हम फिर से संभावनाओं की तलाश कर रहे हैं.’’
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