जिंदगी बूमरैंग के सिद्धांत पर काम करती है. इस नाते हम अपनी नियति के सबसे बड़े लेखक हैं. हम खुद को जैसा देखना चाहते हैं, उसमें और हमारे करने में अंतर नहीं होना चाहिए, यह अंतर सबसे बड़ी बाधा है.
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बात कुछ दिनों पुरानी है, मैं मुंबई एयरपोर्ट से बाहर अपनी टैक्सी का इंतजार कर रहा था. एक सज्जन मिश्रित भाषा में किसी से बात कर रहे थे. उनकी आवाज में इतनी तेजी, जोश था कि आसपास सभी के लिए सुनना जरूरी हो गया था. वह हिंदी, मराठी और अंग्रेजी में एक साथ बात कर रहे थे. वह लगातार शिकायत कर रहे थे कि वह तो एकदम भले आदमी हैं, लेकिन आसपास लोग एकदम निर्दयी, कठोर और हृदयविहीन हो गए हैं. उनकी बात पूरी होने को ही थी कि वह सामने से आ रहे एक बुजुर्ग से टकरा गए. उनका ध्यान बातों में था, इसलिए जिम्मेदार वही थे. बात करते हुए वह पानी पी रहे थे जो उनके कपड़ों पर गिर गया. बुजुर्ग से टकराते ही वह ‘पलट’ गए. आगबबूला हो गए. लोगों ने समझाने की कोशिश की. लेकिन वह समझ ही नहीं रहे थे. तभी उन बुजुर्ग के साथी आ गए और उन्होंने बताया कि उनके दादाजी को दिखने में कुछ असुविधा हो रही थी, शायद इसलिए गलती से वह टकरा गए होंगे.
जैसे ही बुजुर्ग की ओर से माफी मांगी गई. वहां मौजूद कुछ युवतियों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल लिया. तब जाकर उन सज्जन ने अपनी गलती मानी.
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यह इकलौती घटना नहीं है. हमारे आसपास यही तो हो रहा है. मेरे एक मित्र हैं, कार चलाते समय वह अपने अलावा सबसे विनम्रता की उम्मीद रखते हैं. कहते हमेशा यही हैं कि देखो लोग पागल हो रहे हैं. किसी को जरा-सी सब्र नहीं. कोई ठहरने को तैयार नहीं.
‘हम अपनी बातों पर से ही विश्वास कम करते जा रहे हैं. पति-पत्नी, भाइयों, दोस्तों का सबसे बड़ा संकट यही है. रिश्तों के प्रति लापरवाही वास्तव में अपने जीवन के विरुद्ध किया गया काम है. इसीलिए जीवन में मिठास की जगह नमक बढ़ता जा रहा है.’
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इसे ऐसे भी समझा जाए कि जिंदगी बूमरैंग के सिद्धांत पर काम करती है. इस नाते हम अपनी नियति के सबसे बड़े लेखक हैं. हम खुद को जैसा देखना चाहते हैं, उसमें और हमारे करने में अंतर नहीं होना चाहिए, यह अंतर सबसे बड़ी बाधा है.
इन दिनों डेटिंग साइट्स और लिव-इन रिलेशनशिप का सबसे बड़ा संकट वह भरोसा है, जिसे यकीन दिलाने के लिए क्रेडिट और डेबिट कार्ड तो हैं, लेकिन भरोसा नहीं है. मजेदार बात यही है कि जो भरोसा हम आए दिन तोड़ रहे हैं, उसकी शिकायत का तनाव लिए जिंदगी को डिप्रेशन और उस दुख की ओर धकेल रहे हैं, जो अपनी हसरतों से अधिक लालच से जन्मा है.
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जाते-जाते आपको कवि पाब्लो नेरूदा की ‘सवालों की किताब’ के साथ छोड़े जा रहा हूं, जो शायद भरोसे, यकीन में कमी को अधिक बेहतर तरीके से बयां कर रहे हैं…
‘सारी नदियां अगर हैं मीठी
तो समंदर कहां से लाता है अपना नमक?’
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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
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