उन्होंने कहा कि मैं यहां अपने वतन और अपने ज़मीर की आवाज़ पर यहां आया हूं, अगर आपको कभी मेरे खून के एक एक कतरे की भी ज़रूरत पड़ी तो मैं आधी रात तैयार हूं.
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इंदौर: उर्दू के मशहूर शायर राहत इंदौरी ने भी शहरियत तरमीमी कानून के खिलाफ़ आवाज़ बुलंद करदी हैं. राहत इंदौरी जुमेरात के रोज़ इंदौर के बड़वाली चौकी पर चल रहे मुज़ाहिरे में मुज़ाहिरीन को अपनी हिमायत देने के लिए पहुंचे, जहां उन्होंने मरकज़ी हुकूमत पर तंज कसते हुए कहा कि मुल्क के वज़ीरे आज़म नरेंद्र मोदी हैं या अमित शाह पता ही नहीं चलता. इसके आलावा राहत ने कहा कि कोई भी शरीफ़ इंसान चाहे वो हिंदु हो या मुसलमान हो या सिख, ईसाई, इस कानून से इत्तेफाक़ नहीं रखता.
उन्होंने कहा कि मैं यहां अपने वतन और अपने ज़मीर की आवाज़ पर यहां आया हूं, अगर आपको कभी मेरे खून के एक एक कतरे की भी ज़रूरत पड़ी तो मैं आधी रात तैयार हूं. इसके अलावा उन्होंने वज़ीरे आज़म पर तंज़ कसते हुए कहा कि मैं अपने काबिल वज़ीरे आज़म को कहना चाहूंगा कि अगर वो आईन नहीं पढ़ पाए हैं तो मैं उनसे गुज़ारिश करूंगा कि वो किसी पढ़े लिखे आदमी को बुलाएं और उसे समझने की कोशिश करें कि इसमें क्या लिखा है और क्या नहीं लिखा है. वज़ीरे आज़म नरेंद्र मोदी और वज़ीरे दाखिला पर तंज़ कसते हुए उन्होंने मज़ीद कहा कि हमें तो यह ही पता नहीं चला कि मुल्क के वज़ीरे मोदी हैं या अमित शाह. इसके अलावा राहत इंदौरी ने केरल के एक लीडर की जानिब से खुद को जिहादी कहे जाने वाले बयान पर कहा कि मैं 77 साल का हो गया हूं, आज तक नहीं पता कि मैं जिहादी हूं.
राहत इंदौरी ने इस मौक़े पर अपना शायराना अंदाज़ दिखाते हुए कहा कि:
उठा शमशीर, दिखा अपना हुनर, क्या लेगा
ये रही जान, ये गर्दन है, ये सर, क्या लेगा
एक ही शेर उड़ा देगा परख़चे तेरे
तू समझता है कि शायर है ये कर क्या लेगा
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आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
मैं वही काग़ज़ हूं जिसकी हुकूमत को है तलब
दोस्तो मुझपे कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
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घरों में डसते हुए मंज़रों में रखे हैं
बहुत से लोग यहां मकबरों में रखे हैं
हमारे सर की फटी टोपियों पे तंज़ ना कर
हमारे ताज अजायब घरों में रखे हैं