डियर जिंदगी: 'कागजी' नाराजगी बढ़ने से पहले...
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डियर जिंदगी: 'कागजी' नाराजगी बढ़ने से पहले...

एक दशक में समाज में प्रेम विवाह ताजी हवा के झोंके की तरह आए हैं. इनसे समाज में जाति, समाज और असमानता के बंधन थोड़े कमजोर हुए हैं. इसलिए इस हवा के साथ चलने वालों का ख्‍याल रखना हमारी खास जिम्‍मेदारी का हिस्‍सा होना चाहिए. 

डियर जिंदगी: 'कागजी' नाराजगी बढ़ने से पहले...

जहां प्रेम होता है, वहां नाराजगी होती ही है. नाराजगी भी तभी होती है, जब प्रेम गहरा होता है. इस तरह प्रेम और नाराजगी एक ही नाव के सहयात्री हैं. सहयात्री हैं तो संवाद के साथ तकरार स्‍वाभाविक है. जहां तक स्‍वाभाविक है, वहां तक सब ठीक है. समस्‍या तो वहां से शुरू होती है, जहां से चीजें अपने मिज़ाज से भटक जाती हैं. वहां से जहां से रिश्‍तों में हम की जगह 'मैं' आ जाता है.

एक दशक में समाज में प्रेम विवाह ताजी हवा के झोंके की तरह आए हैं. इनसे समाज में जाति, समाज और असमानता के बंधन थोड़े कमजोर हुए हैं. इसलिए इस हवा के साथ चलने वालों का ख्‍याल रखना हमारी खास जिम्‍मेदारी का हिस्‍सा होना चाहिए. हर दिन अखबार, समाज से आती खबरें बता रही हैं कि प्रेम विवाह करने वाले युवा दंपति बनने के बाद संबंधों की 'मिठास' कायम रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. 

इस संघर्ष में समाज का हर वर्ग शामिल है. दिख तो हमें ऋतिक-सुजैन, आमिर खान-रीना दत्ता और अर्जुन रामपाल-मेहर जेसिया के चेहरे रहे हैं, क्‍योंकि वे चर्चा में रहते हैं, लेकिन रिश्‍तों के टूटन की खबर, उनका असर समाज में गहराई तक है. इसे 'सेलिब्रिटी' कल्‍चर कहकर खारिज नहीं किया जा सकता. यह हमारे बीच हो रहा है, इसे स्‍वीकार करते हुए ही इसके समाधान तक पहुंचना संभव है.

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'डियर जिंदगी' को लिखे ई-मेल में कुछ ऐसे युवा अपने अनुभव शेयर कर रहे हैं, जिन्‍होंने समाज से लोहा लेते हुए प्रेम विवाह किया. प्रेम से विवाह की यात्रा में उन्होंने घुमावदार मोड़ तो आसानी से पार कर लिए, लेकिन जैसे ही दोनों 'अकेले' हुए, संकट गहराने लगे. यह अनुभव इस ओर इशारा कर रहे हैं कि रिश्‍तों को उस वक्‍त संभालना मुश्किल नहीं होता, जब आप बाहरी चुनौती का सामना कर रहे होते हैं. असल मुश्किल तब होती है, जब आप संकटों का सामना करके हर दिन की जिंदगी (डेली लाइफ) का हिस्‍सा बन जाते हैं.

यकीन रखिए, हर दिन की जिंदगी सबसे मुश्किल जिंदगी है, जिसमें बाहर से कोई चुनौती नहीं दिखती. कोई संकट नजर नहीं आता, लेकिन असल में सबसे बड़ा संकट यहीं आकर शुरू होता है. क्‍योंकि यह आप दोनों (दंपति) पर आने वाला संयुक्‍त संकट नहीं है. ऐसे संकट के लिए तो आप इस रिश्‍ते में आने से पहले ही तैयार थे.

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लेकिन, आप इस बात के लिए तैयार नहीं थे कि किसी दिन जब कोई रूठेगा तो मनाएगा कौन! जब एक अपने ऑफि‍स में धीरे-धीरे खूब बिजी हो जाएगा और दूसरा करियर की रेस में कुछ पीछे रह जाएगा तो संभालेगा कौन! कभी-कभी मज़ाक में ही सही किसी दूसरे का नाम तीसरे से जुड़ जाएगा तो उस 'कागजी' नाराजगी को दूर कौन करेगा. उस साथी के सपने का क्‍या होगा, जो दूसरे के करियर के लिए अपने सपने को आंखों में ही रहने देगा. 

इसलिए, उनके लिए जिन्होंने दुनिया से लड़कर अपने रिश्‍तों को हासिल किया है, समझना होगा कि रिश्‍ते कहां जाकर बिखर रहे हैं. रिश्‍तों के टूटने में अब पैसे की भूमिका बहुत थोड़ी बची है. अधिकांश युवा (पुरुष/स्‍त्री) कह रहे हैं कि उनका साथी उनको समझ नहीं पा रहा. कैसी कमाल की बात है! पांच से लेकर दस बरस से एक-दूसरे को जानने वाले अगले ही कुछ सालों में एक-दूसरे को समझना भूल जाते हैं, साथ पाकर खुश रहना भूल जाते हैं. क्‍यों? 

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क्‍योंकि वह एक-दूसरे से उनकी स्‍वतंत्रता छीन लेते हैं. शादी के पहले की स्‍वतंत्रता, पारदर्शिता और एक-दूसरे को बर्दाश्‍त करने की क्षमता, शादी होते ही कैसे खत्‍म हो जाती है, सभी संकटों का सूत्र यहीं है. अपने भीतर और बाहर की उस जिंदगी में जो सामान्‍य है, रोज की है, हर दिन की है. हर दिन कैसे एक-दूसरे से स्‍नेह, आत्‍मीयता कायम रहे, यही सबसे बड़ा सवाल है. इसका जितना अच्‍छा उत्‍तर उनके पास है, जिनके पास यह सवाल है, उससे अच्‍छा किसी के पास नहीं. बशर्ते वह इसके लिए अंतर्यात्रा पर निकल सकें...

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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)

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