ज्ञानवापी मस्जिद पर हाई कोर्ट के फैसले के बाद क्या है उपासना स्थल क़ानून की अहमियत ?
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ज्ञानवापी मस्जिद पर हाई कोर्ट के फैसले के बाद क्या है उपासना स्थल क़ानून की अहमियत ?

पिछले सप्ताह इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर फैसला दिया है, जिसके बाद हाईकोर्ट के दिए गए फ़ैसले पर सवाल उठ रहे हैं. जानिए क्या है उपासना स्थल कानून. 

ज्ञानवापी मस्जिद पर हाई कोर्ट के फैसले के बाद क्या है उपासना स्थल क़ानून की अहमियत ?

ज्ञानवापी मामले में दिए गए अपने फैसले को लेकर हाइकोर्ट कई सवालों से घिर गया है. दरअसल, कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को ख़ारिज करते हुए ये फ़ैसला दिया था कि उपासना स्थल क़ानून के आधार पर हिंदू पक्ष की याचिकाएं ख़ारिज नहीं की जा सकतीं. इस मामले में कोर्ट ने कहा था कि सिर्फ ये दावा कि ज्ञानव्यापी मस्जिद एक मंदिर के ऊपर बनाई गई थी, और हिंदुओं को इसके नवीकरण, मंदिर निर्माण और यहां पूजा करने का अधिकार देने, उपासना स्थल कानून 199क़ के तहत मान्य है. कोर्ट ने आगे ये भी कहा था कि ज्ञानवापी परिसर या तो हिंदू धार्मिक मान्यता का प्रतीक हो सकता है या फिर मुस्लिम धार्मिक पहचान का.एक ही साथ दोनों की तो नहीं हो सकता.पक्षों की अपीलों को ध्यान में रखते हुए ही कोर्ट को इसके धार्मिक पहचान को तय करना होगा. इलाहाबाद कोर्ट के आदेश की कुछ क़ानूनी विशेषज्ञों ने आलोचना की है. उनका मानना है कि 1991 के क़ानून के तहत इस मामले को ख़ारिज कर दिया जाना चाहिए था.

क्या है ज्ञानवापी मामला
इलाहाबाद हाई कोर्ट के सामने मस्जिद कमिटी की तरफ से इस मामले में पाँच याचिकाएँ दायर की गई थीं. इन याचिकाओं की दलील थी कि उपासना स्थल क़ानून की वजह से ज्ञानवापी मस्जिद से संबंधित सभी मामलों को वर्जित कर दिया गया था.आपको बता दें कि 1991 में हिंदुओं ने एक मुक़दमा दायर किया और दावा किया था कि मस्जिद का एक बड़ा हिस्सा भगवान विश्वेश्वर के मंदिर के ऊपर बनाया गया था और वहाँ देवी-देवताओं की कई ‘दृश्यमान और अदृश्य’ मूर्तियाँ थीं.
इस दायर याचिका के मुताबिक, ये इलज़ाम लगाया गया था औरंगज़ेब के शासन के दौरान इस मंदिर को नष्ट कर दिया गया था. इसके बाद याचिकाकर्ता ने अपील की थी कि 
उन हिस्सों को हिंदू देवता की संपत्ति घोषित की जानी चाहिए. इस याचिका के माध्यम से कोर्ट से ये मांग भी की गई थी की हिंदुओं को मंदिर के पुनर्निर्माण और वहाँ पूजा पाठ करने का अधिकार है, और   मस्जिद पर मुस्लिमों का कोई अधिकार नहीं है. जबसे हिन्दू पक्षकारों ने  मुक़दमे दायर किए गए, तभी से मस्जिद कमिटी का इस मुद्दे पर यही स्टैंड रहा कि 1991के क़ानून के तहत ये सारे मुक़दमे वर्जित हैं.

क्या कहता है कानून?
उपासना स्थल क़ानून 1991 कहता है कि हिंदुस्तान की आज़ादी के समय मौजूद किसी पूजा स्थल की धार्मिक पहचान बनी रहेगी और उसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता है. इसके पीछे का मकसद था कि हिंदुस्तान की धार्मिक एकता बरकरार रखना. हालांकि, ये क़ानून बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद पर लागू नहीं होता.इसी कानून के तहत मस्जिद कमिटी ने दलील दी कि आज़ादी के समय ज्ञानवापी मस्जिद एक मस्जिद थी,लेकिन हिंदुओं ने इसका विरोध किया और कहा कि पहले ये तय होना चाहिए कि अभी उसकी धार्मिक मान्यता किस पक्ष में है.

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