हमें समझना होगा कि व्यवहार, कामकाज में योग्य, प्रतिस्पर्धी होने का अर्थ बाहरी 'शोर' से नहीं लगाया जाना चाहिए.
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हिंसा को केवल शरीर के अर्थ में नहीं देखा जाना चाहिए .उसके अनेक रूप हैं. शब्द, भावना और संकेत मात्र से भी हिंसा का प्रकटीकरण उतना ही खतरनाक है. भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली के बारे में अक्सर कहा जाता है कि वह बहुत आक्रामक खिलाड़ी, कप्तान हैं. जबकि यह भ्रम है. वह सचिन तेंदुलकर, ब्रायन लारा से अधिक आक्रामक नहीं हैं. इनसे कहीं आक्रामक स्टीव स्मिथ, केन विलियम्सन हैं. हां, इतना जरूर है कि यह सब कोहली की तरह नेशनल टीवी पर गालियां देते, कपड़े फाड़ते और आक्रामकता का फूहड़ प्रदर्शन करते नजर नहीं आते. लेकिन चीज़ों को बाहरी तौर पर देखने की आदत हमें उस छवि में उलझा देती है, जो टीवी, ब्रांड मैनेजर मिलकर बनाते हैं. यह छवि केवल इस मान्यता पर आधारित है कि आपको दिखना स्मार्ट है. इस स्मार्ट दिखने की जिद ने युवाओं की सोच-विचार की क्षमता के साथ चीजों को देखने के नजरिए तक को बदलकर रख दिया है.
डियर जिंदगी: बच्चों को यह हुआ क्या है...
इंडियन प्रीमियर लीग के इस संस्करण में सबसे सफल कप्तान, अधिक रन बनाने वालों में केन विलियम्सन का नाम प्रमुख है. विशेषज्ञ उनके टीम बनाने, निर्णय लेने और गेंदबाजी परिवर्तन की शैली से प्रभावित हैं. वह जिस शांति, सौम्यता से खेलते, कप्तानी करते हैं, वह बेमिसाल है. लेकिन केन विलियम्सन के बारे में मीडिया, समाज में बातें कम हो रही हैं. लोग तो आक्रामक दिखने, लेकिन कम नतीजे देने वालों के पीछे भाग रहे हैं. जो बच्चे, युवा क्रिकेट पर निरंतर आंखें गड़ाए रहते हैं, उनकी नजर से भी केन की खूबियां बची रहती हैं. जबकि केन के आंकड़े बेहतरीन से आगे के हैं. वह एशिया के बाहर के उन चुनिंदा खिलाड़ियों में से हैं, जो स्पिन को बेहद खूबसूरती, योग्यता से खेलते हैं. मैदान पर चीखते, बाल नोचते और गालियां देते नजर नहीं आते. वह आध्यात्मिक शांति में डूबे साधु की तरह दिखते हैं, जो 'ध्यान' में मग्न है.
डियर जिंदगी : इतना ‘नमक’ कहां से आ रहा है!
हमें समझना होगा कि व्यवहार, कामकाज में योग्य, प्रतिस्पर्धी होने का अर्थ बाहरी 'शोर' से नहीं लगाया जाना चाहिए. योग्यता को हमें कहीं गहराई से भीतरी स्तर पर संभालने की जीवनशैली को अपनाने की ओर लौटना होगा. एक समय था जब कम बोलने वाले को श्रेष्ठ माना जाता था. यह माना जाता था कि जानने वाला शर्मीला हो सकता है. इसके साथ ही यह भी कि बिना पूछे अपने बारे में कोई क्या कहे! समय ने करवट ली. अपने बारे में चीखने वाले लोग देखते-देखते हर जगह 'हीरो' बनते जा रहे हैं. हर जगह अपना किस्सा सुना लेने वाले को ही योग्य मानने का फैशन हो चला है.
बुद्ध की ध्यानमग्न प्रतिमा के सामने से गुजरते हुए, उन्हें ध्यान से देखते हुए कभी सोचा है, वह कितने विद्रोही मिजाज के थे. वह हमारे सभी नायकों में सबसे अधिक क्रांतिकारी थे. सड़ी-गली सामाजिक व्यवस्था, कर्मकांड में उलझे समाज को उन्होंने कितनी सरलता से खुद का दीपक बनने का संदेश दिया. यही तो अर्थ है, 'अप्प दीपो भव का'.
मैं यहां जो कहने की कोशिश कर रहा हूं उसके लिए बुद्ध ही सही मिसाल हैं. असल में वही हमें समझा पाए हैं कि विद्रोही होने के लिए कैसी आक्रामकता चाहिए. आगे चलकर गांधी और मार्टिन लूथर किंग दुनिया में शांति का जो दीपक जला पाए, असल में उसे रोशनी तो बुद्ध ने ही बख्शी थी.
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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
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