बिहार में जल्द ही जातिगत जनगणना होने वाली है. लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि भाजपा इस जनगणना के समर्थन में नहीं है.
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पटना: राजनिति में जाति की एहमियत किसी से छुपी नहीं है. इसका कारण ये है कि हर चुनाव में लगभग हर पार्टी जाति के आधार पर विश्लेषण कर अपना चुनावी समीकरण तैयार करती है. अब बिहार में जाति के आधार पर जनगणना को लेकर नए प्रयास शुरू हुए हैं. जिसके बाद बिहार एक मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने सर्वदलीय बैठक की उसके बाद कैबिनेट की मीटिंग लेने के बाद जातिगत जनगणना पर मुहर लगा दी.
आपको बता दें की सभी 9 राजनितिक दल इसके पक्ष में दिखे और जनगणना के लिए 9 महीने का समय भी दिया गया. इस जनगणना में खर्च की बात करें तो इसमें 500 करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे और जनगणना का कार्य फ़रवरी 2023 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है.
जातिगत जनगणना पर मुख्यमंत्री नितीश कुमार का कहना है- "जातिगत गणना से समाज कल्याण और विकास योजनाओं का वास्तविक लाभ वंचित तबकों तक पहुंचेगा. ये नीतियां कार्यक्रम की दशा-दिशा बदलने के आधार पर बनेंगे".
आपको बता दें कि साल 1931 तक हिंदुस्तान में जातिगत जनगणना होती थी, लेकिन 1941 में जनगणना के समय जाति आधारित डाटा जरूर बनाया गया लेकिन उसे प्रकाशित नहीं किया गया.
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साल 2021 के अगस्त महीने में मुख्यमंत्री नितीश कुमार सर्वदलीय डेलिगेशन के साथ प्रधानमंत्री से मिले थे. उन्होंने मांग की थी कि जातिगत जनगणना करवाई जाए. इसके बाद सितंबर में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने एक हलफनामा दाखिल किया इसमें स्पस्ट तौर पर कहा गया कि साल 2021 में जातीय जनगणना नहीं कराई जाएगी. ओबीसी जातियों की गणना करना कठिन काम है.
इस आधार पर हम सकते हैं कि केंद्र की भाजपा सकरकार कहीं भी जाति आधारित जनगणना नहीं कराना चाहती. लेकिन बिहार सरकार अपने दम पर जाति गणना कराना चाहती है. हालांकि कुछ लोगों का यह भी कहना है कि केंद्र सरकार नहीं चाहती कि बिहार में भी जाति आधारित जनगणना हो.
अमित कुमार झा
लेखक जी सलाम से जुड़े हुए हैं.
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