क़ुरान अल्लाह की सबसे पाको-पाकीज़ा और तैय्यबो ताहिर किताब है. क़ुरान में दुनिया के तमाम राज़ मौजूद हैं. क्या हुआ है, क्या हो रहा है और क़यामत तक क्या होने वाला है इसके इशारे क़ुरान की सूरतों और आयतों में मिलते हैं. इसके एक-एक लफ़्ज़ में कई कई मायने छिपे हुए हैं.
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सैयद अब्बास मेहदी रिजवी: क़ुरान अल्लाह की सबसे पाको-पाकीज़ा और तैय्यबो ताहिर किताब है. क़ुरान में दुनिया के तमाम राज़ मौजूद हैं. क्या हुआ है, क्या हो रहा है और क़यामत तक क्या होने वाला है इसके इशारे क़ुरान की सूरतों और आयतों में मिलते हैं. इसके एक-एक लफ़्ज़ में कई कई मायने छिपे हुए हैं. ये किताब सिर्फ़ मुसलमानों के लिए ही नहीं बल्कि तमाम आलमे इंसानियत के लिए हिदायत का रौशन चिराग़ है. लेकिन सवाल ये है कि इससे फ़ायदा हासिल क्यों नहीं किया जा रहा है?
क्या इन चंद कामों के लिए ही रह गया कुरान?
दुनिया जब कोई नई इजाद करती है तो कहा जाता है कि ये तो क़ुरान में मौजूद है लेकिन फिर सवाल यही है कि अगर क़ुरान में मौजूद है तो फिर इस किताब की तिलावत करने वालों (पढ़ने वालों) ने पहले ही इस पर ग़ौरो फ़िक्र क्यों नहीं किया? क्यों नहीं नई ईजाद करके दुनिया को क़ुरान के हवाले से तोहफ़ा दिया गया. क्या क़ुरान सिर्फ़ तिलावत करने की किताब है? क्या क़िरत करने की किताब है? क्या सिर्फ़ इसकी आयतों को तावीज़ बना कर पहन लेना ही काफ़ी है? क्या इसके सूरों और आयतों को दमकर देना ही काफ़ी है? शायद नहीं, इन तमाम अमल के साथ साथ क़ुरान की बताई हुई बातों पर अमल पैरा होना भी लाज़मी है. जो किताब हमें कामयाब ज़िदंगी का नुस्ख़ा देती है उसे हमने सवाब की किताब बना कर रख दिया.
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क्या अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं उलेमा?
नई नस्ल के पास वक़्त ही नहीं है कि वो इस किताब की आयतों का मतलब समझें और न ज़िम्मेदारों को तौफ़ीक़ है कि वो क़ुरान के सही पैग़ाम को आम करें. क़ुरान का पहला लफ़्ज़. पहली वही जो पैग़म्बरे आज़म हज़रत मोहम्मद मुस्तफा पर नाज़िल हुई वो इक़रा है. यानी पढ़ो...लेकिन इस किताब को मानने वाली उम्मत दुनियाभर में इल्मी बोहरान (शिक्षा की कमी) का शिकार है, तालीम से दूर हैं, तहक़ीक़ से दूर हैं, तहज़ीब से दूर हैं. ये ज़िम्मेदारी उलेमा और अकाबरीन की भी थी कि वो उम्मत को क़ुरान के हर्फ़-हर्फ़ से आशना कराते लेकिन अफ़सोस कि क़ुरान के सही पैग़ाम को न तो उम्मत तक पहुंचाया गया न दुनिया की दूसरी क़ौमों को बताया गया. नतीजा ये हुआ कि तरह-तरह के बोहतान और इल्ज़ाम वक़्त-वक़्त पर इस्लाम, क़ुरान और मुसलमानों पर लगते रहे.
क्या मुसलमानों के दिलों पर ताले पड़ गए हैं?
कुरान के 26वें पारे की सूरए मुहम्मद की 24वीं आयत में ऐलान हुआ कि ये लोग क़ुरान में ग़ौर नहीं करते क्या इनके दिलों पर ताले पड़े हुए हैं? यानी क़ुरान बार-बार ये दावत देता है कि ग़ौर फ़िक्र करो. तुम ज़ेहन रखते हुए सोचते क्यों नहीं. ज़बान रखते हुए बोलते क्यों नहीं? क्या तुम्हारे दिलों दिमाग़ पर ताले पड़े हुए हैं? मगर हालात ये हैं कि दुनिया दावा करती है कि पिछले 500 बरसों में मुसलमानों का जो कंट्रीब्यूशन इस दुनिया के लिए है उसको समेट कर समंदर में फेंक दिया जाए तो भी इस तेज़ी से दौड़ती दुनिया की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
क्या है कुरान की खूबसूरती
सोचिए जिसके पास क़ुरान जैसी किताब है उसने पिछले पांच सौ साल में कोई भी नुमाया किरदार नई दुनिया की तामीरो-तरक़्क़ी में अदा नहीं किया? हालांकि क़ुरान आज भी वही है जो हुज़ूर पर उतरा था. अहलेबैत और असहाबे किराम के दौर में था. फिर मिल्लत बोहरान का शिकार क्यों? क्या क़ुरान की सही तालीम नहीं दी जा रही है? क्या इस्लाम और क़ुरान के सही पैग़ाम पर पर्दा डाल दिया गया है? क्या ये नहीं बताया जा रहा है कि क़ुरान अम्न और शांति के साथ दुनिया में ज़िदंगी जीने की तालीम देता है? क्या ये नहीं बताया जा रहा है कि क़ुरान रिश्ते के एहतेराम की तालीम देता है? क्या ये नहीं बताया जा रहा है कि क़ुरान ईमानदारी बरतने की तालीम देता है? क्या ये नहीं बताया जा रहा है कि क़ुरान नाहक़ किसी का ख़ून न बहाने की तालीम देता है? क्या ये नहीं बताया जा रहा है कि क़ुरान झूठ बोलने, पीठ पीछे ग़ीबत करने, किसी को परेशान करने, कम तोलने, बदउनवानी (करप्शन) करने के सख़्त ख़िलाफ़ है. क्या ये नहीं बताया जा रहा है कि क़ुरान मां-बाप का एहतेराम करने, पड़ोसियों का ख़्याल रखने, अपनी ज़मीन की हिफ़ाज़त करने की तालीम देता है. शायद नहीं.
तालीम (शिक्षा) को लेकर क्या कहता है कुरान?
इसीलिए अमल से हाथ ख़ाली है. ताक़ों पर सजाने की किताब बना दिया गया. दर्से इंक़ेलाब पर मसलेहतों के जमूद तारी हो गए. क़ुरान की इन तालीमात को कहां आम किया जा रहा है. कौन क़ुरान के इन पैग़ामात की नशरो इशाअत कर रहा है. कौन क़ुरान के इस पैगाम को दुनिया तक पहुंचा रहा है. तो आज से हम क़ुरान के पैग़ाम को आम करने का आग़ाज़ करते हैं. क़ुरान का पहला लफ़्ज़ इक़रा है जिसका मतलब जिसका मतलब ‘पढ़ो’.... जब पैग़म्बरे आज़म ग़ारे हिरा में इबादत कर रहे थे तो पहली वही नाज़िल हुई और उन्हें हुक्म हुआ कि वो पढ़ें. इसके बाद कुरान उतारा गया. इसका मतलब यह है कि इस्लाम तालीम को बहुत अहमियत देता है. यही नहीं ख़ुद पैग़म्बरे आज़म की हदीस है कि इल्म हासिल करने के लिए चीन भी जाना पड़े तो जाना चाहिए. इसका मतलब यह नहीं कि कोई पढ़ाई करने के लिए चीन जाए, बल्कि इसमें एक इशारा है कि पढ़ाई-लिखाई के लिए जितनी भी मेहनत कर सकते हो करो. अब जबकि इस्लाम में पढ़ाई-लिखाई की इतनी अहमियत है, तो क्या इसका यह मतलब हुआ कि हम दीनी तालीम तक ही महदूद रहें. नहीं शायद क़ुरान और पैग़म्बरे आज़म का पैग़ाम दीनी और दुनियावी तालीम दोनों के लिए. जदीद तालीम हासिल करो. मार्डन एजुकैशन हासिल करो ताकि दुनिया में पहचाने जा सको.