पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी की श्रद्धांजलि सभा अटल के व्यक्तित्व की तरह ही विरोधाभासों का समन्वय सी जान पड़ी.
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नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी की श्रद्धांजलि सभा ने लंबे अरसे बाद एक ऐसा मौका उपलब्ध कराया जब बहुत से लोग एक छत के नीचे आकर बैठ गए. यह सभा इस मामले में अनूठी थी कि इसमें राजनैतिक विरोधियों के साथ ही खुद को गैर राजनैतिक संगठन मानने वाले आरएसएस के शीर्ष नेता, साधु समाज के शीर्ष व्यक्तित्व और देश के नामचीन लोग शामिल हुए. अनूठापन यहीं नहीं रुका, यह सभा उस स्टेडियम में हुई जिसका नाम उन इंदिरा गांधी के नाम पर रखा गया, अटल जिनके चिरप्रतिद्वंद्वी थे और उन राजीव गांधी के जन्मदिवस के मौके पर हुई जिनकी सियासत को वाजपेयी ने बुरी तरह परास्त किया था. यह सभा अटल के व्यक्तित्व की तरह ही विरोधाभासों का समन्वय सी जान पड़ी.
'सब' आए एक साथ
जरा मौजूद लोगों की सूची पर नजर डालिये. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रिमंडल के सभी सदस्य, कांग्रेस की ओर से गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा और दूसरे नेता, कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती, फारुक अब्दुल्ला और बाकी सभी पार्टियों के वरिष्ठ नेता एक ही छत के नीचे बैठे नजर आए. इनमें रामविलास पासवान, शरद यादव, संतोष गंगवार, अनुप्रिया पटेल, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, बाबा रामदेव, अवधेशानंद गिरि, रामदास अठावले, थंबी दुराई और अमित शाह सब शामिल थे. मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू, राष्ट्रीय जनता दल के जयप्रकाश यादव, हरिवंश (राज्यसभा के उपसभापति), एनसीपी के तारीक अनवर, बीएसपी के सतीश मिश्रा, सीपीआई के डी. राजा और अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल भी यहां आए. इन सबके साथ वाजपेयी के साथ 65 साल की दोस्ती निभाने वाले लालकृष्ण आडवाणी तो थे ही.
भावुकता और पीड़ा का ज्वार
प्रधानमंत्री ने बहुत ही सौम्य और सबको साथ लेने वाले अंदाज में कहा कि जीवन कैसा हो और किस उद्देश्य के लिए हो, यह अटल जी से सीखा जा सकता है. आडवाणी बहुत भावुक नजर आए और ऐसा लगा कि स्मृतियों के बोझ ने उनकी जिह्वा को दबा लिया है. उनके शब्दों से ज्यादा उनके भाव उनकी पीड़ा को व्यक्त कर रहे थे. कांग्रेस की ओर से गुलाम नबी आजाद ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी सबको साथ लेकर चलते थे. गालिब के एक शेर का सहारा लेकर आजाद ने कहा कि वाजपेयी जी ऐसे शख्स थे कि अगर उनके मुंह से गाली भी निकले तो सुनने वाले को अच्छी ही लगती थी. आजाद ने धीरे से यह भी कह लिया कि वाजपेयी युग में पक्ष और विपक्ष एक-दूसरे के यहां आता-जाता ही नहीं था, बल्कि खाता-पीता भी था. आजाद ने इस बात पर दुख जताया कि आजकल वैसे हालात नहीं हैं.
और गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने एक कदम आगे बढ़कर नेहरूजी को याद किया और बताया कि किस तरह नेहरूजी ने नौजवान अटल की योग्यता देखते हुए उन्हें भविष्य का प्रधानमंत्री बताया था.
अटल जी को याद करते हुए राजनाथ नेहरू जी तक चले गए, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस सभा में नहीं पहुंच पाए. उनकी तरफ से आजाद ने ही संवेदनाएं व्यक्त कीं. सभा में न पहुंचकर राहुल ने एक बहुत अच्छा मौका खो दिया. ऐसा मौका वाजपेयी ने नहीं खोया था. जब नेहरूजी का निधन हुआ तो वाजपेयी ने नेहरूजी के बारे में जो भाषण दिया था, वह वाजपेयी के सबसे अच्छे भाषणों में से एक होगा. नेहरू जी के विदा होने के बाद वाजपेयी ने उनके गुणों का बखान करने में कोई कमी नहीं छोड़ी. और इस तरह अपने कद से और बड़े हो गए.
राहुल की कमी खली
आज राजीव गांधी के जन्मदिन पर अगर राहुल उसी तरह अटलजी को याद करते तो राजनीति में उनका कद और बढ़ जाता. लेकिन वह एक बहुत अच्छा मौका चूक गए.
लेकिन देश को यह मौका नहीं चूकना चाहिए. पूरे देश को देखना चाहिए कि एक बड़े नेता के निधन पर सारे लोग एक साथ आए हैं. इस साथ आने में उन्होंने उस नेता की बुराइयों और कमजोरियों को ताक पर रख दिया और अच्छाइयों को आगे रखा. मुल्क को आगे बढ़ाने के लिए ऐसा करना ही पड़ता है.
इस श्रद्धांजलि सभा को उन युवाओं को विशेष रूप से देखना चाहिए जो अपने प्रिय नेता का विरोध होने पर लोगों को सिर्फ ट्रॉल ही नहीं करते, उनकी मारपीट तक कर देते हैं. उन्हें समझना चाहिए कि राजनैतिक विरोध की आंच में देश को बांटना नहीं चाहिए. किसी से असहमत होने पर उस पर तमंचा तान लेना या भीड़ लेकर किसी पर हमला कर देना. यह कैसी बातें हैं. वाजपेयी के बहाने एक सुर में बोल रहे देश को अपना यह मिजाज जहां तक हो सके बचाकर रखना चाहिए.
अगर देश एक रहता है, लोग प्रेम से रहते हैं, मतभेद का इजहार तर्क के जरिए होता है और हर विवाद को कानून या आम सहमति से निपटाने के बारे में सोचता है, तो बहुत कुछ बचाया जा सकता है. बहुत कुछ बचाए रखने की इस संभावना का नाम अटल है. अटलजी को विनम्र श्रद्धांजलि.