एक-दूसरे के लिए ‘जगह’ निकाल पाना इतना मुश्किल भी नहीं. मतभेद के साथ सम्मान की कला जिंदगी के सुख का सबसे बड़ा आधार है.
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कई बार ऐसा होता है, जब एक ही चीज़ पर मतभेद होते हुए भी बाद में हमें लगता है कि इस पर ‘दोनों’ सही हैं. कोई गलत नहीं है. मंजिल एक है, लेकिन रास्ते अलग. एक-दूसरे के लिए ‘जगह’ निकाल पाना इतना मुश्किल भी नहीं. मतभेद के साथ सम्मान की कला जिंदगी के सुख का सबसे बड़ा आधार है.
‘डियर जिंदगी’ को मिल रही प्रतिक्रिया में इन दिनों जीवन के उस पड़ाव का जिक्र ज्यादा हो रहा है, जिसमें कहा जा रहा है कि जब दोनों सही हों, तो क्या करना चाहिए! रिश्तों में दरार तभी नहीं आती, जब रास्ते अलग हों, उस समय भी आती है, जब रास्ते एक हों.
कुछ मिसाल...
गुड़गांव के मोहन श्रीवास्तव को पिता बैंक ऑफिसर बनाना चाहते हैं. पिता बैंक में रहे हैं. बेटे को सुरक्षित करियर देना चाहते हैं, लेकिन मोहन शतरंज में करियर बनाना चाहते हैं. पिता उनके रास्ते से संतुष्ट नहीं हैं. दोनों के बीच भारी मनमुटाव है. इतना अधिक कि पिता की सेहत पर यह तनाव भारी पड़ रहा है.
मोहन के शतरंज कोच के अनुसार वह बहुत अच्छा कर रहे हैं, लेकिन पिता कुछ सुनने को तैयार नहीं. उनका मानना कि भारत में खेल में करियर बनाना बहुत मुश्किल है, खासकर शतरंज में. इसलिए मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चे शतरंज में जाने का जोखिम नहीं ले सकते. यहां ध्यान रखना होगा कि मोहन इकलौती संतान हैं. पिता उन पर अपने भविष्य की जिम्मेदारी डालना चाहते हैं. मोहन को भी इससे इनकार नहीं. लेकिन वह परिवार का भविष्य शतरंज के माध्यम से संवारना चाहते हैं, बैंक के माध्यम से नहीं.
डियर जिंदगी : बच्चों की गारंटी कौन लेगा!
सोनम साहू सरकारी बैंक में मैनेजर हैं. दो बरस पहले ही उन्हें उनके सपनों जैसी नौकरी मिली. अब पिता चाहते हैं कि वह सही समय पर शादी कर लें. परिवार ने एक लड़का पसंद भी किया. लड़का पेशे से डॉक्टर है. सब ठीक है. लेकिन लड़के के पिता दस लाख रुपए की मांग पर अड़े हैं. उनका कहना है कि यह उनकी मांग नहीं है. बस परिवार की प्रतिष्ठा का प्रश्न है. सोनम को यह मांग मंजूर नहीं. लड़के का कहना है कि वह पिता की बात नहीं टाल सकता. वैसे भी जब पैसे की कमी नहीं तो इसमें दिक्कत क्या है! सोनम ने इस रिश्ते से इनकार कर दिया. जबकि पिता का कहना है, 'भारत में बिना दहेज के अच्छा परिवार पाना संभव नहीं. इसलिए, सोनम को जिद छोड़कर इस प्रस्ताव को मान लेना चाहिए.'
डियर जिंदगी: सुसाइड के भंवर से बचे बच्चे की चिट्ठी!
यह दोनों उदाहरण बताते हैं कि सही सोच होने का अर्थ यह नहीं कि आपका चुनाव भी सही हो. माता-पिता और बच्चे के बीच सारा तनाव इसी चुनने के अधिकार को लेकर है! अब यहां इस बात को समझना बहुत अधिक जरूरी है कि असल में जीवन किसका है. माता-पिता जब तक इस बात को गहराई से नहीं समझते कि वह बच्चे के केवल कोच हैं, मालिक नहीं. तब तक बच्चे की परवरिश में तनाव बना ही रहेगा.
डियर जिंदगी: साथ रहते हुए ‘अकेले’ की स्वतंत्रता!
आज जो अभिभावक हैं, कभी वह भी तो युवा, बच्चे थे. उन्हें अपने सपने चुनने का अधिकार था. इस अधिकार के लिए उनने भी अपने माता-पिता से संघर्ष किया था. तो अब वही कहानी अपने बच्चों के साथ क्यों दोहरा रहे हैं.
हमें गहराई से समझना होगा कि बच्चे हमसे हैं. हमारे लिए नहीं हैं. हम अपने कल को बच्चे के भविष्य से जितना कम जोड़ेंगे, उतना बेहतर होगा! हमें केवल उस माली की तरह रहना है, जो पार्क के सभी फूलों की क्यारियों तक पानी, हवा और धूप तय करता है, लेकिन वह उनके खिलने, संभलने और खड़े होने में अपनी भूमिका कम से कम निभाता है.
डियर जिंदगी: स्वयं को दूसरे की सजा कब तक!
हम अपनी भूमिका को जितना अधिक गहराई से समझेंगे, हम जिंदगी के सफर को उतना ही सरल, सरस रख पाएंगे.
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