कुछ लोग होते हैं, जिन पर भरोसा अटूट, दिल से होता है. लेकिन एक दिन कुछ ऐसा होता है कि भरोसे में दरार पड़ जाती है.
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बिहार (औरंगाबाद) से डियर जिंदगी के पाठक अनिल दिवाकर लिखते हैं, 'आप कहते हैं, प्रेम करें, अपेक्षा न करें. रिश्तों में स्नेह का निवेश करें. मैं तो हमेशा ऐसा ही करता हूं, लेकिन इससे कुछ हासिल नहीं हुआ. मेरे भरोसे को अक्सर तोड़ा गया. इसलिए मैं भरोसे पर कुछ संवाद चाहता हूं'. शुक्रिया, अनिल हम आज भरोसे पर ही बात करते हैं.
विश्वास/भरोसा/यकीन. यह शब्द बस नहीं है. जीवन की नींव है. रिश्तों की पूंजी है. निजी और प्रोफेशनल दोनों स्तरों पर इस शब्द से ज्यादा जोर शायद ही किसी बात पर दिया जाता हो. आप लाख प्रतिभाशाली हों, लेकिन अगर आप भरोसा पैदा नहीं करते, आपसे मिलकर किसी को यकीन नहीं होता, तो करियर, जिंदगी में मुश्किलें तो आएंगी ही.
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यह भरोसा आता कहां से है. कैसे हो जाता है, अचानक से किसी पर. तो किसी पर पूरी जिंदगी यकीन नहीं हो पाता. भले ही वह कितनी ही रस्मों, कसमों से क्यों न गुजरा हो. आपने कभी महसूस किया कि जिंदगी किन चीजों से प्रभावित हुई है. कहां से मुसीबतें आईं, अगर आईं तो आप कैसे बचे. किसके भरोसे ने आपकी मदद की.
कुछ लोग होते हैं, जिन पर भरोसा अटूट, दिल से होता है. लेकिन एक दिन कुछ ऐसा होता है कि भरोसे में दरार पड़ जाती है. आप कहते नहीं, बात नहीं करते. कैसे करें, कैसे कहें. उससे जिस पर बहुत भरोसा था, कैसे कहें कि उस पर से भरोसा टूट रहा है. भरोसे में अविश्वास का दीमक लग गया है.
कहना मुश्किल है, भावनाओं को संभालना मुश्किल है. लेकिन ऐसा करना अपने बीमार मन को सही दवा देने जैसा है. किसी पर भरोसा होता है, या नहीं होता. बीच की कोई चीज़ नहीं होती. बीच में कुछ नहीं होता. बीच में बस संशय रहता है. यह संशय ही है, जो अच्छे भले परिवार, दोस्त, रिश्ते को चट कर जाता है.
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कभी सुना है कि दो अपरिचित दुश्मन हो गए! नहीं, अपरिचित कभी शत्रु नहीं होते. जो कभी मित्र होते हैं, वही शत्रु बनते हैं. इसलिए भरोसे के पुल की सही देखभाल जरूरी है, जिसके टूटते ही रिश्ते छिटककर दो धुव्रों पर पहुंच जाते हैं.
भरोसे के टूटने के कारण बड़े नहीं होते. लेकिन छोटे कारण से भी भरोसे को बड़ा धक्का लग सकता है. जैसा और जितना दूसरों से भरोसा आप चाहते हैं, वैसा ही दूसरों के प्रति रखना चाहिए.
एक परिचित हैं. मिलनसार. अच्छे मिजाज के. लेकिन दूसरों की बातें, जो उनको किसी ने बताई हों. सरे बाजार बताते फिरते थे. हर आदमी उनसे जानना चाहता था, कि खबर क्या है. उनके संबंधों की रेंज विराट कोहली के स्ट्रोक्स जैसी थीं. लेकिन धीरे-धीरे सबने उनसे किनारा कर लिया. क्योंकि वह हर किसी की बातें, दूसरे को 'किसी से मत बताना ' के नोटिस के साथ बांटते रहते थे. सबने उन्हें खबरी बना लिया, लेकिन भरोसा हटा लिया. एक अच्छा आदमी, खराब आदत के कारण सबसे दूर होता गया.
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हम क्या हैं. बस भरोसा ही तो हैं. इसलिए कभी भरोसा मत तोड़िए. छोटे-छोटे लाभ के लिए रिश्तों को दांव पर मत लगाइए. सॉरी शब्द भले ही बहुत ज्यादा प्रचलित हो, लेकिन सच तो यह है कि भरोसा तोड़ने वाले को माफी अक्सर नहीं मिलती है.
चलते-चलते भरोसे पर एक किस्सा भी....
अब्राहम लिंकन एक बार अपने स्टाफ के लिए एक इंटरव्यू कर रहे थे. एक व्यक्ति जो बेहद काबिल था. सभी योग्यता रखता था. लिंकन ने उसे यह कहते हुए नहीं चुना कि उन्हें उसका चेहरा पसंद नहीं आया. लिंकन ने इसका कारण यह बताया, 'वह व्यक्ति चालीस साल का है. चालीस बरस तक आते-आते हमारा चेहरा हमारी सोच जैसा हो जाता है. मन के बादल चेहरे पर छाने लगते हैं. उसके भीतर की कटुता, विश्वसनीयता, ईमानदारी सब चेहरे पर आने लगती है. इसलिए हमें चेहरा पढ़ना भी आना चाहिए. वह व्यक्ति काबिल था, लेकिन उसका चेहरा विश्वसनीय नहीं था.'
दोस्तों, थोड़ा मुश्किल है, लेकिन अपने ही चेहरे पर लिंकन की थ्योरी को आजमाने में कोई बुराई तो नहीं है. यह निजी जिंदगी के साथ कामकाज की दुनिया में भी आपकी मदद करेगा. भरोसा करिए और भरोसेमंद बनिए.
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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
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