डियर जिंदगी : तनाव और रिश्‍तों के टूटे ‘पुल’
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डियर जिंदगी : तनाव और रिश्‍तों के टूटे ‘पुल’

कई बार ऐसा होता है कि किसी एक पल की सजा हम खुद को और अपने प्रियजनों को जिंदगी भर देते रहते हैं.

डियर जिंदगी : तनाव और रिश्‍तों के टूटे ‘पुल’

हम जबलपुर की ओर यात्रा में थे. सफर शुरू होते ही पूरे कोच में हमारे ‘हिस्‍से’ से सबसे ज्‍यादा ठहाके गूंजने लगे. जबकि तीनों यात्री दल एक-दूसरे से पूरी तरह अपरिचित थे. लेकिन फरीदाबाद और मंडला के दो यात्री परिवार इस तरह हमसे घुल मिल गए कि पूरा माहौल ही बदल गया. संवाद का सिलसिला राजनीति की चर्चा से शुरू हुआ और देखते ही देखते जीवन के विविध रूपों की ओर मुड़ गया.

संवाद का आरंभ निजी अनुभव साझा करने से हुआ. हम चीजों के बारे में जिस तरह से बात कर रहे थे, उससे पड़ोस के एक युवा सहयात्री इतने प्रेरित हो गए कि वह अपनी कुछ टिप्‍पणियों के साथ इस बातचीत में शामिल होने को उत्‍सुक हो गए. हमने उनका स्‍वागत किया. यह ‘जीवन संवाद’ का एक अनूठा अनुभव था. इसमें हर किसी के लिए बस एक अनुशासन था कि उसे सुनना था.

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कहने का पूरा अवसर मिलना भी एक दुर्लभ अनुभव है. हम खुद को सुनाने में इतने व्‍यस्‍त हो चले हैं कि सुनना ही भूल गए हैं. इसलिए संवाद में शामिल 6 लोग जब इस अनुशासन में डूब गए कि कुछ कहने से पहले खूब सुना जाए, तो यात्रा बेहद सृजनात्मक हो गई. इसमें जो मूल्‍यवान अुनभव मिले, उनमें से कुछ आपसे साझा कर रहा हूं.

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1. ‘टूटे’ पुल : कई बार ऐसा होता है कि किसी एक पल की सजा हम खुद को और अपने प्रियजनों को जिंदगी भर देते रहते हैं. रोशन ने बताया कि उनके एक चचेरे भाई की शादी में किसी बात का उनको कुछ ज्‍यादा ही बुरा लग गया. वह शादी छोड़कर चले गए. इस शादी में वह ‘रिस्‍पेक्‍ट’ न मिलने के कारण नाराज हो गए, जबकि भाई बचपन से उनके साथ रहा था. उन्‍हें अतिप्रिय था. उस भाई से नौ बरस से संबंध टूट गया.

2. कुछ दिन पहले रोशन को अहसास हुआ कि भाई के साथ टूटा संवाद, उनके मन पर निरंतर भारी पड़ रहा है. उनके दिमाग में कुछ बोझ है, जो मन, आत्‍मा पर भारी पड़ रहा है. रोशन ने एक दिन भाई को फोन लगाया, बड़े होने के बाद भी अपनी गलती के लिए माफी मांगी.

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3. संवाद का टूटा पुल जैसे ही एक तरफ से जोड़ा गया, दोनों ओर से आवाजाही शुरू हो गई. केवल रोशन के दिमाग से बोझ ही नहीं उतरा, बल्कि दो परिवारों के बीच सोच-समझ और आनंद के बीच खड़ा ‘स्‍पीड ब्रेकर’ टूट गया.

4. रोशन की तरह ही हमारी सहयात्री प्रिया गोयल ने भी एक प्रेरणादायक पहल साझा की. उन्‍होंने बताया कि दिल्‍ली में दीपावली पर अक्‍सर लोग जब उनके घर आते, तो उनके पास बैठने का वक्‍त ही नहीं होता था. पड़ोसी घर की दहलीज से ही उपहार देते हुए लौट जाते थे. प्रिया ने धीरे-धीरे अपने पड़ोसियों को उपहार न देने के लिए तैयार किया. ताकि एक-दूसरे के उपहार देखने और उस पर घंटों निरर्थक बातचीत से समय बचे. इसके साथ ही यह पहल की गई कि जरूरतमंदों को कुछ मदद मिले.

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5. प्रिया की पहल रंग लाई. अब कम से कम उनके आसपास एक-दूसरे को उपहार देने का ‘कल्‍चर’ खत्‍म हो गया है. इसकी जगह उस पहल ने ले ली है, जिससे ऐसे लोगों को कुछ मदद मिल रही है, जिन्‍हें सही में जरूरत है.
 
इस ‘जीवन-संवाद’ का एक पहलू यह भी है कि हमारे पास यात्रा के दौरान पर्याप्‍त समय होता है, बशर्ते हम उसके हर टुकड़े का उपयोग जीवन को समझने, संवारने के लिए करें.

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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)

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